राजस्थान सरकार का बड़ा फैसला: केकड़ी, सांचौर, नीम का थाना और शाहपुरा फिर बने नगर पालिका

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 10 Jul, 2025 11:36 AM

big decision of rajasthan government

राजस्थान की बीजेपी सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के एक और फैसले में बड़ा बदलाव करते हुए चार शहरों- केकड़ी, सांचौर, नीम का थाना और शाहपुरा (भीलवाड़ा) को दोबारा नगर पालिका का दर्जा दे दिया है। इससे पहले कांग्रेस सरकार ने इन्हें नगर परिषद घोषित...

जयपुर । राजस्थान की बीजेपी सरकार ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के एक और फैसले में बड़ा बदलाव करते हुए चार शहरों- केकड़ी, सांचौर, नीम का थाना और शाहपुरा (भीलवाड़ा) को दोबारा नगर पालिका का दर्जा दे दिया है। इससे पहले कांग्रेस सरकार ने इन्हें नगर परिषद घोषित किया था। अब स्वायत्त शासन विभाग की नई अधिसूचना के बाद इनका दर्जा घटा दिया गया है। स्वायत्त शासन विभाग के निदेशक इंद्रजीत सिंह ने इस संबंध में अधिसूचना जारी की है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि अब ये चारों शहर नगर परिषद नहीं रहेंगे।

कांग्रेस सरकार ने जिला बनाने के साथ दिया था नगर परिषद का दर्जा
पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने जब राज्य में 19 नए जिलों की घोषणा की थी, तब नगरीय विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इन चारों स्थानों को नगर परिषद का दर्जा प्रदान किया गया था। इस फैसले के तहत शहरी योजनाओं को जिला स्तर के मुताबिक सुदृढ़ करने, पदों का सृजन करने और अतिरिक्त बजट की व्यवस्था की गई थी।

अब जिले नहीं रहे, तो नगर परिषद का औचित्य भी खत्म
भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद गठित उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर 19 में से केवल 11 जिलों को ही मान्यता दी गई, जबकि 8 प्रस्तावित जिलों को रद्द कर दिया गया। इन 8 में केकड़ी, सांचौर, नीम का थाना और शाहपुरा भी शामिल थे। जिला का दर्जा समाप्त होने के बाद अब नगर परिषद का दर्जा भी वैधानिक रूप से समाप्त कर दिया गया है।

नई व्यवस्था में श्रेणी निर्धारण भी अधिसूचना के अनुसार:
केकड़ी और सांचौर को द्वितीय श्रेणी की नगर पालिका बनाया गया है।
नीम का थाना और शाहपुरा (भीलवाड़ा) को तृतीय श्रेणी की नगर पालिका के रूप में पुनर्गठित किया गया है।

सीमित बजट में चलेंगी शहरी योजनाएं
इस बदलाव के बाद इन चारों शहरों में शहरी विकास की योजनाएं अब सीमित बजट और संसाधनों के दायरे में संचालित की जाएंगी। हालांकि सरकार का तर्क है कि यह कदम प्रशासनिक संतुलन और राज्य के वित्तीय भार को नियंत्रित रखने की दिशा में उठाया गया है।


 

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