Edited By Sourabh Dubey, Updated: 04 Sep, 2025 08:15 PM
भारत में शिक्षा को हमेशा समाज परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण का सबसे बड़ा साधन माना गया है। 2020 में लागू की गई नई शिक्षा नीति (एनईपी -2020) स्वतंत्र भारत की पहली ऐसी समग्र नीति है, जो आने वाले दशकों तक देश की शिक्षा व्यवस्था की दिशा तय करेगी।
- वासुदेव देवनानी
भारत में शिक्षा को हमेशा समाज परिवर्तन और राष्ट्र निर्माण का सबसे बड़ा साधन माना गया है। 2020 में लागू की गई नई शिक्षा नीति (एनईपी -2020) स्वतंत्र भारत की पहली ऐसी समग्र नीति है, जो आने वाले दशकों तक देश की शिक्षा व्यवस्था की दिशा तय करेगी। यह नीति शिक्षा को लचीला, बहुविषयक, कौशल-आधारित और भारतीयता से जुड़ा बनाने पर बल देती है। नई शिक्षा नीति के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि “नई शिक्षा नीति 21वीं सदी के भारत की नई आशा और नए आत्मविश्वास का आधार बनेगी।” इस परिप्रेक्ष्य में आज के शिक्षक की भूमिका और कर्तव्य और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि “हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों में जिज्ञासा, रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और संचार कौशल विकसित करे।”मोदी जी ने यह भी कहा कि “शिक्षक वह है जो विद्यार्थी को यह नहीं सिखाता कि क्या सोचना है, बल्कि यह सिखाता है कि कैसे सोचना है।”
नई शिक्षा नीति की प्रमुख विशेषताएँ
नई शिक्षा नीति में समग्र एवं बहुविषयक शिक्षा को सम्मिलित किया है । इसमेंविद्यार्थी को विभिन्न विषयों को मिलाकर पढ़ने की स्वतंत्रता दी गई है । इसमें 5+3+3+4 ढाँचा तैयार कर प्रारंभिक शिक्षा को सशक्त बनाया गया है।नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है ।इसमें पाँचवीं कक्षा तक की पढ़ाई मातृभाषा और स्थानीय भाषा में कराने का प्रावधान भी किया गया है । नई शिक्षा नीति में कौशल आधारित शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा और उद्यमिता पर भी बल दिया गया है । इस महत्वाकांक्षी नीति में अनुसंधान और नवाचार आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए “नेशनल रिसर्च फाउंडेशन” की स्थापना की गई है । साथ ही डिजिटल शिक्षा ,ऑनलाइन और ई-लर्निंग का प्रावधान भी रखा गया है ।
नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए शिक्षक के कर्तव्य
नई शिक्षा नीति को लागू करने और सफल बनाने का दायित्व सबसे अधिक शिक्षकों पर है। अब उनकी भूमिका केवल ज्ञान देने वाले की नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, शोधकर्ता और आदर्श की है।इसके लिए शिक्षकों को विद्यार्थियों का मार्गदर्शक बनना होगा । साथ ही विद्यार्थियों में सोचने और सवाल पूछने की प्रवृत्ति जगानी होगी।नई शिक्षा नीति में संस्कृति और विज्ञान का संतुलन है। शिक्षक का कर्तव्य है कि बच्चे भारतीय मूल्यों से जुड़े रहें और साथ ही वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य भी बनें। यानी शिक्षक उनमें भारतीयता और आधुनिकता का संगम कराये ।
नई शिक्षा नीति -2020 के अनुसार शिक्षक की भूमिका केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें स्वयं को एक सतत अध्येता के रूप में विकसित होना होगा। इसके लिए शिक्षक को स्वयं अध्यनशील बनना होगा। नई जानकारी एवं कौशल अधिग्रहण भी करना होगा। हर दिन बदलती दुनिया में शिक्षक को लगातार पढ़ना, शोध करना और नये विषयों की जानकारी लेना आवश्यक है।आत्ममंथन और मूल्यांकन भी करना होगा ।साथ ही अपने पढ़ाने के तरीके और छात्रों की प्रगति का विश्लेषण करना और उससे सीखना होगा ।अन्य शिक्षकों से भी संवाद करना होगा।सहकर्मी शिक्षकों के साथ अनुभव साझा करना और उनसे सीखना होगा ।साथ ही नई तकनीकी ज्ञान को सीखना होगा। डिजिटल उपकरणों का प्रयोग करना होगा ।स्मार्ट क्लास, ई-कंटेंट, वर्चुअल क्लासरूम और लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम का उपयोग करना होगा ।ऑनलाइन संसाधन जैसे स्वयं, दीक्षा , ई पाठशाला जैसे प्लेटफ़ॉर्म का लाभ उठाना होगा। साथ ही एआई और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग छात्रों की व्यक्तिगत सीखने की गति और रुचियों के अनुसार शिक्षण पद्धति को ढालना होगा ।
शिक्षकों को अपने पढ़ाने के तरीके में भी परिवर्तन करना होगा। विद्यार्थियों को रटने की बजाय समझ पर जोर देकर बच्चों में क्रिटिकल थिंकिंग और क्रिएटिविटी विकसित करना होगा। एक्टिव लर्निंग के तहत प्रोजेक्ट आधारित, गतिविधि आधारित, अनुभवात्मक पद्धति अपनानी होगी । साथ ही भाषाई लचीलापन को अपना कर मातृभाषा/स्थानीय भाषा में भी शिक्षण को बढ़ावा देना होगा ।शिक्षकों को छात्र-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना होगा ।वर्तमान समय में शिक्षक “ज्ञान देने वाला” ही नहीं बल्कि एक “मार्गदर्शक और सहायक” बने यह आवश्यक है ।इस तरह नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षक को केवल ज्ञान का संचारक नहीं, बल्कि सिखाने के साथ सीखने वाला और तकनीक का सशक्त उपयोगकर्ता बनना होगा।
कौशल एवं व्यावसायिक शिक्षा तथा तकनीकी दक्षता
शिक्षक बच्चों को केवल किताबों तक सीमित न रखें, बल्कि जीवन कौशल, तकनीकी दक्षता और उद्यमिता की ओर भी मार्गदर्शन करें।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है—“शिक्षा केवल डिग्री तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह चरित्र और राष्ट्र निर्माण का साधन होनी चाहिए।”आज शिक्षक को ऑनलाइन शिक्षण, डिजिटल टूल्स और नई तकनीक में दक्ष होना जरूरी है। यह नई शिक्षा नीति का भी प्रमुख आधार है।साथ ही शिक्षक को विद्यार्थियों को प्रयोगधर्मी और शोध की ओर प्रेरित करना होगा ताकि भारत ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में अग्रणी बन सके।शिक्षक स्वयं भी निरंतर सीखते रहें और अपने ज्ञान को अपडेट करते रहें।नई शिक्षा नीति शिक्षा को केवल अंकों और डिग्रियों तक सीमित नहीं रखती, बल्कि इसे जीवन, कौशल और राष्ट्र निर्माण से जोड़ती है। इस नीति की सफलता का असली आधार शिक्षक ही हैं। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि एक शिक्षक प्रेरणा दे सकता है, जिज्ञासा जगा सकता है और मूल्य स्थापित कर सकता है। एक अच्छा शिक्षक एक महान पीढ़ी को गढ़ सकता है।इसलिए आज के शिक्षक का कर्तव्य है कि वे नई शिक्षा नीति को केवल कागज पर न रहने दें, बल्कि उसे अपने आचरण और शिक्षण के माध्यम से समाज में उतारें।
बच्चों में विश्लेषणात्मक स्वभाव और उन्हें स्वावलंबी बनाना
इसी प्रकार वर्तमान समय में बच्चों में विश्लेषणात्मक स्वभाव विकसित करने की आवश्यकता है ।केवल रटने से ज्ञान स्थायी नहीं होता, लेकिन विश्लेषण करने से बच्चे उसे जीवन में लागू करना सीखते हैं। साथ ही छात्रों में सृजनात्मकता का विकास करना भी जरूरी हैं। उनमें समाज, विज्ञान और जीवन की वास्तविक समस्याओं को हल करने की योग्यता बढ़ाने के लिए उनमें सामर्थ्य एवं क्षमता भी बढ़ानी होंगी।साथ ही विद्यार्थियों में निर्णय लेने की क्षमता और विश्लेषणात्मक सोच विकसित होने से सही-गलत का विवेक पूर्ण निर्णय की क्षमता बढ़ती है।ऐसे बच्चे भविष्य में जिम्मेदार नागरिक बनते हैं और तर्क पर आधारित निर्णय लेने में सक्षम हों सकते हैं।
नई शिक्षा नीति का लक्ष्य केवल डिग्रीधारी विद्यार्थी तैयार करना नहीं है, बल्कि विचारशील, तर्कशील और नवाचारी युवा तैयार करना है। इसके लिए बच्चों में विश्लेषणात्मक स्वभाव का विकास अनिवार्य है। जब कक्षाओं में जिज्ञासा और तर्क की संस्कृति पनपेगी तभी नई शिक्षा नीति -2020 अपने उद्देश्यों को पूरी तरह सफल कर पाएगी।
छात्रों में स्वावलंबी बनने का स्वभाव विकसित करना आज की शिक्षा का सबसे अहम लक्ष्य है। जब छात्र स्वयं सोचेंगे, स्वयं निर्णय लेंगे और स्वयं कार्य करेंगे, तभी वे भविष्य में सशक्त नागरिक बन पाएँगे। नई शिक्षा नीति इसी दिशा में छात्रों को आत्मनिर्भर, नवाचारी और जिम्मेदार बनाने का अवसर देती है। इसलिए आज छात्रों में स्वावलंबी बनने का स्वभाव विकसित करने की आवश्यकता है । यदि विद्यार्थी स्वावलंबी बनते हैं तो वे समाज और राष्ट्र के विकास में सक्रिय योगदान दे सकते हैं। इससे आत्मनिर्भर भारत की नींव मजबूत होगीं। स्वावलंबन के लिए उन्हें कौशल आधारित शिक्षा केवल सैद्धांतिक ज्ञान नहीं, बल्कि वोकेशनल ट्रेनिंग, हैंड्स-ऑन लर्निंग और इंटर्नशिप।प्रोजेक्ट और असाइनमेंट से बच्चों को जिम्मेदारी देकर स्वयं कार्य पूरे करने की आदत डालना।स्टार्ट-अप और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए विद्यालय/महाविद्यालय स्तर पर इनोवेशन क्लब और स्टार्ट-अप प्रकोष्ठ स्थापित करना होगा ।साथ ही सह-पाठ्यक्रम गतिविधियाँ जैसे खेल, कला, विज्ञान प्रदर्शनी आदि बढ़ानी होगी जिससे उनमें आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता बढ़ेगी ।
विद्यार्थी अब कल का नहीं आज का नागरिक
विद्यार्थी अब कल का नहीं आज का नागरिक है और उसके कंधों पर समाज एवं राष्ट्र की प्रगति का भार है। नई शिक्षा नीति ने युवाओं की क्रिटिकल थिंकिंग, नवाचार और सामाजिक भागीदारी पर जोर दिया है। यदि हम विद्यार्थियों की ऊर्जा को सही दिशा दें तो वे आज ही देश और समाज के विकास की धुरी बन सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2047 तक भारत को “विकसित राष्ट्र” बनाने का संकल्प रखा है। “विकसित भारत@2047” के इस संकल्प की पूर्ति में युवाओं और विद्यार्थियों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि आज का युवा ही कल का नेतृत्वकर्ता, वैज्ञानिक, शिक्षक, उद्यमी और नीति निर्माता बनेगा लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का “विकसित भारत@2047” विज़न भी तभी सफल होगा जब युवा और विद्यार्थी केवल डिग्रीधारी नहीं, बल्कि नवाचारक, उद्यमी, जिम्मेदार नागरिक और नैतिक नेता बनेंगे । भारत की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी युवा है, यही “डेमोग्राफिक डिविडेंड” 2047 तक भारत को विश्वगुरु और विकसित राष्ट्र बनाने की सबसे बड़ी ताकत है।
(लेखक वासुदेव देवनानी राजस्थान विधानसभा के माननीय अध्यक्ष है)