'ज्ञान भारतम्' हितधारक परामर्श बैठक में बोले केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत

Edited By Chandra Prakash, Updated: 14 Jul, 2025 07:23 PM

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केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा है कि पांडुलिपियां केवल ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की वैज्ञानिक, दार्शनिक और भाषिक विविधता की अमूल्य निधि हैं। उन्होंने जोर दिया कि इन पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण और...

जयपुर/नई दिल्ली, 14 जुलाई 2025। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा है कि पांडुलिपियां केवल ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की वैज्ञानिक, दार्शनिक और भाषिक विविधता की अमूल्य निधि हैं। उन्होंने जोर दिया कि इन पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण और वैज्ञानिक संरक्षण से भारत की प्राचीन ज्ञान-परंपरा को वैश्विक मंच पर स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।

सोमवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित 'ज्ञान भारतम्' हितधारक परामर्श बैठक में शेखावत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत केवल आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी पुनर्जागरण की ओर अग्रसर है। प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए व्यापक स्तर पर योजनाबद्ध कार्य हो रहा है, जिससे हजारों दुर्लभ ग्रंथ डिजिटल रूप में सुरक्षित किए जा रहे हैं।

शेखावत ने कहा कि विकसित भारत के दृष्टिकोण में संस्कृति और ज्ञान परंपरा की रक्षा एवं संवर्धन को केंद्रीय स्थान प्राप्त है। इसी सोच के तहत ‘भारतीय ज्ञान परंपरा’ परियोजना को राष्ट्रीय मिशन के रूप में गति दी जा रही है। उन्होंने बताया कि दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण और डिजिटलीकरण का कार्य व्यापक स्तर पर हो रहा है, और आने वाले वर्षों में इसको और गति मिलेगी।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह कार्य आधुनिक तकनीकों जैसे  ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन, एआई आधारित वर्गीकरण और भाषायी अनुवाद के माध्यम से किया जा रहा है, जिससे देश-विदेश के शोधकर्ताओं को इनका लाभ मिल सके।

शेखावत ने आगे कहा कि आने वाले समय में देश के विश्वविद्यालयों, पारंपरिक ज्ञान के केंद्रों, गुरुकुलों, मठों और निजी संग्रहों को जोड़ते हुए एक अखिल भारतीय डिजिटल पांडुलिपि नेटवर्क तैयार किया जाएगा, जिसके तहत एक एकीकृत पोर्टल पर इन ग्रंथों को सुलभ कराया जाएगा, जिसका लाभ विद्यार्थियों, शोधार्थियों के साथ-साथ आमजन को तो मिलेगा ही, बल्कि भारतीय संस्कृति को विश्व मंच पर एक नई पहचान भी मिलेगी।

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