Edited By Rahul yadav, Updated: 12 Nov, 2024 01:23 PM
Rajasthan By Election: उपचुनाव में प्रदेश की 2 सीटें ऐसी हैं, जहां पर निर्दलीय उम्मीदवार और दो सीटों पर क्षेत्रीय दल के उम्मीदवार के उतरने से मुकाबला कांटे का हो गया है.
राजस्थान में विधानसभा की सात सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए आज चुनाव प्रचार का अंतिम दिन है। 13 नवंबर को मतदान होगा और 23 नवंबर को परिणाम घोषित किए जाएंगे। इस उपचुनाव में राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी बीजेपी के बीच जोरदार टक्कर देखने को मिल रही है। दोनों ही पार्टियों के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है।
कांग्रेस अपनी सीटों को बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, वहीं बीजेपी इस उपचुनाव में जीत हासिल कर हाल के लोकसभा चुनावों में हुई 11 सीटों की हार की भरपाई करना चाहती है। राजस्थान बीजेपी के अध्यक्ष मदन राठौड़ के लिए भी यह उपचुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि कुछ महीने पहले ही उन्हें पार्टी की राज्य इकाई की कमान सौंपी गई थी। इस चुनाव में उनकी रणनीति और नेतृत्व कौशल का भी इम्तिहान होगा।
कांग्रेस की अकेले मैदान में लड़ाई
राजस्थान में उपचुनाव में कांग्रेस इस बार अपने दम पर मैदान में उतरी है। लोकसभा चुनावों में प्रदेश की 25 सीटों पर गठबंधन करके चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने इस उपचुनाव में किसी दल के साथ गठबंधन नहीं किया है। इसके बावजूद कांग्रेस को निर्दलीय, बागी और क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, बीजेपी ने भी सभी सात सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इसके अलावा बीएपी (भारतीय आम आदमी पार्टी) दो सीटों पर और आरएलपी (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) एक सीट पर चुनाव लड़ रही है।
झुंझुनूं में निर्दलीय उम्मीदवार से कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ीं
झुंझुनूं सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है। इस सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बृजेंद्र ओला ने जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में लोकसभा चुनाव जीतकर वे सांसद बन गए। इस कारण यह सीट खाली हो गई और अब कांग्रेस ने उनके परिवार से ही अमत ओला को उम्मीदवार बनाया है। झुंझुनूं में ओला परिवार की अच्छी पकड़ मानी जाती है, लेकिन इस बार बीजेपी ने यहां से राजेंद्र भांबू को मैदान में उतारकर चुनौती दी है।
इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राजेंद्र सिंह गुढ़ा के मैदान में उतरने से कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। गुढ़ा पहले कांग्रेस के ही नेता थे, लेकिन अब निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और उनका प्रभाव कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गुढ़ा न केवल कांग्रेस बल्कि बीजेपी का गणित भी बिगाड़ सकते हैं और इसका असर चुनावी नतीजों पर देखने को मिल सकता है।
टोंक जिले की देवली-उनियारा सीट पर कांटे की टक्कर
देवली-उनियारा सीट पर भी रोचक मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां बीजेपी ने राजेंद्र गुर्जर को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने केसी मीणा को मैदान में उतारा है। लेकिन, इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका उसके ही बागी उम्मीदवार नरेश मीणा ने दिया है। नरेश मीणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया है और हाल ही में उन्होंने 5,000 वाहनों के साथ एक रोड शो करके अपनी ताकत का प्रदर्शन किया था।
इस क्षेत्र में मीणा और गुर्जर समुदाय के वोटरों की बड़ी संख्या है और वे चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। यहां पर कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 2 हजार 721 है, जिसमें से एसटी-मीणा समुदाय के 65 हजार और गुर्जर समुदाय के 54 हजार मतदाता हैं। इस जातीय गणित के कारण यहां कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए जीत का रास्ता मुश्किल होता दिख रहा है। नरेश मीणा के मैदान में उतरने से कांग्रेस का वोट बैंक बंट सकता है और इससे बीजेपी को भी लाभ हो सकता है।
खींवसर और चौरासी सीट पर दिलचस्प मुकाबला
खींवसर सीट पर आरएलपी (राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी) के टिकट से हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल मैदान में हैं। यह सीट पिछले विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने जीती थी, इसलिए उनकी पत्नी के चुनाव लड़ने से मुकाबला और भी रोमांचक हो गया है। यहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए चुनौतीपूर्ण स्थिति है, क्योंकि कनिका बेनीवाल का प्रभाव क्षेत्र में मजबूत माना जा रहा है।
इसी तरह, चौरासी सीट पर बीएपी के अनिल कटारा चुनाव लड़ रहे हैं, जो राजकुमार रोत के करीबी माने जाते हैं। इस सीट पर राजकुमार रोत की अच्छी पकड़ मानी जाती है और अनिल कटारा की उम्मीदवारी के कारण यहां भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला होने की संभावना है।
राजस्थान के इन उपचुनावों में कुल सात सीटों पर वोट डाले जाएंगे, जिनमें से हर एक सीट पर चुनावी समीकरण और जातीय गणित के कारण मुकाबला रोमांचक बन गया है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए यह उपचुनाव जीतना प्रतिष्ठा का सवाल है, क्योंकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए यह उपचुनाव एक सेमीफाइनल की तरह है।
निर्दलीय उम्मीदवारों और क्षेत्रीय पार्टियों के प्रत्याशियों के मैदान में होने से चुनाव का रोमांच और बढ़ गया है, जिससे यह उपचुनाव 23 नवंबर को आने वाले नतीजों के दिन और भी दिलचस्प हो जाएगा।