Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 10 Jul, 2025 01:48 PM

जयपुर। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12 की इतिहास की नई किताब ‘आजादी के बाद स्वर्णिम इतिहास’ को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। किताब में आज़ादी के बाद भारत के निर्माण में कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी...
जयपुर। राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की कक्षा 12 की इतिहास की नई किताब ‘आजादी के बाद स्वर्णिम इतिहास’ को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। किताब में आज़ादी के बाद भारत के निर्माण में कांग्रेस के प्रधानमंत्रियों जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के योगदान को प्रमुखता से दर्शाया गया है, लेकिन मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, भैरोसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे जैसे नेताओं का उल्लेख तक नहीं है। राज्य की बीजेपी सरकार ने इस किताब को छात्रों को नहीं पढ़ाने का फैसला लिया है। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा है कि यह पुस्तक केवल कांग्रेस का महिमामंडन करती है और भाजपा नेताओं को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है।
क्या है किताब में?
यह किताब राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा 2025 सत्र के लिए प्रकाशित की गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह पहले कांग्रेस सरकार के समय तैयार की गई थी और उसी पुराने संस्करण को नए शैक्षणिक सत्र के लिए दोबारा छाप दिया गया है।
भाग-2 के कवर पेज पर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की तस्वीरें हैं।
किताब में नेहरू, इंदिरा, राजीव, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और अशोक गहलोत की कुल 15 से ज्यादा तस्वीरें हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो पिछले 11 वर्षों से देश की सत्ता में हैं, उनका एक भी फोटो नहीं है और न ही कोई विस्तृत विवरण।
शिक्षा मंत्री ने दी तीखी प्रतिक्रिया
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने मीडिया से बातचीत में कहा: “ऐसा लग रहा है जैसे आज़ादी के बाद का पूरा इतिहास सिर्फ कांग्रेस ने ही रचा हो। लोकतंत्र की हत्या करने वालों की गाथाएं इसमें लिखी गई हैं और मौजूदा प्रधानमंत्री का नाम तक नहीं है। यह किताब किसी भी सूरत में स्कूलों में नहीं पढ़ाई जाएगी।”
पुस्तक मंडल और बोर्ड का पक्ष
राजस्थान बोर्ड के सचिव कैलाश चंद शर्मा का कहना है कि: “बोर्ड की किताबें राज्य सरकार की मंजूरी के बाद ही छपती हैं। सरकार जैसा निर्देश देगी, उसका पालन किया जाएगा।” वहीं, पुस्तक मंडल के सीईओ मनोज कुमार ने कहा कि: “हमारा काम सिर्फ छपाई और वितरण का है। कंटेंट की जिम्मेदारी बोर्ड की है, हमें नहीं पता किताब में क्या छपा है।” विपक्षी दल इसे शिक्षा के भगवाकरण की शुरुआत कह सकते हैं, वहीं राज्य सरकार इसे "तथ्यात्मक और संतुलित इतिहास" पढ़ाने की पहल बता रही है। राजस्थान में इतिहास की इस किताब को लेकर छिड़ी बहस सिर्फ पाठ्यक्रम की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो छात्रों को आने वाले वर्षों में देश के निर्माण की कहानी कैसे और किसके जरिए बताएगी। क्या इतिहास राजनीति से ऊपर होगा? या वह भी सत्ता परिवर्तन के साथ बदलता रहेगा?