राजस्थान में RTE का भविष्य अधर में: 80,000 छात्रों का दाखिला कोर्ट की तारीखों में अटका, सरकार पर बेरुखी का आरोप

Edited By Shruti Jha, Updated: 08 Jul, 2025 06:38 PM

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जयपुर, 8 जुलाई 2028: राजस्थान में शिक्षा का अधिकार (RTE) कानून हर साल की तरह इस बार भी विवादों में घिर गया है, और इसकी कीमत प्रदेश के हजारों जरूरतमंद छात्र और उनके अभिभावक चुका रहे हैं। संयुक्त अभिभावक संघ ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि...

 

 

राजस्थान में RTE का भविष्य अधर में: 80,000 छात्रों का दाखिला कोर्ट की तारीखों में अटका, सरकार पर बेरुखी का आरोप

जयपुर, 8 जुलाई 2028: राजस्थान में शिक्षा का अधिकार (RTE) कानून हर साल की तरह इस बार भी विवादों में घिर गया है, और इसकी कीमत प्रदेश के हजारों जरूरतमंद छात्र और उनके अभिभावक चुका रहे हैं। संयुक्त अभिभावक संघ ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि उसकी कथित बेरुखी के कारण 80,000 से अधिक छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है, जिनका दाखिला खुद शिक्षा विभाग ने लॉटरी के माध्यम से तय किया था। ये सभी छात्र अब राजस्थान हाई कोर्ट में लंबित RTE मामले की तारीखों में उलझ गए हैं।

मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति से टली सुनवाई, उठे सवाल

दरअसल, मंगलवार, 8 जुलाई को राजस्थान हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष RTE मामले की सुनवाई होनी थी। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश के कोर्ट में उपस्थित न होने के कारण मामले पर कोई सुनवाई नहीं हो सकी। इस घटनाक्रम ने संयुक्त अभिभावक संघ को राज्य सरकार पर उंगलियां उठाने का मौका दे दिया है। संघ का कहना है कि अगर राज्य सरकार वास्तव में छात्रों के भविष्य को लेकर गंभीर होती, तो वह मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर मामले की गंभीरता के मद्देनजर जल्द सुनवाई का आग्रह कर सकती थी। लेकिन, न तो सरकार ने ऐसा कोई पत्र लिखा और न ही सरकार का पक्ष रखने वाले वकीलों ने।

संयुक्त अभिभावक संघ राजस्थान के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने इस स्थिति पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "जिस तरह से राजस्थान हाई कोर्ट में पिछले डेढ़ साल से RTE का मामला लंबित पड़ा है और कोई सुनवाई नहीं हो रही है, उससे साफ संकेत मिलते हैं कि राज्य सरकार को विद्यार्थियों के भविष्य से कोई सरोकार नहीं है।"


 

सिस्टम की उदासीनता या निजी स्कूलों का प्रभाव?

यह मामला सिर्फ तकनीकी खामियों या अदालती प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कहीं न कहीं सरकारी सिस्टम की उदासीनता और निजी स्कूलों के प्रभाव पर भी गंभीर सवाल उठाता है। पिछले साल, निजी स्कूल संचालक नर्सरी कक्षाओं में फीस के बिना दाखिला नहीं देने को लेकर कोर्ट गए थे। इस साल, वे प्रारंभिक कक्षाओं से दाखिला देने की मांग को लेकर कोर्ट पहुंच गए हैं। पिछली सुनवाई में राजस्थान हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में प्रारंभिक कक्षाओं से दाखिला देने का आदेश दिया था और अगली सुनवाई 8 जुलाई को निर्धारित की थी।

जैन बिट्टू ने जोर देकर कहा, "अगर सरकार और शिक्षा विभाग सचेत होते, तो अभिभावकों और विद्यार्थियों को न्याय मिल जाता। किंतु अब जब सुनवाई नहीं हुई तो इतना तो स्पष्ट है कि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग निजी स्कूलों के खिलाफ बिल्कुल भी नहीं जाना चाहते।" उनका तर्क है कि सुनवाई टलने से अगली तारीख अगस्त या सितंबर में आएगी, जिससे निजी स्कूलों को लाभ मिलेगा और नए सत्र का 30% से अधिक कोर्स भी पूरा हो जाएगा, जिससे छात्रों को और अधिक नुकसान होगा।


 

हजारों छात्रों के भविष्य पर मंडराता संकट

80,000 छात्रों की लॉटरी निकालने के बावजूद उनके दाखिले का मामला कोर्ट में अटकना एक बड़ी सामाजिक चिंता का विषय है। यह सीधे तौर पर शिक्षा के अधिकार के मौलिक सिद्धांत पर प्रहार करता है। ये छात्र, जो समाज के वंचित तबके से आते हैं, अब अनिश्चितता के भंवर में फंसे हुए हैं। उनके शैक्षिक वर्ष का एक बड़ा हिस्सा पहले ही बीत चुका है, और लगातार देरी उनके सीखने की प्रक्रिया और भविष्य की संभावनाओं पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालेगी।

यह घटनाक्रम सरकार, शिक्षा विभाग और न्यायपालिका सभी के लिए एक गंभीर चुनौती पेश करता है। सवाल यह है कि क्या हम वास्तव में अपने सबसे कमजोर वर्ग के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, या यह केवल कागजी योजनाएं बनकर रह जाएंगी? इस मामले में त्वरित और निर्णायक हस्तक्षेप की आवश्यकता है ताकि इन 80,000 बच्चों को उनका शिक्षा का अधिकार मिल सके और वे अपने भविष्य के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ सकें।

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