Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 20 Aug, 2025 02:00 PM

नई दिल्ली । भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कटघरे में खड़ा किया।
नई दिल्ली । भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कटघरे में खड़ा किया। शेखावत ने दो टूक कहा कि नेहरू जी की इस भूल के कारण एकतरफ किसानों की जमीन सूखी रह गई, दूसरी तरफ लाखों-करोड़ों लोगों के कंठ प्यासे रह गए। उसके बाद में भी भारत को आतंकवाद और युद्ध मिला। कांग्रेस को इन प्रश्नों के उत्तर और स्पष्टीकरण जनता को देना चाहिए।
मंगलवार को संसद भवन परिसर में मीडिया से रू-ब-रू होते हुए शेखावत ने कहा कि देश के विभाजन के समय जो छह नदियां भारत से प्रवाहित हो रही थीं, उनका बंटवारा आजादी के 13 साल बाद हुआ। बंटवारे में जमीन का 80 प्रतिशत हिस्सा भारत और केवल 20 प्रतिशत पूर्वी व पश्चिमी पाकिस्तान को मिला था। भारत के किसानों के भविष्य को दांव पर लगाकर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को देना स्वीकार किया। शेखावत ने कहा कि रावी, व्यास व सतलुज भारत के हिस्से में आईं और सिंधु, चिनाब व झेलम पाकिस्तान को दे दी गईं। भारत की नदियों पर हमारे अधिकार को कई तरीकों से बाधित कर दिया गया। उसकी कीमत देश के किसानों को चुकानी पड़ी।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि दुनिया की यह एकमात्र ऐसी ट्रीटी है, जिसमें दो पक्षों के साथ कोई तीसरा पक्ष (वर्ल्ड बैंक) मौजूद था। किसी भी ट्रीटी का संयोजन करने वाला व्यक्ति हमेशा बीच में बना रहेगा, ऐसा कोई विधान नहीं होता, लेकिन वर्ल्ड बैंक को परमानेंट मिडिलमैन बना दिया गया। टीटी को यादगार बनाने के लिए उसे ऐसे डिजाइन किया गया, जिससे इसमें कभी परिवर्तन नहीं हो सके। उसके कारण से भारत का हाईड्रोइलेक्ट्रिक पोटेंशियल बाधित हुआ। भारत की पानी की आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति पर हमेशा के लिए चैनल लग गया।
शेखावत ने कहा कि कोई भी दो देश जब पानी का बंटवारा करते हैं या दो राज्यों के बीच ऐसा होता है, उसमें कैचमेंट एरिया और योगदान जितना है, उसके आधार पर डिविजन होता है, लेकिन भारत-पाकिस्तान के बीच ट्रीटी में पानी का उपयोग जहां जितना हो रहा है, उसके आधार पर बंटवारा कर दिया गया। उस बंटवारे को पाकिस्तान के पक्ष में झुकने के लिए उसे 85 करोड रुपए नेहरू जी ने देना स्वीकार किया। यह निर्णय करने के लिए उन्होंने कभी भी देश की संसद या तत्कालीन कैबिनेट को विश्वास में नहीं लिया। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जब संसद में दो साल बाद इस पर प्रश्नचिन्ह उठा, तब नेहरू जी ने अपने ही वरिष्ठ साथी अशोक मेहता व अन्य नेताओं पर अपमानजनक टिप्पणियां कीं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश को यह जानने की आवश्यकता है कि किस तरह कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने जब कभी ऐसा अवसर आया, तब हमेशा देशहित के बजाय व्यक्तिगत मान-सम्मान को ऊपर रखा है। उन्होंने बताया कि निरंजन गुलाटी, जो इस ट्रीटी को डिजाइन करने में भारत की तरफ से मध्यस्थ की भूमिका थे, उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मैं जानता था कि यह भारत के खिलाफ हो रहा है। यह समझते हुए कि भारत के दूरगामी हितों को नुकसान पहुंचेगा, मैंने प्रधानमंत्री को कई बार संदेश भेजे। अंततः मुझे मिलने का समय मिला और मैंने अनुरोध किया कि एक बार पुनर्विचार करना चाहिए। इतना पानी देने से भारत को हमेशा-हमेशा के लिए नुकसान होगा। उन्होंने लिखा कि नेहरू जी ने कहा कि इससे ज्यादा पानी देकर भी यदि यह समझौता हो जाता है तो मैं उसके लिए राजी हूं, क्योंकि मैं पानी देकर शांति खरीदना चाहता हूं।
शेखावत ने कहा कि आज निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए प्रश्न जायज है कि कुल 80 बीसीएम पानी, जिसका बंटवारा हुआ, जिसमें से हमको मात्र 16 बीसीएम पानी मिला। उस पानी को भारत के हितों को कुर्बान करके पाकिस्तान को जिस शांति की अपेक्षा में दिया गया था, उससे पहले भी हम युद्ध झेल चुके थे। 1965 व 1971 और उसके बाद यह जानकर की भारत की सेना से प्रत्यक्ष युद्ध में जीता नहीं जा सकता, लगातार 30 साल तक आतंकवाद के माध्यम से छद्म युद्ध भारत के विरुद्ध पाकिस्तान चला रहा है। कारगिल युद्ध, ऑपरेशन पराक्रम, ऑपरेशन सिंदूर, यह सब भारत को झेलने पड़े।