राजस्थान के विश्वविद्यालयों में पेंशन संघर्ष के बीच जोधपुर में एक और कर्मचारी की मौत, अब तक 10 से अधिक जानें जा चुकीं

Edited By Raunak Pareek, Updated: 31 Jul, 2025 03:20 PM

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राजस्थान के विश्वविद्यालयों में पेंशन के लिए संघर्ष कर रहे कर्मचारियों की जान पर बन आई है। जोधपुर में एक और कर्मी की मृत्यु हो गई, जिससे अब तक 10 से अधिक कर्मचारी जान गंवा चुके हैं। सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता पर उठ रहे हैं बड़े...

राजस्थान के विश्वविद्यालयों में पेंशन जैसी बुनियादी सुविधा के लिए वर्षों से संघर्षरत शिक्षक और कर्मचारी अब अपनी जान गंवाने लगे हैं। जोधपुर विश्वविद्यालय से एक और दुखद खबर सामने आई है, जहां अशोक महान नामक कर्मचारी की मृत्यु हो गई। बताया जा रहा है कि अशोक पिछले कई दिनों से पेंशन अभाव के चलते मानसिक और आर्थिक तनाव में थे।

यह कोई पहली घटना नहीं है। अब तक पेंशन के लिए संघर्ष करते हुए 10 से अधिक कर्मचारियों की मृत्यु हो चुकी है, और अन्य विश्वविद्यालयों से प्राप्त सूचनाएं इस आंकड़े को और बढ़ा सकती हैं। पेंशन संघर्ष की अगुवाई राजस्थान विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शिक्षकों जैसे प्रो. एच.एस. शर्मा और प्रो. एन.के. लोहिया ने की है, जिनके नेतृत्व में कई शिक्षकों और कर्मचारियों ने संयुक्त आंदोलन किया। इसके बाद इस मुद्दे ने राजनीतिक तवज्जो भी हासिल की।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री व जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को भी इस मसले पर बोलना पड़ा। हाल ही में शेखावत ने दावा किया कि उनके हस्तक्षेप से सरकार ने पेंशन प्रयोजन के लिए 100 करोड़ रुपये का टर्म लोन स्वीकृत किया है। लेकिन यह लोन एक स्थायी समाधान नहीं, बल्कि एक अस्थायी राहत है, जिसके तहत विश्वविद्यालय को संभवतः अपनी परिसंपत्तियां गिरवी रखनी पड़ सकती हैं।

दुर्भाग्यवश, टर्म लोन की स्वीकृति के बावजूद, विश्वविद्यालय प्रशासन समय रहते इसकी प्रक्रियाएं पूरी नहीं कर सका, जिसका परिणाम अशोक महान की मृत्यु के रूप में सामने आया। इसी तरह, राजस्थान विश्वविद्यालय में भी कर्मचारी महीनों से रिटायर होने के बावजूद पेंशन के लिए भटक रहे हैं। कई बार ये कर्मचारी कुलपति, रजिस्ट्रार और वित्त अधिकारी के कार्यालयों के चक्कर लगाते-लगाते थककर धरनों पर बैठने को मजबूर हो जाते हैं। कर्मचारी नेता मोहम्मद मुस्तफा के नेतृत्व में भी इस मुद्दे को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है।

अब सवाल यह है कि कब तक यह अनदेखी जारी रहेगी? क्या राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन कर्मचारियों की इस पीड़ा को महसूस कर स्थायी समाधान की ओर कोई सार्थक कदम उठाएंगे?

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