Edited By Raunak Pareek, Updated: 25 Jul, 2025 04:50 PM

झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद सामने आईं छात्राओं की आपबीती ने प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोल दी है। मरम्मत के लिए 1.80 लाख रुपये उठाए गए थे, लेकिन उपयोग नहीं हुआ। शिक्षक पर भी गंभीर आरोप।
झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव के सरकारी स्कूल हादसे में जहां 7 मासूमों की जान गई और 27 बच्चे घायल हुए, अब उस भयावह दिन की सच्चाई खुद बच्चों की जुबानी सामने आ रही है। स्कूल की छात्राओं ने बताया कि हादसे से कुछ मिनट पहले ही उन्होंने शिक्षक को छत से गिरते पत्थरों की शिकायत की थी, लेकिन उन्हें डांट-डपटकर क्लास में वापस भेज दिया गया। “सर पोहा खा रहे थे, हमने बताया तो बोले – पत्थर कैसे गिर सकते हैं, जाओ वापस अंदर,” — यह बात एक छात्रा ने मीडिया को बताई।
एक अन्य छात्रा ने बताया कि वे झाड़ू लगा रही थीं, तभी कंकड़ गिरने लगे। जब शिकायत की तो शिक्षक ने गुस्से में डांटा और कोई संज्ञान नहीं लिया। कुछ ही देर में पूरी छत भरभराकर गिर गई। एक बच्ची ने रोते हुए बताया कि उसका भाई उस मलबे में दब गया।
2023 में मरम्मत के नाम पर उठा लिए 1.80 लाख, लेकिन काम नहीं हुआ
गांववालों के अनुसार, स्कूल प्रशासन ने वर्ष 2023 में डांग क्षेत्र विकास योजना के तहत 1 लाख 80 हजार रुपये मरम्मत के नाम पर निकाले थे। लेकिन न तो मरम्मत हुई और न ही हालात सुधरे। कई बार स्कूल, सरपंच और शिक्षा विभाग को शिकायतें दी गईं, लेकिन कार्रवाई शून्य रही।
स्थानीय लोग पहले भी जता चुके थे आशंका
गांव के निवासी राधेश्याम और राकेश ने बताया कि पहले भी लिखित में शिकायत दी गई, स्कूल को ताले भी लगाए गए और रास्ता भी जाम किया गया, लेकिन सरकारी तंत्र ने गंभीरता नहीं दिखाई। एक ग्रामीण ने तो यह भी बताया कि शिक्षकों का कहना था – पत्थर गिरें तो भाग जाना!
शिक्षा मंत्री और विधायक को भी थी जानकारी
हैरानी की बात यह है कि हाल ही में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर और स्थानीय विधायक मनोहर थाना क्षेत्र में दौरे पर आए थे, और जर्जर स्कूलों की जानकारी उन्हें दी गई थी, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यह हादसा सिर्फ एक बिल्डिंग गिरने की घटना नहीं, बल्कि सिस्टमिक लापरवाही की एक खौफनाक मिसाल है — जिसका खामियाजा मासूमों ने अपनी जान देकर चुकाया।