अरावली पर संकट: ‘मां के स्तन काटने’ जैसा है खनन — वाटरमैन ऑफ इंडिया राजेंद्र सिंह का बड़ा आरोप

Edited By Sourabh Dubey, Updated: 24 Dec, 2025 07:30 PM

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अरावली पर्वत श्रृंखला पर मचे घमासान के बीच पंजाब केसरी राजस्थान ने पर्यावरण आंदोलन के सबसे मजबूत चेहरों में से एक, Rajendra Singh से विशेष बातचीत की। इस Exclusive Interview में उन्होंने हालिया घटनाक्रम, खनन, न्यायपालिका के फैसलों और सरकारों की...

जयपुर। अरावली पर्वत श्रृंखला को लेकर एक बार फिर देशभर में चिंता गहरा गई है। पर्यावरण संरक्षण और जल-सुरक्षा के लिए दशकों से काम कर रहे Rajendra Singh ने हालिया घटनाक्रम को “अरावली जैसी मां के साथ जघन्य अपराध” करार दिया है। उनका कहना है कि भारतीय शास्त्रों में पर्वतों को मां के स्तन कहा गया है—जो जीवन का पोषण करते हैं। ऐसे में पहाड़ काटकर मुनाफा कमाना आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से खिलवाड़ है।

सुप्रीम कोर्ट और पर्यावरण कानूनों के बावजूद खनन क्यों?

राजेंद्र सिंह के अनुसार, 1990 के दशक में न्यायपालिका और पर्यावरण मंत्रालय के हस्तक्षेप से अरावली क्षेत्र में हजारों खदानें बंद हुई थीं। 1993 में पूरे अरावली क्षेत्र में खनन रोकने का नोटिफिकेशन भी जारी हुआ।
लेकिन 2000 के बाद वैश्वीकरण और उदारीकरण के दौर में लीगल–इललीगल माइनिंग दोबारा सिर उठाने लगी। सिंह का आरोप है कि आज अधिकारी–राजनेता–व्यापारी का “त्रिकुट (नेक्सस)” अरावली को खोखला कर रहा है।

“100 मीटर का फार्मूला” और नया विवाद

हालिया आदेशों में ऊंचाई के 100 मीटर के दायरे को लेकर दी गई छूट पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे पर्वत का बड़ा हिस्सा कटेगा, जिससे हरित आवरण, जल-संचयन और पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान होगा।

राजेंद्र सिंह इसे “रीढ़ बचाने के नाम पर हाथ–पैर काटने” जैसा बताते हैं।

अरावली टूटी तो क्या होगा? (राजस्थान–हरियाणा–दिल्ली पर असर)

राजेंद्र सिंह चेतावनी देते हैं कि अगर अगले 10 वर्षों में अरावली नहीं बची, तो:

  • पश्चिमी भारत का बड़ा हिस्सा रेगिस्तान में बदल सकता है

  • बेमौसम बारिश, बाढ़ और सूखे की घटनाएं बढ़ेंगी

  • बादल बिना बरसे आगे निकल जाएंगे (Run Shadow Effect)

  • खेती, पशुपालन और ग्रामीण आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा

  • जल-सुरक्षा कमजोर होगी, जिससे शहरों तक संकट पहुंचेगा

किसान, चरवाहे और ग्रामीण जीवन पर सीधा प्रभाव

अरावली क्षेत्र की खेती मुख्यतः वर्षा जल पर निर्भर है। पर्वत कटने से वर्षा-पैटर्न बिगड़ता है, तापमान बढ़ता है और चारे–पानी की कमी होती है। नतीजतन खेती और पशुपालन दोनों संकट में पड़ते हैं, जिससे पलायन बढ़ता है।

विकास बनाम पर्यावरण नहीं, ‘सनातन विकास’ की जरूरत

राजेंद्र सिंह मौजूदा विकास मॉडल को लालची विकास बताते हैं। उनका विकल्प है—सनातन विकास, जिसमें:

  • प्रकृति और संस्कृति का संतुलन

  • विस्थापन नहीं, पुनर्जीवन (Rejuvenation)

  • प्रदूषण नहीं, संरक्षण

  • खनन नहीं, हरित आवरण और जल-संचयन

उनके शब्दों में, “धरती हमारी जरूरत पूरी कर सकती है, लालच नहीं।”

युवाओं और आम नागरिकों से अपील

  • पहाड़, नदियां, हवा और जलवायु को स्वस्थ रखना ही असली विकास

  • अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाएं

  • स्थानीय स्तर पर जल-संरक्षण, जंगल बचाने और हरित अभियानों से जुड़ें

  • नीति–निर्माताओं से जवाबदेही मांगें

राजेंद्र सिंह के अनुसार, अरावली के युवा आज सबसे आगे हैं—गांव से लेकर विश्वविद्यालयों तक यह चिंता साझा भविष्य की लड़ाई बन चुकी है। अरावली केवल भूगोल नहीं, भारत की जल-सुरक्षा की दीवार है। अगर यह दीवार टूटी, तो असर सीमित नहीं रहेगा—राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। सवाल साफ है—क्या हम मां की सेवा करेंगे या माई से कमाई? निर्णय आज का है, परिणाम आने वाली पीढ़ियों का।

 

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