Edited By Shruti Jha, Updated: 23 Jul, 2025 02:48 PM

राजस्थान में अवैध हथियारों की तस्करी पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। अपराधी अब डिजिटल माध्यमों का सहारा ले रहे हैं, जहां खरीद-फरोख्त ऐप्स, चैट और कोडवर्ड के ज़रिए होती है। कई मामलों में तो सप्लायर और खरीदार कभी मिलते ही नहीं, बल्कि दलाल...
राजस्थान में अवैध हथियारों की तस्करी बनी चुनौती: डिजिटल लेन-देन और कोडवर्ड से हो रही डीलिंग
जयपुर, 23 जुलाई 2025 – राजस्थान में अवैध हथियारों की तस्करी पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। अपराधी अब डिजिटल माध्यमों का सहारा ले रहे हैं, जहां खरीद-फरोख्त ऐप्स, चैट और कोडवर्ड के ज़रिए होती है। कई मामलों में तो सप्लायर और खरीदार कभी मिलते ही नहीं, बल्कि दलाल नेटवर्क के ज़रिए हथियारों की डिलीवरी कराई जाती है।
बढ़ते मामले और बरामदगी
पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के अनुसार, साल 2025 में अब तक प्रदेश में अवैध हथियारों की तस्करी से जुड़े 205 मामले दर्ज हो चुके हैं, जो पिछले वर्षों के मुकाबले लगातार बढ़ रहे हैं। वर्ष 2024 में 174, 2023 में 150, 2022 में 141 और 2021 में 125 केस दर्ज किए गए थे। इस साल के शुरुआती छह महीनों में ही पुलिस ने 215 अवैध हथियार जब्त किए हैं, जबकि 2024 में पूरे साल में 174 हथियार जब्त हुए थे। हाल ही में, झुंझुनूं और हनुमानगढ़ जिलों में पुलिस ने कार्रवाई करते हुए एके-47 राइफल, 32 बोर की पिस्टल और दर्जनों कारतूस बरामद किए, जिनके तार हरियाणा और पंजाब के गैंगस्टरों से जुड़े होने की आशंका है।
मध्यप्रदेश और हरियाणा से सप्लाई नेटवर्क
जांच में सामने आया है कि अधिकतर अवैध हथियार मध्य प्रदेश के खरगोन, बड़वानी और धार जैसे क्षेत्रों से लाए जाते हैं। इसके अलावा, हरियाणा के भिवानी और महेंद्रगढ़ से भी सप्लाई करने वाले गिरोह राजस्थान के अपराधियों से जुड़े हुए हैं। चूंकि राजस्थान के सीमावर्ती जिले हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के निकट हैं, इसलिए इन इलाकों में हथियारों की आवक और नेटवर्किंग ज़्यादा देखी जा रही है। पुलिस ने अब इन संवेदनशील मार्गों पर अपनी निगरानी बढ़ा दी है।
संवेदनशील जिले और पुलिस की रणनीति
पुलिस ने जयपुर, झुंझुनूं, चूरू, नागौर, अलवर, श्रीगंगानगर, कोटा, भरतपुर, करौली और बाड़मेर जिलों को "संवेदनशील" सूची में रखा है। इन जिलों में स्थानीय पुलिस के अलावा, विशेष साइबर टीमें भी डिजिटल निगरानी कर रही हैं। पिछले दो वर्षों में अवैध हथियारों का इस्तेमाल अधिकतर गैंगवार, फिरौती और दबाव बनाने जैसे आपराधिक मामलों में हुआ है।
पुलिस मुख्यालय का दावा है कि लगातार कार्रवाई से कई अवैध नेटवर्क टूट गए हैं। अब पुलिस "कस्टमर बेस" पर भी काम कर रही है, यानी हथियारों की मांग करने वाले व्यक्तियों को भी निगरानी में रखा जा रहा है। गृह विभाग ने कॉलेजों, सीमावर्ती गांवों और बड़ी कृषि मंडियों में छिपे नेटवर्क की तलाश के निर्देश दिए हैं। इन इलाकों में पुलिस डोर-टू-डोर इंटेलिजेंस और संदिग्ध व्यक्ति निगरानी अभियान चलाएगी ताकि इस खतरे को जड़ से खत्म किया जा सके।