Edited By Raunak Pareek, Updated: 27 Nov, 2024 08:00 PM
राजस्थान में पंचायत चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। जनवरी में 40% पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो रहा है, और सवाल यह है कि क्या चुनाव होंगे या प्रशासक नियुक्त होंगे।
राजस्थान में पंचायत चुनाव को लेकर स्थिति अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है, जिससे राज्य में राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। राज्य की 40 प्रतिशत पंचायतों का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो रहा है, और इसके बाद सवाल यह उठ रहा है कि क्या पंचायत चुनाव एक साथ होंगे, या फिर सरकार इन पंचायतों में प्रशासक नियुक्त करेगी?
राजस्थान की 11 हजार से ज्यादा पंचायतों में इन सवालों की गूंज है कि पंचायतों में प्रशासक लगेंगे या चेयरमैन?,क्या पंचायतों में सरकार लगाएगी प्रशासक...? ,क्या जनवरी में टलेंगे पंचायत चुनाव...? ,क्या वन स्टेट वन इलेक्शन के तहत होंगे इलेक्शन?
क्योंकि चुनावों पर अभी तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया है। जनवरी में 6759 पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, जबकि बाकी पंचायतों का कार्यकाल 2025 तक रहेगा। इस बीच, सरकार ने राज्य में 49 निकायों में प्रशासक नियुक्त किया है, लेकिन पंचायतों में क्या कदम उठाए जाएंगे, यह अभी तक तय नहीं हो पाया है। पंचायतीराज मंत्री मदन दिलावर ने एक मीडिया चैनल से बातचीत में कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय कैबिनेट की मीटिंग में लिया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि राजस्थान का मामला एमपी या झारखंड से अलग होगा और सरकार पंचायत चुनावों के लिए सही समय पर निर्णय लेगी।
पंचायतीराज चुनावों के भविष्य को लेकर कयास
राज्य के 40 प्रतिशत सरपंचों का कार्यकाल जनवरी में खत्म होने वाला है, और इस समय तक सरकार को निर्णय लेना होगा कि क्या पंचायतों में प्रशासनिक नियुक्तियां की जाएंगी, या फिर सरपंचों को ही चेयरमैन के रूप में जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। पंचायतों के चुनावों को लेकर मंत्रिमंडल की मीटिंग में जल्द ही फैसला लिया जा सकता है। हालांकि, राज्य निर्वाचन विभाग ने इस विषय में अब तक कोई तैयारियां नहीं की हैं।
पंचायतीराज मंत्री मदन दिलावर का कहना है कि चुनावों के बारे में सरकार जल्द ही फैसला लेगी और इस फैसले से किसी भी जनप्रतिनिधि को कंफ्यूजन में नहीं आना चाहिए।
कार्यकाल समाप्त होने वाली पंचायतों की सूची:
• जनवरी 2025: 6759 ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त
• मार्च 2025: 704 पंचायतों का कार्यकाल खत्म
• सितंबर 2025: 3847 पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होगा
इसके बाद 2026 में भी कई पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होगा, जिसमें जिला परिषद और पंचायत समितियां शामिल हैं।
पंचायतों में प्रशासक या सरपंच?
राज्य सरकार ने हाल ही में 49 निकायों में प्रशासक नियुक्त किए हैं, और अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पंचायतों में भी इसी तरह प्रशासक लगाए जाएंगे, या फिर पंचायतों की जिम्मेदारी सरपंचों को सौंपी जाएगी। पंचायत चुनावों की तारीखों को लेकर सस्पेंस बना हुआ है, और यह निर्भर करता है कि मंत्रिमंडल की मीटिंग में सरकार क्या फैसला करती है।
सरपंचों ने की मुख्य सचिव से मुलाकात
राज्य के सरपंचों ने भी इस मामले में अपनी राय दी है। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश और झारखंड की तर्ज पर जब तक पंचायत चुनाव नहीं होते, तब तक कमेटी बनाई जाए और इसका चेयरमैन सरपंचों को बनाया जाए। इस संबंध में उन्होंने मुख्य सचिव सुधांश पंत से भी मुलाकात की है और अपनी बात रखी है।
सरकार जल्द लेगी पंचायत चुनाव पर फैसला?
पंचायत चुनावों को लेकर सवालों की कोई कमी नहीं है, और यह राज्य सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इन पंचायतों में क्या कदम उठाती है। क्या सरकार पंचायतों में प्रशासक लगाएगी, या पंचायत चुनावों की तैयारी करेगी? यह फैसला जल्द ही लिया जाएगा, जिससे राज्य की सियासत में और हलचल मच सकती है। जनवरी में पंचायतों के चुनाव होंगे या नहीं, यह सवाल फिलहाल बाकी है।
वन नेशन-वन इलेक्शन का कॉन्सेप्ट:
भारत में वन नेशन-वन इलेक्शन का मतलब है कि संसद के निचले सदन यानी लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं। इसके साथ ही स्थानीय निकायों यानी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों के चुनाव भी हों। इसके पीछे विचार है कि ये चुनाव एक ही दिन या फिर एक निश्चित समय सीमा में कराए जा सकते हैं। कई सालों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराने पर जोर देते रहे हैं।
वन नेशन-वन इलेक्शन के फायदे:
एक देश एक चुनाव का सबसे बड़ा फायदा यह है कि चुनाव का खर्च घट जाएगा। अलग-अलग चुनाव कराने पर हर बार भारी-भरकम राशि खर्च होती है। बार-बार चुनाव होने से प्रशासन और सुरक्षा बलों पर बोझ पड़ता है, क्योंकि उन्हें हर बार चुनाव ड्यूटी करनी पड़ती है। एक बार में चुनाव निपट जाने पर केंद्र और राज्य सरकारें कामकाज पर फोकस कर सकेंगी। बार-बार वह इलेक्शन मोड में नहीं जाएंगी और विकास के कामों पर ध्यान दे सकेंगी।
एक ही दिन चुनाव होने से वोटरों की संख्या भी बढ़ेगी, क्योंकि उनको यह नहीं लगेगा कि चुनाव तो आते ही रहते हैं। वे घरों से निकलकर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने में रुचि दिखाएंगे।
वन नेशन-वन इलेक्शन के सामने चुनौतियां:
वन नेशन-वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने में सबसे बड़ी चुनौती है संविधान और कानून में बदलाव। एक देश एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा। इसके बाद इसे राज्य विधानसभाओं से पास कराना होगा। वैसे तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पांच साल का होता है पर इन्हें पहले भी भंग किया जा सकता है।
ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी कि अगर लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा भंग होती है तो एक देश, एक चुनाव का क्रम कैसे बनाए रखे।
अपने देश में ईवीएम और वीवीपैट से चुनाव होते हैं, जिनकी संख्या सीमित है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव अलग-अलग होने से इनकी संख्या पूरी पड़ जाती है। एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव होंगे तो अधिक मशीनों की जरूरत पड़ेगी। इनको पूरा करना भी चुनौती होगी। फिर एक साथ चुनाव के लिए ज्यादा प्रशासनिक अफसरों और सुरक्षाबलों की जरूरत को पूरा करना भी एक बड़ा सवाल बनकर सामने आएगा।