आरटीआई कानून के 20 साल: कांग्रेस ने मोदी सरकार पर साधा निशाना, पारदर्शिता कमजोर करने के लगाए आरोप

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 12 Oct, 2025 07:34 PM

20 years of rti act

जयपुर । राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा तथा नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली द्वारा आरटीआई एक्ट लागू होने के 20 वर्ष पूर्ण होने पर जारी वक्तव्य

जयपुर । राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा तथा नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली द्वारा आरटीआई एक्ट लागू होने के 20 वर्ष पूर्ण होने पर जारी वक्तव्य

डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और सोनिया गांधी के दूरदर्शी नेतृत्व में 12 अक्टूबर 2005 को ऐतिहासिक सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम अस्तित्व में आया। यह यूपीए सरकार के अधिकार-आधारित एजेंडा की पहली कड़ी थी, जिसमें मनरेगा (2005), वन अधिकार अधिनियम (2006), शिक्षा का अधिकार (2009), भमि अधिग्रहण मेंउचित मुआवज़ा का अधिकार अधिनियम (2013) और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) शामिल थे।

इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों के पास मौजूद जानकारी तक पहुंच प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना था, ताकि शासन व्यवस्था अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बन सके। आरटीआई समाज के सबसे हाशिए पर बसे लोगों के लिए जीवन रेखा साबित हुई है- इसने नागरिकों को उनके हक़ जैसे राशन, समय पर पेंशन, बकाया मज़दूरी  और छात्रवृत्तियां दिलाने में मदद की है। इसने सुनिश्चित किया कि सबसे ग़रीब व्यक्ति को जीवन की बुनियादी ज़रूरतों सेवंचित न किया जाए।

2014 के बाद से RTI लगातार कमज़ोर की जा रही है, जिससे हमारे देश की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक ढांचे पर आघात हुआ है।

1. कानून पर हमले (सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005)
2019 के संशोधनों ने स्वतंत्रता को कमज़ोर किया और कार्यपालिका का प्रभाव  बढ़ाया। 2019 के संशोधन ने सूचना आयोगों की स्वायत्तता को कमज़ोर कर दिया।  पहले, आयुक्तों का कार्यकाल 5वर्ष का तय था और उनकी सेवा शर्तें सुरक्षित थीं।  संशोधन के बाद केंद्र सरकार को कार्यकाल और सेवा शर्तेंतय करनेका अधिकार दे दिया गया, जिससे स्वतंत्रता प्रभावित हुई और कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ा।

 
2023 - डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम और धारा 44(3) डिजिटल     पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन अधिनियम ने आरटीआई की धारा 8 (1) (र) में संशोधन     किया, जिससे “व्यक्तिगत जानकारी” की परिभाषा का दायरा बहुत बढ़ा दिया गया।     पहले, “व्यक्तिगत जानकारी ”जनहित मेंहोनेपर उजागर की जा सकती थी, लेकिन अब संशोधित प्रावधान कहता है- “कोई भी ऐसी जानकारी जो व्यक्तिगत जानकारी से संबंधित हो, प्रकट नहीं की जाएगी।” इसका अर्थ ह ैकि “व्यक्तिगत जानकारी” को पूर्णतः अपवाद बना दिया गया है। इससे सार्वजनिक कर्तव्यों या सार्वजनिक धन के उपयोग से संबंधित जानकारी का खुलासा भी रोका जा सकता है,जो आरटीआई के पारदर्शिता सिद्धांत के विरुद्ध है। महत्वपर्णू सार्वजनिक डेटा को “निजी” मानकर यह संशोधन मतदाता सूची, व्यय विवरण या अन्य जनहित से जुड़ी सूचनाओं के प्रकटीकरण से इनकार का रास्ता खोल देता है। इससे सार्वजनिक निगरानी की प्रक्रिया पर सीधा असर पड़ता है- यही प्रक्रिया थी जिसके ज़रिए एमपीएलएडी फंड के दुरूपयोग, मनरेगा में फर्जी लाभार्थियों और अस्पष्ट राजनीतिक  फंडिंग जैसी अनेक गड़बड़ियां उजागर हुई थीं।

2. केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों पर हमले
रिक्तियां

केंद्रीय सूचना आयोग आज अपनी अब तक की सबसे कमज़ोर स्थिति में है- 11 स्वीकृत पदों के मुकाबले केवल दो आयुक्त कार्यरत हैं और सितंबर 2025 के बाद मुख्य आयुक्त का पद भी रिक्त है। इस तरह की स्थिति यूपीए शासन के दौरान कभी नहीं रही।

सामाजिक कार्यकर्यर्ताओं जैसे अंजलि भारद्वाज की याचिकाओं पर कार्यवाही करते हुए सर्वाच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को नियुक्तियों की समयबद्ध और पारदर्शी प्रक्रिया अपनाने का निर्देश दिया था। फिर भी बार-बार के न्यायिक आदेशों के बावजूद कई पद महीनों तक रिक्त पड़े हैं। सतर्क नागरिक संगठन (Satark Nagrik Sangathan) की ‘रिपोर्ट कार्ड ऑफ इन्फ़ॉर्मेशन कमिशन्स (2023-24)’, जो अक्टूबर 2024 में जारी हुई, के अनुसार 29 में से 7 राज्य सूचना आयोग विभिन्न अवधियों के दौरान निष्क्रिय रहे।

लंबित मामलें और डेटा की अनुपलब्धता
जून 2024 तक देशभर के 29 आयोगों में लगभग 4,05,000 अपीलें और शिकायतें लंबित थी- जो 2019 की तुलना में लगभग दोगुनी हैं। नवंबर 2024 तक केवल केंद्रीय सूचना आयोग में ही लगभग 23,000 लंबित मामले हैं। जब आरटीआई के माध्यम से प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों पर हुए करोड़ों रुपये के खर्च, कोविड महामारी के दौरान ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की वास्तविक संख्या या पीएम केयर्स फण्ड के उपयोग से जुड़ी जानकारी मांगी गई, तो कोई जवाब नहीं दिया गया। इलेक्टोरल बॉण्ड्स मामलें में एसबीआई ने आरटीआई के तहत् डेटा देने से इनकार किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। केवल तब जाकर राजनीतिक दलों को प्राप्त चंदों का डेटा सार्वजनिक हुआ।

3. व्यक्तियों पर हमले
भोपाल की कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् शहला मसूद जो अवैध खनन को उजागर करती थीं की उनके ही घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले की सीबीआई जांच में पाया गया कि आरोपियों में एक इंटीरियर डिजाइनर भी शामिल था। सतीश शेट्टी जो भूमि घोटालों को उजागर करने के लिए जाने जाते थे, उन पर सुबह की सैर के दौरान धारदार हथियारों से हमला कर हत्या कर दी गई। सीबीआई जाच में इसमें रियल एस्टेट माफिया की संलिप्तता सामने आई।

ऐसे मामले इस बात की भयावह याद दिलाते हैं कि आरटीआई कार्यकर्ताओं को कितने खतरों का सामना करना पड़ता है। अनेक कार्यकर्ता और नागरिक जो आरटीआई का उपयोग करते हैं. उन्हें उत्पीड़न धमकियों और हमलों का शिकार होना पड़ा है। इससे लोगों के भीतर भय का माहौल बना है और नागरिक आरटीआई का निर्भयता से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।

व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट पारित हुआ पर लागू नहीं हुआ
व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन अधिनियम, जिसे पारित किया जा चुका है. अब तक लागू नहीं हुआ है और इसके नियम अधिसूचित नहीं किए गए हैं। यह विधेयक यूपीए सरकार द्वारा पेश किया गया था और ससद के दोनों सदनों से पारित भी हुआ था, लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल (2014 के बाद) में न तो कानून लागू किया गया और न ही नियम बनाए गए।

सुरक्षात्मक तंत्र के अभाव में प्रशासनिक अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले व्यक्ति धमकियों उत्पीडन और हिंसक हमलों के पति असुरक्षित बने हुए हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य उन लोगों की रक्षा करना था जो भ्रष्टाचार या गलत कार्यों का खुलासा करते हैं लेकिन इसके लागू न होने से ये सभी सुरक्षा उपाय अर्थहीन हो गए हैं। अमेरिका या यूरोपीय संघ जैसे लोकतंत्रों ने माना है कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा आवश्यक है. जबकि भारत एक ऐसा अपवाद है जहाँ कानून होते हुए भी सरकार ने इसे लागू करने से परहेज किया है।

सूचना का अधिकार अधिनियम की 20वीं वर्षगाठ पर हम दोहराते हैं कि सूचना का अधिकार केवल एक कानून नहीं बल्कि भारत के नागरिकों के संवैधानिक और सामाजिक सशक्तिकरण का माध्यम है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस निम्नलिखित मांगे रखती है
1. 2019 के सशोधनों को निरस्त कर सूचना आयोगों की स्वतंत्रता बहाल की जाए और आयुक्तों के लिए 5 वर्ष का निश्चित कार्यकाल व सुरक्षित सेवा शर्ते सुनिश्चित की जाएं।

2.डीपीडीपी अधिनियम की उन धाराओं। धारा 44(3)) की समीक्षा व संशोधन किया जाए जो आरटीआई के जनहित उद्देश्य को कमजोर करती है।

3.केंद्र और राज्य आयोगों में सभी रिक्तियों पारदर्शी व समयबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से तुरंत भरी जाएं।

4.आयोगों के लिए कार्य निष्पादन मानक तय किए जाएं और निपटान दर की सार्वजनिक रिपोटिंग अनिवार्य की जाएं।

5.व्हिसलब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम को पूर्ण रूप से लागू कर आरटीआई     उपयोगकतोओं और व्हिसलब्लोअर्स को सशक्त सुरक्षा प्रदान की जाए।

6.आयोगों में विविधता सुनिश्चित की जाए पत्रकारों कार्यकताओं शिक्षाविदों और महिला प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।

आरटीआई आधुनिक भारत के सबसे महत्वपूर्ण लोकताबिक सुधारों में से एक है। इसकी कमजोरी लोकतंत्र की कमजोरी है। आरटीआई की 20वीं वर्षगाठ पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस कानून की रक्षा और सशक्तिकरण के अपने संकल्प को दोहराती है ताकि हर नागरिक निडर होकर सवाल पूछ सके और समयबद्ध व प्रभावी उत्तर प्राप्त कर सके।
 

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