Edited By PTI News Agency, Updated: 23 Jan, 2023 11:31 PM
जयपुर, 23 जनवरी (भाषा) लेखिका निलंजना भौमिक मुंबई की लोकल में अपनी यात्राओं के दौरान महिलाओं को सब्जियां काटते और आटा गूंधते देखती हैं और पाती हैं कि वे भी पूरा दिन अपने-अपने दफ्तरों में काम करने के बाद घर के कामकाज भी करने को मजबूर हैं।
जयपुर, 23 जनवरी (भाषा) लेखिका निलंजना भौमिक मुंबई की लोकल में अपनी यात्राओं के दौरान महिलाओं को सब्जियां काटते और आटा गूंधते देखती हैं और पाती हैं कि वे भी पूरा दिन अपने-अपने दफ्तरों में काम करने के बाद घर के कामकाज भी करने को मजबूर हैं।
उस वक्त ‘लाइज आवर मदर्स टोल्ड अस : द इंडियन वूमन्स बर्डन’ की लेखिका को महसूस हुआ कि इन महिलाओं के पास घरेलू सहायिका रखने का या फिर घर के इन कामों से इंकार करने का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि ना कहने की यह क्षमता ‘विशेषाधिकार’ के स्थान से आती है।
भौमिक ने कहा, ‘‘जब हम कहते हैं कि कोई हमसे यह बोझ उठाने को नहीं कह रहा है, हम यह अपनी मर्जी से कह रहे हैं, हम यह बात बेहद विशेषाधिकार वाले दृष्टिकोण के आधार पर कह रहे हैं। हमारे पास विकल्प है, लेकिन भारत में ज्यादातर महिलाओं के पास विकल्प नहीं है। वे ना नहीं कह सकती हैं, वह नहीं कह सकती हैं कि मैं अपनी नौकरी छोड़कर पति के पीछे-पीछे देशभर नहीं घूमना चाहती हूं।’’
वह जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन आयोजित सत्र में बोल रही थीं।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां ने भी ट्रेन से यात्रा की है, वह पुलिसकर्मी थीं, लेकिन मुझे पता था कि मेरी मां ऐसा नहीं करेंगी। यही वह स्थिति है, जहां विशेषाधिकार आता है। हमने समावेशीकरण कर दिया है कि हमारे पास सबकुछ है, हमें यह सबकुछ करना चाहिए। लेकिन देश की ज्यादातर महिलाओं के लिए यह विकल्प नहीं है।’’
संयुक्त राष्ट्र महिला, भारत की देश की उपप्रतिनिधि कांता सिंह के साथ इस सत्र में भौमिक ने देश में बेटी पर बेटे को प्राथमिकता देने पर भी बातचीत की।
भौमिक ने कहा कि माता-पिता के बीच यह सामान्य है कि वे बेटी पर बेटे को प्राथमिकता देते हैं, और इससे महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रहा है।
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