Edited By Payal Choudhary, Updated: 27 Dec, 2025 05:11 PM

राजस्थान में पंचायत चुनावों की तारीखों का ऐलान भले ही अभी न हुआ हो, लेकिन चुनावी तैयारियां तेज हो गई हैं। इसी बीच राज्य निर्वाचन आयोग के एक निर्देश ने नई बहस छेड़ दी है। आयोग ने साफ किया है कि मतदान के दौरान पर्दानशीन महिला मतदाताओं की पहचान...
राजस्थान में पंचायत चुनावों की तारीखों का ऐलान भले ही अभी न हुआ हो, लेकिन चुनावी तैयारियां तेज हो गई हैं। इसी बीच राज्य निर्वाचन आयोग के एक निर्देश ने नई बहस छेड़ दी है। आयोग ने साफ किया है कि मतदान के दौरान पर्दानशीन महिला मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित की जाएगी। यानी वोट डालने से पहले मतदाता की फोटो युक्त वोटर लिस्ट से पहचान का मिलान किया जाएगा, ताकि कोई भी फर्जी मतदान न कर सके।
राज्य निर्वाचन आयुक्त राजेश्वर सिंह ने कहा है कि यह कोई नया नियम नहीं है, बल्कि पहले से चली आ रही नियमित प्रक्रिया का हिस्सा है। उनका तर्क है कि पहचान सुनिश्चित करने से चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी बनते हैं। आयोग ने 14 बिंदुओं के निर्देश जारी करते हुए मतदान दल के गठन की जिम्मेदारी जिला निर्वाचन अधिकारियों को दी है। जरूरत पड़ने पर पीठासीन अधिकारी स्थानीय महिला कर्मचारी या BLO की मदद लेकर महिला मतदाताओं की पहचान कर सकते हैं।
आयोग का पक्ष: फर्जी मतदान पर रोक
आयोग और प्रशासन का कहना है कि बीते कुछ वर्षों में फर्जी वोटिंग के मामले सामने आए हैं। गलत पहचान के सहारे वोट डालने से लोकतंत्र कमजोर होता है। इसलिए एक व्यक्ति–एक वोट के सिद्धांत को लागू करने के लिए पहचान सख्ती जरूरी है। फोटो युक्त वोटर लिस्ट से मिलान कर यह सुनिश्चित किया जाएगा कि वोट वही डाले, जिसका नाम सूची में दर्ज है।
उठते सवाल: महिला मतदाताओं की असहजता
हालांकि इस निर्देश को लेकर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। आदेश में यह भी कहा गया है कि यथासंभव महिला कर्मचारियों को मतदान दल में न लगाया जाए। ऐसे में सवाल उठता है कि महिला कर्मचारियों के अभाव में पर्दानशीन महिलाओं की पहचान व्यवहार में कैसे होगी। सामाजिक संगठनों और जानकारों का कहना है कि ग्रामीण और पारंपरिक समाज में रहने वाली कई महिलाएं झिझक या सामाजिक दबाव के कारण मतदान से दूर हो सकती हैं, जिससे महिला मतदान प्रतिशत पर असर पड़ सकता है।
संतुलन की चुनौती
एक तरफ चुनाव की शुचिता और फर्जी मतदान रोकने की जरूरत है, तो दूसरी तरफ महिलाओं की गरिमा और उनके मतदान अधिकार का सवाल भी उतना ही अहम है। असली चुनौती यही है कि प्रशासन इस नियम को किस संवेदनशीलता के साथ लागू करता है। अगर पहचान की प्रक्रिया सहज और सम्मानजनक रही, तो उद्देश्य पूरा हो सकता है, लेकिन अगर इसमें कठोरता या असहजता आई, तो यह महिलाओं की भागीदारी पर असर डाल सकती है। ‘पर्दा हटेगा, तभी वोट पड़ेगा’ का मुद्दा सिर्फ एक नियम का नहीं, बल्कि लोकतंत्र में सुरक्षा और सम्मान के बीच संतुलन का है। आने वाले पंचायत चुनावों में यह साफ होगा कि आयोग इन दोनों के बीच किस तरह संतुलन बनाता है, ताकि फर्जी वोटिंग पर रोक भी लगे और कोई भी महिला मतदाता बिना डर या झिझक के अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल कर सके।