Rajasthan News : वन स्टेट वन इलेक्शन को लेकर कांग्रेस ने हाईकोर्ट जाने का लिया निर्णय

Edited By Chandra Prakash, Updated: 02 Dec, 2024 03:48 PM

congress decided to go to high court regarding one state one election

राजस्थान में "वन स्टेट, वन इलेक्शन" योजना के खिलाफ कांग्रेस हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। इस योजना के तहत राज्य सरकार सभी स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जिसमें 49 शहरी निकायों में प्रशासक नियुक्त करने के...

 

यपुर, 2 दिसंबर 2024 । राजस्थान में "वन स्टेट, वन इलेक्शन" योजना के खिलाफ कांग्रेस हाईकोर्ट जाने की तैयारी कर रही है। इस योजना के तहत राज्य सरकार सभी स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जिसमें 49 शहरी निकायों में प्रशासक नियुक्त करने के बाद जनवरी में प्रस्तावित 6 हजार 857 ग्राम पंचायत चुनावों को स्थगित करना शामिल है। यहां भी प्रशासक लगाने की तैयारी हैं । 

वहीं दूसरी तरफ एक साथ चुनाव करवाने वाला फॉर्मूला कानूनी अड़चनों में फंसता हुआ नजर आ रहा है, दरअसल कांग्रेस का आरोप है कि इस पहल से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और इसे जनतांत्रिक अधिकारों का हनन बताया गया है। वहीं, राज्य सरकार का दावा है कि "वन स्टेट, वन इलेक्शन" से प्रशासनिक खर्च और बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया में लगने वाले समय को बचाया जा सकेगा । 

आपको बता दें कि हाल ही में पंजाब में भी चुनाव टालने पर सुप्रीम कोर्ट फटकार लगा चुका है। दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर ली है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा ने कहा है कि चुनाव टालना संविधान विरोधी कदम है, हम चुप नहीं बैठेंगे, सुप्रीम कोर्ट तक जाएंगे। सरपंच संघ ने भी विरोध जताना शुरू कर दिया है। वहीं कानूनी जानकारों का कहना है कि 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव 5 साल में करवाया जाना अनिवार्य है। आपात स्थिति को छोड़कर चुनाव टालने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि पंचायतीराज विभाग और शहरी विकास व स्थानीय निकाय विभाग अपने स्तर पर कानूनी पहलुओं पर विचार कर रहा है। 

अब सवाल ये उठ रहा है कि अगर "वन स्टेट, वन इलेक्शन" योजना को अदालत में चुनौती दी जाती है, तो यह योजना कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक टल सकती है। इसका निर्णय कई कारकों पर निर्भर करेगा । 

सबसे पहला संवैधानिकता की जांच
अदालत इस योजना की संवैधानिकता की समीक्षा करेगी। इसमें यह देखा जाएगा कि क्या यह कदम भारत के संघीय ढांचे और संविधान में उल्लिखित प्रावधानों का उल्लंघन करता है। अगर ऐसा पाया गया, तो इसे रोका जा सकता है।

दूसरा चुनाव आयोग का अधिकार
चुनाव आयोग स्वतंत्र निकाय है, जो चुनाव प्रक्रिया का संचालन करता है। यह देखा जाएगा कि क्या राज्य सरकार का यह निर्णय चुनाव आयोग के अधिकारों में हस्तक्षेप करता है।

तीसरा राजनीतिक सहमति
यह योजना पूरे राज्य के लिए लागू होगी, इसलिए इसमें सभी राजनीतिक दलों की सहमति की आवश्यकता हो सकती है। विपक्षी दल इस योजना के खिलाफ कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ सकते हैं।

चौथा अदालत का स्थगन आदेश
अगर अदालत प्रथम दृष्टया मानती है कि इस योजना से संवैधानिक या लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, तो वह इसे रोकने के लिए अंतरिम आदेश जारी कर सकती है।

पांचवा प्रशासनिक तैयारी
अदालत यह भी जांचेगी कि क्या राज्य सरकार और संबंधित निकायों ने इस योजना के लिए पर्याप्त तैयारी की है। अगर कोई कमी पाई गई, तो इसे अटकाया जा सकता है।

अब योजना के अटकने की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि अदालत में प्रस्तुत दलीलें कितनी मजबूत हैं और अदालत का प्रारंभिक आकलन क्या है। यदि योजना को असंवैधानिक या प्रक्रिया में त्रुटिपूर्ण पाया गया, तो इसे निरस्त किया जा सकता है या सुधार के लिए वापस भेजा जा सकता है। दूसरी ओर, अगर योजना को संवैधानिक और लोकतांत्रिक रूप से सही पाया गया, तो इसे आगे बढ़ने की अनुमति दी जा सकती है।

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