सिरोही जिले का एक ऐसा स्थान, जहां नवरात्रि में निभाई जाती है एक अनोखी परंपरा ! , जानने के लिए पढ़िये पूरी खबर

Edited By Chandra Prakash, Updated: 10 Oct, 2024 02:24 PM

a place in sirohi where a unique tradition is followed during navratri

शारदीय नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व हैं । सिरोही जिले में एक स्थान ऐसा भी है, जहां विशाल नवदुर्गा प्रतिमाओं के साथ पिछले 25 सालों से सार्वजनिक नवदुर्गा पूजा होती है । यहां एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें नवरात्रि के...

 

सिरोही, 10 अक्टूबर 2024। शारदीय नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व हैं । सिरोही जिले में एक स्थान ऐसा भी है, जहां विशाल नवदुर्गा प्रतिमाओं के साथ पिछले 25 सालों से सार्वजनिक नवदुर्गा पूजा होती है । यहां एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें नवरात्रि के सात दिनों तक इन प्रतिमाओं की आंखों पर पट्टी बांधी जाती है । यहां नवदुर्गा के साथ ही महिषासुर की आंखों पर भी पट्टी बंधी रहती है । इन प्रतिमाओं की आंखों पट्टी विजय दशमी को मां दुर्गा के महिषासुर का वध करने के बाद इन प्रतिमाओं का भी विसर्जन हो जाता है । हम बात कर रहे जिले के आबूरोड शहर में रेलवे कॉलोनी में होने वाले सार्वजनिक नवदुर्गा पूजा की । 
 
यहां वर्ष 1999 से दुर्गा पूजा का आयोजन हो रहा है । यहां विशाल पांडाल में सजावट के साथ 9 प्रतिमाएं स्थापित होती है । इनमें भगवान गणेश शिव पार्वती के साथ शक्ति के नौ रूपों की पूजा होती है । 

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बिहार में शक्ति पूजा का है विशेष महत्व- कन्हैयालाल झा
दुर्गा पूजा कमेटी के अध्यक्ष कन्हैयालाल झा ने बताया कि बिहार में शक्ति पूजा का विशेष महत्व हैं । यहां रहने वाले कई बिहार राज्य के परिवारों में नव दुर्गा पूजा को लेकर विशेष आस्था है ।  सार्वजनिक दुर्गा पूजा की शुरुआत दिवंगत उमेशचंद्र मिश्रा और उनके साथियों ने की थी । तब से ये परम्परा निरंतर जारी है । बिहार के मैथिली समाज और पूरे शहरवासियों के सहयोग से यहां आयोजन होता है । मुख्य पुजारी बद्रीनाथ ठाकुर और उनके सहयोगी सुनील झा की देखरेख में यहां विजया दशमी तक पूजा-अर्चना होती है । यहां होने वाली नवदुर्गा पूजा पूरे जिले में प्रसिद्ध हैं । दूरदराज से लोग नवरात्रि में इन प्रतिमाओं के दर्शन करने आते हैं ।   
 
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    प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रतिमाओं की आंखों से हटती है पट्टी  
    पिछले 25 सालों से यहां दुर्गा पूजा करवाकर रहे मुख्य पुजारी बद्रीनाथ ठाकुर ने बताया कि यहां भगवान गणेश, भगवान शिव, पार्वती, माता के साथ दोनों योगिनी जया​-विजया, सरस्वती, कार्तिकेय और सूर्यपुत्र रेवंत की प्रतिमा हैं । इन प्रतिमाओं में से केवल रेवंत महाराज की नवरात्रि के शुरुआती 6 दिनों में केवल एक ही प्रतिमा की आंखों से पट्टी हटाई जाती है, शेष सभी प्रतिमाओं की आंखों पर सात दिनों तक पट्टी बंधी रहती हैं । इसके पीछे ये कारण है कि प्रतिमाओं की विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा सप्तमी को होती है । रेवंत महाराज ने महिषासुर से युद्ध में सेनापति के रूप में भूमिका निभाई थी । इस वजह से इनकी प्राण प्रतिष्ठा पहले होती है । प्राण प्रतिष्ठा से पहले केवल सुबह-शाम आरती होती है ।   
     
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    ऐसे होती है नवदुर्गा पूजा  
    नवरात्रि प्रतिपदा को 11 कलश स्थापना होती है । नौ दिनों तक तिथि के अनुसार दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की विधि-विधान से पूजा होती है । रेवंत महाराज को छोड़कर शेष प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा सप्तमी को होती है । षष्ठी को बिल्वपत्र के पेड़ पर जुड़वा बेल के फल लगे होते हैं, उसकी आराधना करके सप्तमी को उन फलों को लाकर उससे इन प्रतिमाओं को आंख दी जाती है । प्राण प्रतिष्ठा के बाद सप्तमी से नवमी तक आह्वान पूरा होता है । दशमी को मां दुर्गा के महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त करने पर विधि-विधान से प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है । 

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