Edited By Chandra Prakash, Updated: 14 Sep, 2024 08:39 PM
जी हां, सियासी के रिश्ते कई वक्त और ज़रूरत के मुताबिक कई बार खुद बनते-बिखरते हैं, तो कई दफ़ा आलाकमान के इशारों पर होता है खेल । एक खेल हो रहा है हरियाणा में, खेल क्या है ? इससे पहले आपको राजस्थान की राजनीति के अतीत के गलियारों में आपको लिए चलते हैं,...
जयपुर,14 सितंबर2024(विशाल सूर्यकांत) ।
"कभी कश्ती, कभी साहिल, कभी दरिया के जैसे,
रिश्ते सियासत के हैं, बदलते मौसमों के जैसे।"
जी हां, सियासी के रिश्ते कई वक्त और ज़रूरत के मुताबिक कई बार खुद बनते-बिखरते हैं, तो कई दफ़ा आलाकमान के इशारों पर होता है खेल । एक खेल हो रहा है हरियाणा में, खेल क्या है ? इससे पहले आपको राजस्थान की राजनीति के अतीत के गलियारों में आपको लिए चलते हैं, दो हजार चौबिस से सीधे दो हजार बाइस में
जब सचिन पायलट की अदावत चरम पर थी, तब पायलट को आलाकमान की ओर से बनाए गए प्रभारी महासचिव अजय माकन का सहारा था । मानेसर की घटना के बाद, जयपुर में विधायक दल की बैठक के रूप में दूसरा मौका था । जब पायलट का दांव लगता, लेकिन यहां गहलोत गुट ने बाजी पलट दी थी और अजय माकन खासे नाराज होकर मुख्यमंत्री गहलोत से बिना मिले चले गए थे । 25 सितंबर 2022 को विधायक दल की बैठक बुलाने के बावजूद गहलोत गुट के विधायक नहीं पहुंचे थे, नए नेता का चुनाव करने का अधिकार हाईकमान पर छोड़ने का एक लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था। उस वक्त माकन के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे भी ऑब्जर्वर बनकर जयपुर आए थे। दोनों नेता सीएम हाउस पर आधी रात तक विधायकों का इंतजार करते रहे। गहलोत गुट के विधायकों ने शांति धारीवाल के बंगले पर बैठक कर विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर दिया था । विधायक दल की बैठक नहीं होने के कारण अजय माकन नाराज होकर खड़गे के साथ दिल्ली लौटे थे।
कांग्रेस हाईकमान को दी गई रिपोर्ट के बाद शांति धारीवाल, महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ को नोटिस दिए गए थे। हालांकि, उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। 25 सितंबर की घटना के बाद माकन ने राजस्थान से दूरी बना ली थी। जिसके बाद माकन की जगह सुखजिंदर से रंधावा को राजस्थान का प्रभारी नियुक्त किया था। माकन की मुहिम तो फेल हो गई थी। मगर, गहलोत की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की जमी-जमाई बिसात ख़राब हो गई और उलटे जिंदगी में पहली बार गहलोत को सार्वजनिक रूप से सोनिया गांधी से मिलकर माफी मांगने की बात कहनी पड़ी । ऐसा करारा झटका गहलोत को जिंदगी में पहले कभी नहीं मिला था । अजय माकन का भी हाल कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था । राहुल गांधी की यात्रा के बाद अजय माकन ने ऐन चुनावों से पहले राजस्थान प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया था और इसके बाद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने प्रभारी के रूप में कमान संभाल ली थी, तो ये हुआ घटनाक्रम ।
मगर उस अतीत का जिक्र आज क्यों हम कर रहे हैं । अगर ये सवाल आपके जेहन में है तो सुनिए, एक खबर...वहीं अजय माकन और वहीं अशोक गहलोत एक बार फिर प्रासंगिक हो गए हैं, लेकिन इस बार मामला आमने-सामने का नहीं, बल्कि आलाकमान ने साथ मिलकर काम करने का चुनौतीपूर्ण टास्क दिया है । मामला है हरियाणा चुनाव का है, जहां कांग्रेस आलाकमान ने ऐसा खेल खेल दिया है कि अजय माकन और गहलोत दोनों को पर्यवेक्षक बनाकर एक मंच पर बिठा दिया है । पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब हरियाणा में नया टास्क दिया है । पार्टी ने गहलोत को हरियाणा चुनाव के लिए सीनियर ऑब्जर्वर बनाया है । कांग्रेस ने गहलोत के साथ ही राजस्थान कांग्रेस के पूर्व प्रभारी अजय माकन को भी जिम्मेदारी सौंपी है । इसके साथ ही पंजाब कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रताप सिंह बाजवा को भी सीनियर ऑब्जर्वर बनाया है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने तीनों नेताओं की नियुक्ति के आदेश जारी किए हैं।
दो-तीन महीनों से बेड रेस्ट पर रहे गहलोत ने ठीक होते ही आलाकमान के सामने हाजरी दी और अपने लिए ये बड़ा ओहदा हासिल कर लिया । इससे पहले गहलोत को कांग्रेस आलाकमान ने 13 सितंबर को ही हरियाणा चुनावों के लिए स्टार प्रचारक बनाया था। गहलोत के साथ पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को भी स्टार प्रचारक बनाया है। गहलोत को हरियाणा में सीनियर ऑब्जर्वर बनाने के पीछे उनके अनुभव और स्थानीय नेताओं से ट्यूनिंग भी एक बड़ा कारण है। हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा से लेकर कुमारी शैलजा, रणदीप सुरेजवाला सहित सभी बड़े नेताओं से उनके अच्छे संबंध हैं। हुड्डा जब पहली बार सीएम बने थे, तब भी तीन नेताओं के साथ गहलोत ऑब्जर्वर थे।
हालांकि इस आदेश के बाद सियासी हलकों में चर्चाएं भी काफी तेज हो गई है । क्योंकि कांग्रेस ने गहलोत के साथ ही अजय माकन को भी सीनियर ऑब्जर्वर की भूमिका में एक बार फिर गहलोत के साथ खड़ा कर दिया है । राजस्थान में गहलोत सरकार के समय गहलोत और माकन के बीच के मनमुटाव और तल्खी जगजाहिर है । इसके बावजूद कांग्रेस ने दोनों को एक बार फिर साथ काम करने का मौका दिया है,जिसकी सियासी हलकों में चर्चाएं शुरू हो गई है।
तो ये है कांग्रेस और कांग्रेस की राजनीति,इसीलिए बशीर बद्र लिख गए कि 'दुश्मनी जमकर करो, मगर ये गुंजाइश रहे...जब कभी हम फिर मिलें, शर्मिदा न होना पड़े'। सियासतदानों के लिए ये कितनी सटीक है ये आप तय कीजिए, ट्रेडिंग टॉक शो में आज इतना ही...।