Edited By Chandra Prakash, Updated: 12 Jul, 2025 08:02 PM

जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित नटराज महोत्सव का शनिवार को दूसरा दिन रहा। रंगायन सभागार में सौरभ नायर के निर्देशन में नाटक 'गोल्डन जुबली' खेला गया। हरिशंकर परसाई की कहानी 'एक फिल्म कथा' का नाट्य रूपांतरण कर इस दो घंटे के मनोरंजन से भरे नाटक को...
जयपुर, 12 जुलाई 2025 : जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित नटराज महोत्सव का शनिवार को दूसरा दिन रहा। रंगायन सभागार में सौरभ नायर के निर्देशन में नाटक 'गोल्डन जुबली' खेला गया। हरिशंकर परसाई की कहानी 'एक फिल्म कथा' का नाट्य रूपांतरण कर इस दो घंटे के मनोरंजन से भरे नाटक को तैयार किया गया। नाटक में गीत—संगीत की लाइव प्रस्तुति ने इसे और भी खास बनाया। महोत्सव के तीसरे दिन रविवार को सुबह 11 बजे संवाद सत्र में अभिनेता कुमुद मिश्रा, शुभ्रज्योति बरत और गोपाल दत्त के बीच रंगमंच को लेकर वार्ता होगी। शाम 4 बजे अभिनेता आदिल हुसैन 'एक्टर्स प्रोसेस' एक्सपर्ट सेशन में गहन चर्चा करेंगे। शाम 7 बजे सुमित व्यास के निर्देशन में नाटक 'पुराने चावल' का मंचन होगा।
'गोल्डन जुबली' दर्शकों को 80-90 के दशक के रेट्रो युग में ले जाता है। रंगायन का मंच मानो एक पर्दा बन जाता है जिस पर पुराने दौर की फिल्म चल रही है। वैसे तो नाटक रंजना और राकेश की प्रेम कहानी के इर्द गिर्द घूमता है लेकिन यह एक फिल्म की कहानी है जो जुड़ी है अपने जमाने के सुपर स्टार रहे कुमार साहब से जो इन दिनों गुमनामी के अंधेरे में खो गए है। एक लेखक कुमार साहब के पास राकेश और रंजना की प्रेम कहानी लेकर आता है जिस पर वह कुमार साहब को हीरो रखते हुए फिल्म बनाना चाहता है।
लेखक नाटक का सूत्रधार बनकर अंत तक साथ रहता है। वह कुमार साहब को कहानी सुनाता है जिसको मंच पर कलाकार जीवंत करते दिखाई देते हैं। राकेश धनवान परिवार से आता है और रंजना गरीब घर की लड़की है। राकेश रंजना को गुंडों से बचाता है और उसका दिल जीत लेता है। इस मोड़ से दोनों की प्रेम कहानी आगे बढ़ती है। खलनायक सुरेन्द्र सिंह रंजना से विवाह करना चाहता है। सुरेन्द्र सिंह की रंजना में दिलचस्पी नायक-नायिका की मुश्किलें बढ़ा देती है। अंत में सुरेन्द्र सिंह का नौकर लाखन जिससे वह जानवरों की तरह व्यवहार करता था सुरेन्द्र को गोली मार देता है। यहां निर्देशक ने रंजना और राकेश की कहानी का परिणाम तय करने का भार दर्शकों के कंधों पर छोड़ दिया है। उधर कुमार साहब इस कहानी पर आधारित मूवी में काम करने को राजी होते है और दोबारा सफलता का सहरा पहनने व मूवी के गोल्डन जुबली होने की कामना उनके मन में हिलोरे मारने लगती है। मनोरंजन से भरा यह नाटक कटाक्ष करता है वर्ग भेद व अन्य सामाजिक कुरीतियों पर।