13 मार्च को होलिका दहन, अग्नि की दिशा देखकर पता चलेगा कैसा रहेगा संवत 2082 ?

Edited By Rahul yadav, Updated: 11 Mar, 2025 06:43 PM

holika dahan on march 13 direction of the fire tell how will be the year 2082

होली का त्योहार देशभर में प्रसिद्ध है। होली से पूर्व रात को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन का दिन भक्तों को प्रह्लाद और होलिका की याद दिलाता है। होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया...

होली का त्योहार देशभर में प्रसिद्ध है। होली से पूर्व रात को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन का दिन भक्तों को प्रह्लाद और होलिका की याद दिलाता है। होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन के समय भद्रा का साया नहीं होनी चाहिए। भद्रा के समय होलिका दहन करने से अनहोनी की आशंका रहती है। होलिका दहन 13 मार्च को होगा और होली 14 मार्च को मनाई जाएगी। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि रंगों का त्योहार होली इस बार 14 मार्च को मनेगा। इससे एक दिन पहले 13 मार्च को तारीख को होली जलाई जाएगी। इस बार भद्रा दोष रहेगा इसलिए शाम की बजाय रात में होलिका दहन हो सकेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन के लिए 47 मिनट का ही समय रहेगा। इसकी वजह उस दिन भद्रा प्रातः 10:36 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:27 तक भूमि लोक की रहेगी। जो की सर्वथा त्याज्य है। अतः होलिका दहन भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:28 से मध्य रात्रि 12:15 के मध्य होगा।

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली के एक दिन पहले पूर्णिमा की तिथि में होलिका दहन किया जाता है। वहीं पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च को सुबह 10:36 बजे शुरू होगी, जो अगले दिन दोपहर 12:15 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदयात की मान्यता से पूर्णिमा दूसरे दिन 14 मार्च को है, लेकिन इस दिन पूर्णिमा का मान तीन प्रहर से कम होगा। इसलिए होलिका दहन 13 मार्च को ही करना बेहतर है। शास्त्रीय मत भी है कि पूर्णिमा तिथि का मान तीन प्रहर से कम होने पर पहले दिन का मान निकालकर होलिका दहन करना चाहिए। इस वर्ष होली का त्योहार 14 मार्च को मनाया जाएगा।

होलिका दहन पर भद्रा का साया

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि 13 मार्च को पूर्णिमा तिथि सुबह 10:36 बजे शुरू होगी, जो अगले दिन दोपहर 12:15 बजे तक रहेगी। ऐसे में उदयात की मान्यता से पूर्णिमा दूसरे दिन 14 मार्च को है, लेकिन इस दिन पूर्णिमा का मान तीन प्रहर से कम होगा। इसलिए होलिका दहन 13 मार्च को ही करना बेहतर है। शास्त्रीय मत भी है कि पूर्णिमा तिथि का मान तीन प्रहर से कम होने पर पहले दिन का मान निकालकर होलिका दहन करना चाहिए। 13 मार्च को होलिका दहन भद्रा के बाद होगा। भद्रा 13 मार्च को सुबह 10:36 से रात्रि 11:27 बजे तक रहेगी। ऐसे में रात 11:28 से लेकर 12:15 बजे के बीच होलिका दहन करना श्रेष्ठ रहेगा। तर्क ये भी है कि 13 मार्च को प्रदोषकाल में भद्रा होने से होलिका दहन नहीं होगा। होलाष्टक होलिका दहन के बाद खत्म माना जाता है, लेकिन इस बार यह दूसरे दिन 12:24 बजे के बाद खत्म होगा। पूर्णिमा व्रत 14 मार्च को होगा। इसी दिन धुलंडी मनाई जाएगी।

यथा भद्रायां हे न कर्तव्ये श्रावणी (रक्षाबंधन) फाल्गुनी (होलिकादहन) तथा।

श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्राम दहति फाल्गुनी ॥

( मुहर्त्तचिंतामणि )

शिव पूजा से खत्म होंगे दोष

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन के दिन हरि-हर पूजा करनी चाहिए। हरि यानी भगवान विष्णु और हर मतलब शिव। फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर प्रह्लाद का जीवन विष्णु भक्ति की वजह से ही बचा था। तभी से हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन के साथ ही विष्णु पूजन की परंपरा भी चली आ रही है। लेकिन साथ ही इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं और हर तरह के दोष भी खत्म होते हैं। इसलिए विद्वानों ने इस पर्व पर हरि-हर पूजा का विधान बताया है।

चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पूर्णिमा पर बन रहे सितारों के शुभ संयोग में चंद्रमा को अर्घ्य देने का विशेष महत्व रहेगा। फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करने से रोग नाश होता है। इस त्योहार पर पानी में दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद अबीर, गुलाल, चंदन, अक्षत, मौली, अष्टगंध, फूल और नैवेद्य चढ़ाकर चंद्रमा को धूप-दीप दर्शन करवाकर आरती करनी चाहिए। इस तरह से चंद्र पूजा करने से बीमारियां दूर होने लगती हैं।

हवा की दिशा से तय होता है कैसा होगा सेहत, रोजगार और अर्थव्यवस्था

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन के दौरान हवा की दिशा से तय होता है कि अगली होली तक का समय सेहत, रोजगार, शिक्षा, बिजनेस, कृषि और अर्थव्यवस्था के लिए कैसा होगा। होलिका जलने पर जिस दिशा में धुंआ उठता है, उससे आने वाले समय का भविष्य जाना जाता है। होलिका दहन की आग सीधी ऊपर उठे तो उसे बहुत शुभ माना गया है। वहीं, दक्षिण दिशा की ओर झुकी होलिका की आग को देश में बीमारियां और दुर्घटनाओं का संकेत देने वाला माना जाता है।

आग का ऊपर उठना शुभ

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन के समय आग की लौ अगर सीधे हो, आसमान की तरफ उठे तो अगली होली तक सब कुछ अच्छा होता है। खासतौर से सत्ता और प्रशासनिक क्षेत्रों में बड़े सकारात्मक बदलाव होते हैं। बड़ी जन हानि या प्राकृतिक आपदा की आशंका भी कम रहती है। पूजा-पाठ और दान से परेशानियां खत्म होंगी।

पूर्व दिशा

कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन की लौ पूर्व दिशा की ओर झूके तो इसे बहुत शुभ माना गया है। इससे शिक्षा-अध्यात्म और धर्म को बढ़ावा मिलता है। रोजगार की संभावना बढ़ती है। लोगों की सेहत में सुधार होता है। मान-सम्मान में भी बढ़ता है।

पश्चिम दिशा

भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली की आग पश्चिम की ओर उठे तो पशुधन को लाभ होता है। आर्थिक प्रगति होती है, लेकिन धीरे-धीरे। थोड़ी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका भी रहती है, लेकिन कोई बड़ी हानि नहीं होती है। इस दौरान चुनौतियां बढ़ती हैं लेकिन सफलता भी मिलती है।

उत्तर दिशा

कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन के वक्त आग उत्तर दिशा की ओर होती है तो देश और समाज में सुख-शांति बढ़ती है। इस दिशा में कुबेर समेत अन्य देवताओं का वास होने से आर्थिक प्रगति होती है। चिकित्सा, शिक्षा, कृषि और व्यापार में उन्नति होती है।

दक्षिण दिशा

भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिशा में होलिका दहन की आग का झुकना अशुभ माना गया है। दक्षिण दिशा में होलिका की लौ होने से झगड़े और विवाद बढ़ने की आशंका रहती है। युद्ध-अशांति की स्थिति भी बनती है। इस दिशा में यम का प्रभाव होने से रोग और दुर्घटना बढ़ने का अंदेशा भी रहता है।

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