जो भी इस धरती पर मनुष्य शरीर में आता है, वे सब बंधन में बंधे रहते हैं - बाबा उमाकान्त जी महाराज

Edited By Kailash Singh, Updated: 09 Jul, 2025 05:57 PM

satsang organized in gulabinagar devotees arrived from abroad

जयपुर । बाबा उमाकान्त जी महाराज का आज जयपुर में सत्संग का आयोजन हुआ। सत्संग में गुलाबी नगरी जयपुर में हजारों की संख्या में पहुंचे भक्तों को सतसंग में बताया कि हम और आप बंधे पड़े हैं। लेकिन अंतर यह है कि हम गुरु की डोर में बंधे हैं और आप बहुत से लोग...

जयपुर । बाबा उमाकान्त जी महाराज  का आज जयपुर में सत्संग का आयोजन हुआ। सत्संग में गुलाबी नगरी जयपुर में हजारों की संख्या में पहुंचे भक्तों को सतसंग में बताया कि हम और आप बंधे पड़े हैं। लेकिन अंतर यह है कि हम गुरु की डोर में बंधे हैं और आप बहुत से लोग गुरु की डोर में नहीं बंध पा रहे हो। जो भी इस धरती पर मनुष्य शरीर में आता है, वे सब बंधे रहते हैं। ऐसा ही नियम है कि उसमें बंधे हैं। कोई मोटा तो कोई झीना बंधन में बंधा है। कोई लोहे की हथकड़ी में बंधा है, कोई सोने की हथकड़ी में बंधा है। अब बंधे कैसे हो? कहा गया "बंधे तुम गाढ़े बंधन आन।" "पहला बंधन पड़ा देह का, दूसरा त्रिया जान। तीसरा बंधन पुत्र विचारो, चौथा नाती मान। नाती के कहूं नाती होवे, वा को कौन ठिकान। धन-संपत्ति और हाट-हवेली, यह बंधन क्या करूं बखान। 
चौलड़-पचलड़-सतलड़ रसरी,
बांध दिया तोहे बहू विधि तान।
मरे बिना तुम छूटो नाहीं, जीते जी धर सुनो न कान"

पहला बंधन इस शरीर का है। जैसे इसको दूध, पानी, अन्न, कुछ ना कुछ पहनने की जरूरत होती है। तो शरीर की आवश्यकता की पूर्ति के लिए सब बंधे हैं। दूसरा बंधन 'त्रिया' का, मतलब औरत का। औरत आ गई तो उसकी भी देख-रेख की जिम्मेदारी बनती है। तो शादी कर लिया तो उसमें भी बंधन में तो बंध ही गए क्योंकि 24 घंटे के समय में कुछ समय उसमें भी निकालना ही पड़ेगा। और अगर बच्चा पैदा कर लिया तो एक और बंधन में बंध गए। अब उसका भी ध्यान रखना है, उसकी भी देख-रेख करनी है। नाती हो गया तो उसका भी एक बंधन हो गया। घर-मकान, जमीन, जायदाद ज्यादा हो गई तो वह भी एक बंधन हो गया देख-रेख के लिए। तो बंधन बंधता चला जाता है। आदमी सुख के लिए, धन पाने के लिए तो काम करता है लेकिन और भी बंधन में बंधता चला जाता है। इसके अलावा काम, क्रोध, लाभ, मोह, अहंकार भी बना दिया। रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण बना दिए। अंदर में तो माया तलवार लिए ही खड़ी हैं, वह तो हथकड़ी लिए खड़ी है कि इनको बांध दो। तो जब शरीर मिला, तब इसमें अंदर जो जीवात्मा है, वह भी बेचारी बंद हो गई। तो यह सब मोटा बंधन है। जीवात्मा भी चार शरीर में बंद है; स्थूल शरीर, लिंग शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। इन्हीं बंधनों को झीना बंधन बताया गया है।

दोनों प्रकार के बंधन कटेंगे कैसे? 

"मोटे बंधन जगत के गुरु भक्ति से काट, झीने बंधन सूरत के कटे नाम प्रताप" अगर गुरु भक्ति करोगे और नाम ले कर के नाम की कमाई करोगे, जो नाम देता है उसके आदेश का पालन करोगे, गुरु मुखता लाओगे और मन मुखता को छोड़ोगे तब यह बंधन कटेंगे। तब बंधन से मुक्ति पाओगे।

विदेशों से पहुंचे श्रद्धालु

गुरु पूर्णिमा महोत्सव पर अपने गुरुजी के दर्शन करने के लिए विदेशों से भी भक्त लोग आये हैं । अमेरिका, हांगकांग , मलेशिया ,नेपाल ,श्रीलंका,
मॉरीशस आदि देशों से लोग अपने परिवार सहित आये हैं। विदेशी श्रद्धालुओं ने बताया कि जब से हम गुरुजी से जुड़े हैं तब से हमें बहुत फायदा मिल रहा है।

भोजन भंडारा विशेष

राजस्थान समेत, अन्य प्रान्तों को मिलाकर इस गुरु पूर्णिमा कार्यक्रम में 32 भंडारे से चल रहे। जिसमें विभिन्न प्रकार के सात्विक भोजन बनाकर प्रेमियों को खिलाया जा रहा है। इस भोजन भंडारे में विशेष साधना करने वाले साधक प्रेमी तपस्वी भंडारे में बनी खिचड़ी और बाटी के प्रसाद का ही सेवन कर रहे हैं। कोई भी सतसंगी भाई –बहन कही पर भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है।

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