Edited By Raunak Pareek, Updated: 13 Jul, 2025 08:46 PM

राजस्थान के माउंट आबू स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा होती है। सावन में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। जानिए इस अनोखे मंदिर की पौराणिक कथा।
राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित माउंट आबू न सिर्फ एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है, बल्कि एक आध्यात्मिक धरोहर भी है। यहां स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर अपनी अनोखी परंपरा और पौराणिक मान्यताओं के लिए देशभर में प्रसिद्ध है। इसे 'अर्धकाशी' भी कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भगवान शिव ने स्वयं इस स्थान को अपने दाहिने पैर के अंगूठे से स्थिर किया था।
अनोखी पूजा—शिव के अंगूठे की
अचलेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव की पारंपरिक मूर्ति की जगह उनके दाहिने पैर के अंगूठे के स्वरूप की पूजा की जाती है। स्कंद पुराण के अबुर्द खंड में इस स्थान का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि यदि शिव ने अपने अंगूठे से इस पर्वत को न थामा होता, तो यह हिलकर गिर सकता था। इसलिए इस स्थल को अचल (स्थिर) कहा जाता है और यहां के किले को अचलगढ़।
पौराणिक कथा से जुड़ी मान्यता
कहा जाता है कि प्राचीन काल में ऋषि वशिष्ठ की गाय अचलगढ़ में स्थित एक विशाल ब्रह्म खाई में गिर गई थी। खाई को भरने के लिए देवताओं ने नंदीवर्धन पर्वत को भेजा, जिसे अर्बुद नामक एक विशाल नाग अपनी पीठ पर उठाकर लाया। लेकिन जैसे ही अर्बुद को अपने बल का अभिमान हुआ, उसने पर्वत को हिलाना शुरू कर दिया। तब देवताओं की पुकार पर भगवान शिव प्रकट हुए और अपने दाहिने पैर के अंगूठे से पर्वत को स्थिर कर दिया। तभी से इस पर्वत का नाम अचलगढ़ पड़ा और यहां की शिव मूर्ति का रूप—एक अंगूठा—पूजनीय बन गया।
सावन में उमड़ती है भक्तों की भीड़
सावन माह में इस मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना होती है। 10 जुलाई 2025 से शुरू हुए सावन के पहले सोमवार से ही मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगी है। भक्तजन इस महीने में यहां आकर भगवान शिव की उपासना करते हैं और मानते हैं कि यहां की पूजा से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।