भारतवर्ष का अनोखा मंदिर यहां पर होती देवाधिदेव महादेव के अंगूठें की पूजा

Edited By Kailash Singh, Updated: 13 Jul, 2025 07:16 PM

in this temple mahadev s thumb is worshipped

सावन का महीना 10 जुलाई 2025 से शुरू हों गया है, और देशभर में शिव भक्ति का यह पावन माह धूमधाम से मनाया जाएगा. उत्तर भारत के शिव मंदिरों में तैयारियां जोरों पर हैं. राजस्थान के माउंट आबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर भी भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने...


सिरोही । सावन का महीना 10 जुलाई 2025 से शुरू हों गया है, और देशभर में शिव भक्ति का यह पावन माह धूमधाम से मनाया जाएगा. उत्तर भारत के शिव मंदिरों में तैयारियां जोरों पर हैं. राजस्थान के माउंट आबू में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर भी भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तैयार है. यह मंदिर ऋषि वशिष्ठ की तपस्थली माउंट आबू के अचलगढ़ में स्थापित है और अपनी अनोखी आस्था के लिए जाना जाता है. इसे 'अर्धकाशी' भी कहा जाता है, जो इसकी विशेषता को दर्शाता है. सावन के महीने में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, जो भगवान शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। अचलेश्वर महादेव मंदिर को 'अर्धकाशी' के नाम से भी जाना जाता है, और यह सिर्फ एक प्राचीन शिव मंदिर ही नहीं है, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के दाहिने पैर के अंगूठे के स्वरूप की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस पर्वत को स्वयं महादेव ने अपने दाहिने अंगूठे से थाम रखा है, और स्कंद पुराण के अबुर्द खंड में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के अंगूठे के कारण ही माउंट आबू के पहाड़ आज भी स्थिर खड़े हैं. यह अनोखी मान्यता और पौराणिक महत्व इस मंदिर को विशेष बनाता है और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनाता है.
पौराणिक कथा के अनुसार, माउंट आबू के अचलगढ़ में एक गहरी और विशाल ब्रह्म खाई हुआ करती थी, जिसमें ऋषि वशिष्ठ की गाय गिर गई थी. ऋषियों ने देवताओं से इस खाई को पाटने की गुहार लगाई, ताकि गाय का जीवन बचाया जा सके.देवताओं ने नंदीवर्धन को खाई पाटने का आदेश दिया, जिसे अर्बुद नामक सांप ने अपनी पीठ पर रखकर खाई तक पहुंचाया. हालांकि, अर्बुद सांप को जल्द ही अहंकार हो गया कि उसने पूरा पर्वत अपनी पीठ पर उठा रखा है, और वह हिलने-डुलने लगा, जिससे पर्वत डोलने लगा. सावन के महीने में अचलेश्वर महादेव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान करते हैं. इस पवित्र महीने में दर्शन और पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होने की मान्यता है, जिससे यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। पर्वत हिलते देख सभी महादेव को पुकारने लगते हैं. उनकी गुहार सुनकर नीलकंठ अपने दाहिने पैर के अंगूठे से पर्वत को स्थिर कर देते हैं और अर्बुद सर्प का घमंड चकनाचूर कर देते हैं. इस घटना के कारण ही इस स्थान का नाम अचलगढ़ पड़ा, जिसका अर्थ है 'अचल' यानी स्थिर और 'गढ़' यानी पहाड़. मंदिर में अंगूठानुमा प्रतिमा शिव के दाहिने पैर का वही अंगूठा है, जिसे शिव ने काशी से बैठे हुए थामा था. इसीलिए माउंट आबू को अर्धकाशी भी कहा जाता है, जो इसकी पौराणिक महत्ता को दर्शाता है।

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