‘कंगाली में आटा गीला’ की पीड़ा से किसान त्रस्त- सरकार मंदिर दर्शनों में व्यस्त

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 04 Oct, 2024 03:58 PM

farmers are suffering from the pain of  adding insult to injury

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार द्वारा खरीद आरंभ नहीं करने के कारण किसानों को अपना उत्पाद औने पौने दामों में बेचने को विवश होना पड़ रहा है । सितंबर माह के अंतिम सप्ताह की छोटी अवधि में ही किसानों को 150 लाख रुपए से अधिक का घाटा उठाना पड़ा । प्राप्त...

जयपुर, किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का किसानों को लेकर सरकार को फिर चेताया, न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार द्वारा खरीद आरंभ नहीं करने के कारण किसानों को अपना उत्पाद औने पौने दामों में बेचने को विवश होना पड़ रहा है । सितंबर माह के अंतिम सप्ताह की छोटी अवधि में ही किसानों को 150 लाख रुपए से अधिक का घाटा उठाना पड़ा । प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य की बगरू, चौमूं, श्रीमाधोपुर, केकड़ी, दौसा, लालसोट, मुंडावर, मंडावरी, बयाना एवं डीग की मंडियों  में 50,800 क्विंटल बाजरा किसानों को 2200 से लेकर 2400 रुपये प्रति क्विंटल बेचना पड़ा जबकि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 2625 रुपए प्रति क्विंटल है । एक क्विंटल पर औसत 300 रुपये के अनुसार सितंबर माह में किसानों को घोषित न्यूनतम मूल्य से 1 करोड़ 52 लाख 40 हजार रुपए कम प्राप्त हुए प्राप्त हुए ।  इस वर्ष बरसात की अधिकता के कारण अधिकांश फसले नष्ट हो गई, जो फसल बची उसे भी वे दाम नहीं मिल रहे जिन्हें सरकार न्यूनतम बताती है । राजस्थान सरकार के अनुसार इस वर्ष बाजरे की उत्पादन की संपूर्ण लागत (सी-2) 1936 रुपए प्रति क्विंटल है ।

 

भारत सरकार के बजट 2018-19 की घोषणा की पालना में डेढ़ गुना मूल्य 2904 रुपए प्रति क्विंटल होता है । उसके अनुसार तो किसानों को एक क्विंटल पर ₹ 700 तक कम प्राप्त हो रहे हैं । देश में बाजरे का उत्पादन राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे सात राज्यों में होता है, इनमें अकेले राजस्थान का अंश 48% है । रोचक तथ्य तो यह है कि सरकार प्रतिवर्ष बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर इसका श्रेय लेने के लिए ढोल बजाती रहती है किंतु न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पिछले 12 वर्षों में एक दाने की भी खरीद किसी भी दल की सरकार ने नहीं की । यह स्थिति तब है जब वर्ष 2023 को भारत सरकार के प्रयासों से बाजरा, ज्वार, मक्का, रागी जैसे पौष्टिक मोटे अनाजों को श्री अन्न की संज्ञा देते हुए अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया गया, इसके पूर्व वर्ष 2018 को भारत सरकार ने राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया था । इन प्रयासों में ईमानदारी होती तो किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित हो सकती थी । इस वर्ष खरीफ की फसले 50 से लेकर 90% तक खराब हो गई, जो पैदा हुआ है, उसके दामों से उत्पादक किसान वंचित होने की पीड़ा से त्रस्त है, दूसरी और सरकार मंदिरों के दर्शन में व्यस्त है । किसानो की ओर से 1 अक्टूबर से खरीद आरंभ करने के लिए ज्ञापनों द्वारा मुख्यमंत्री को अनुनय विनय भी निरंतर किया जा रहा है किंतु उसका परिणाम ढाक के तीन पात जैसा होने से सरकार का यह व्यवहार किसानों के लिए कटे पर नमक छिड़कने जैसा है ।

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