जैसलमेर ज़िला प्रशासन ने शुरू किया है एक ऐतिहासिक मिशन ,70 हजार बीघा भूमि का राजस्व रिकॉर्ड में होगा इंद्राज

Edited By Kailash Singh, Updated: 10 Oct, 2025 02:10 PM

70 000 bighas of land in jaisalmer will be included in the revenue records

जैसलमेर ज़िले में एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हो चुकी है…एक ऐसी पहल… जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति की अनमोल धरोहरों को सुरक्षित रखेगी…और पारंपरिक जल संरचनाओं को उनका असली हक दिलाएगी।

जैसलमेर ज़िले में एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत हो चुकी है…एक ऐसी पहल… जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति की अनमोल धरोहरों को सुरक्षित रखेगी…और पारंपरिक जल संरचनाओं को उनका असली हक दिलाएगी।

जिला प्रशासन जैसलमेर ने आगोर, तालाब, नाड़ी, नदी-नाला और ओरण जैसी सदियों पुरानी जल संरचनाओं को अब राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करवाने का बड़ा अभियान शुरू किया है। इस काम को मिशन मोड में अंजाम दिया जा रहा है… ताकि ये प्राकृतिक धरोहरें न सिर्फ सुरक्षित रहें, बल्कि भविष्य में किसी भी तरह के अतिक्रमण या अवैध उपयोग से बचाई जा सकें।

इस ऐतिहासिक मुहिम के तहत अब तक 47 गांवों के पारंपरिक जल स्रोतों और कैचमेंट एरिया की करीब 70 हजार बीघा भूमि के प्रस्ताव तैयार कर जिला प्रशासन ने राज्य सरकार को भेज दिए हैं। ये प्रस्ताव राजस्व रिकॉर्ड में स्थायी इंद्राज के लिए भिजवाए गए हैं।

इस काम में ज़िला प्रशासन ने मजबूत रणनीति अपनाई है — उपखंड अधिकारियों की निगरानी में जल संसाधन विभाग के सहायक अभियंता, कनिष्ठ अभियंता, पटवारी और भू-अभिलेख निरीक्षक की संयुक्त टीमें सर्वे कर रही हैं। ज़मीन पर जाकर सीमांकन किया जा रहा है, सही लोकेशन की पहचान की जा रही है और पुराने जल स्रोतों को रिकॉर्ड में दर्ज किया जा रहा है।

सुल्तानपुरा, चूंधी, अमरनगर, अमरसागर, कुलधर, मूलसागर, बडाबाग, विजयनगर, लुदरवा, पिथला, रूपसी, जायण, हमीरा और जैसलमेर नगर परिषद क्षेत्र सहित कुल 47 गांवों की भूमि के प्रस्ताव राज्य सरकार को स्वीकृति के लिए भेजे जा चुके हैं।

जिला प्रशासन की ये मुहिम सिर्फ कागज़ों तक सीमित नहीं है। फील्ड में तहसीलदारों और राजस्व अमले की विशेष टीमें लगातार सीमांकन और अभिलेख प्रविष्टि का काम प्राथमिकता से कर रही हैं। जहां अतिक्रमण मिला… वहां उसे हटाकर भूमि को मूल स्वरूप में बहाल किया जा रहा है।

इस पहल का उद्देश्य साफ है— जैसलमेर की प्राकृतिक जल धरोहरों को स्थायी रूप से सुरक्षित रखना। प्रशासन ने न केवल भूमि को रिकॉर्ड में दर्ज करने का काम शुरू किया है, बल्कि जनभागीदारी को भी इसमें जोड़ दिया है। ग्रामीण जनों और बुजुर्गों से परामर्श लेकर पारंपरिक जल स्रोतों की सटीक पहचान की जा रही है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि असली जल धरोहरें न तो भूली जाएं और न ही कब्जाई जा सकें।

पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से भी यह कदम बेहद अहम है। इन परंपरागत जल स्रोतों का संरक्षण होगा तो मरुस्थलीय जैसलमेर में भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद मिलेगी… वर्षा जल का संचयन होगा और चारागाह व जैव विविधता को भी स्थायित्व मिलेगा।

जिला कलक्टर ने सभी उपखंड अधिकारियों और संबंधित विभागों को सख्त निर्देश दिए हैं — ओरण, आगोर और जल स्रोतों की राजस्व भूमि का नियमित निरीक्षण करें, रिपोर्ट तैयार करें और जहां ज़रूरत हो, तुरंत कार्रवाई करें।

ये सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं… बल्कि मरुस्थल में जीवन के लिए जल की ऐतिहासिक सुरक्षा योजना है। जैसलमेर में ओरण और आगोर जैसी संरचनाएं सिर्फ जल स्रोत नहीं, बल्कि लोक संस्कृति और परंपरा का हिस्सा हैं। इन्हें सुरक्षित रखकर प्रशासन ने एक नई मिसाल पेश की है।

आने वाले समय में जब ये भूमि और जल स्रोत राजस्व रिकॉर्ड में स्थायी रूप से दर्ज होंगे… तो अतिक्रमण की संभावना खत्म होगी और जल संरचनाओं को संरक्षण के साथ विकास योजनाओं में भी शामिल किया जा सकेगा।

यह पहल पर्यावरण संरक्षण, जल संवर्द्धन और ग्रामीण जनभावनाओं की पूर्ति की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी। जनभागीदारी और परंपरागत ज्ञान के साथ प्रशासनिक कार्रवाई का यह संगम आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित और समृद्ध प्राकृतिक धरोहर सौंपेगा।

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