Excuse me, मुझे कुछ कहना है : बारिश की फुहारों ने दिखा दी सिस्टम की दरारें...

Edited By Vishal Suryakant, Updated: 01 Jul, 2025 07:17 PM

excuse me the rain showers exposed the cracks in the

हम शहरवासी बारिश के मामले में बड़े मौकापरस्त और कुछ हद तक एहसान फरामोश भी हैंं,बारिश हो तो आफत, न हो तो भी आफत! बारिश आए तो जाम, जलभराव, ऑफिस लेट और कामकाज का टेंशन। न आए तो उमस, गर्मी और दीवारों से लटकते एयरकंडिशनर, जो तपिश को और बढ़ा देते हैं।

बारिश का मौसम किसे नहीं भाता..? आसमान से गिरती बूंदें, भीगी ज़मीन की सौंधी ख़ुशबू, फूल-पत्तों पर ठहरती नमी की नवाज़िश…


बारिश में कुदरत एक अलग ही रंगत ओढ़ लेती है। इस मौसम में एक अजब-सी कशिश है, सब कुछ मानो तरोताज़ा, खुशनुमा और एहसासों से लबरेज़ हो जाता है।
आपके लिए लिखते वक्त, अपने दफ्तर की ख़िडकी से देख रहा हूं झालाना डूंगरी की वो पहाड़ियां, जो अवैध खनन की वजह से वीरान और बंजर हो चुकी थीं, वो भी कुछ पल के लिए मुस्कुराने लगी हैं। शायद बारिश की कुछ बूंदें उन्हें उनकी बदनसीबी भुला रही हैं। लेकिन हकीकत की ज़मीन अभी भी सख़्त है। वो जानती हैं कि यह सब चंद दिनों का मंजर है… इसके बाद फिर वही सूनी, पथरीली खामोशी लौट आएगी... 


असल में, हम शहरवासी बारिश के मामले में बड़े मौकापरस्त और कुछ हद तक एहसान फरामोश भी हैंं,बारिश हो तो आफत, न हो तो भी आफत! बारिश आए तो जाम, जलभराव, ऑफिस लेट और कामकाज का टेंशन। न आए तो उमस, गर्मी और दीवारों से लटकते एयरकंडिशनर, जो तपिश को और बढ़ा देते हैं। हमारे शहरों में अब ना तो युवाओं में वो उत्साह दिखता है, और ना ही बच्चों में काग़ज़ की नाव तैराने का वो भोला-सा उल्लास। 


बारिश की ये फुहारें भले ही आसमान से रहमत बनकर गिरें, लेकिन हमारी स्मार्ट सिटी की सड़कों पर गिरते ही ये "सिस्टम की शर्मिंदगी" बन जाती हैं। डामर, सीमेंट और कंक्रीट के जंगल में धरती बूंदों को समेट भी नहीं पाती। स्थानीय निकायों की बदहाली इतनी है कि पूरे साल बारिश की तैयारियों का लवाज़मा चलता है, लेकिन जब बारिश आती है, तो सारी तैयारियों की परतें बह जाती हैं, और बच जाता है सिर्फ़ आइना, जिसमें सिस्टम की पोल खुलकर दिखती है। 


जयपुर में कहीं सड़कों की परतें उखड़ती हैं, कहीं जलजमाव में गाड़ियां डूबती हैं, तो कहीं लोग। मुख्यमंत्री, मंत्री, अफसर, पार्षद... सब मिलकर भी जयपुर को काग़ज़ से बाहर लाकर "वास्तविक स्मार्ट सिटी" नहीं बना सके। हर सरकार ने  सपना दिखाया..."जयपुर को वर्ल्ड क्लास बनाएंगे" लेकिन हर बारिश में जयपुर पैनिक और पनिशमेंट सिटी बन जाता है और पर्यटकों के सामने शेम सिटी…


ज़माल एहसानी का शेर याद आता है, उन्होनें लिखा कि 
''तमाम रात नहाया था शहर बारिश में
 वो रंग उतर ही गए जो उतरने वाले थे.''


.. क्या वाकई, अपना जयपुर इतना बेरंग, इतना बेबस दिखना चाहिए बारिश में? आपका क्या कहना है , कमेंट बॉक्स में ज़रूर लिखिएगा …

आपका - 
विशाल सूर्यकांत 
 (संपादक, पंजाब केसरी राजस्थान डिजिटल )

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