Edited By Chandra Prakash, Updated: 30 Oct, 2024 09:01 AM
छोटी दीपावली जिसे शास्त्रों में नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी या फिर रूप चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा करने और उनके लिए व्रत करने का विधान है। पाल बालाजी ज्योतिष...
जयपुर/जोधपुर, 30 अक्टूबर 2024 । छोटी दीपावली जिसे शास्त्रों में नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी या फिर रूप चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन यमराज की पूजा करने और उनके लिए व्रत करने का विधान है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर-जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि रूप चतुर्दशी 31 अक्टूबर 2024 को मनाया जाएगा। इस दौरान घरों में अभ्यंग स्नान होगा। सभी लोग सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान और पूजन करेंगे। इस दौरान लोग उबटन लगाकर स्नान करेंगे।स्त्रियों के लिए यह पर्व खास होगा। दरअसल स्त्रियां सज संवरकर पूजन -अर्चन करेंगी। इस दौरान ब्यूटी पार्लर्स में रौनक रहेगी। सड़कों, घरों, भवनों में दीपावली की जगमग रहेगी। शाम होते ही वातावरण झिलमिलाने लगेगा। दरअसल रूप चतुर्दशी को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने से लोगों को नर्क की यातनाऐं नहीं भोगनी पड़ती है। इस दिन लोग उबटन से स्नान करते हैं। स्नान के बाद दीपदान होता है। प्रतीकात्मक तौर हल्दी मिले आटे के दिये को पांव लगाया जाता है।
श्रद्धालु महिलाऐं घर आंगन को रगोली के रंगों से संवारती हैं। इस दिन दियों की जगमगाहट से लोगों के घर वृंदनवार रोशन होते हैं। रूप चतुदर्शनी के अलगे दिन कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन किया जाता है। ऐसे में यह दीपावली की शुरूआत होती है। रूप चतुर्दशी पर स्नान के दौरान लोग पटाखे चलाकर उत्साह मनाते हैं।
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि माना जाता है कि महाबली हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था। इसीलिए आज बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी मां लक्ष्मी जी उसी घर में रहती हैं जहां सुंदरता और पवित्रता होती है। लोग लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए घरों की सफाई और सजावट करते हैं इसका अर्थ ये भी है कि वो नरक यानी के गंदगी का अंत करते हैं। नरक चतुर्दशी के दिन अपने घर की सफाई जरूर करनी चाहिए। घर की सफाई के साथ ही अपने रूप और सौन्दर्य प्राप्ति के लिए भी शरीर पर उबटन लगा कर स्नान करना चाहिए। इस दिन रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परम्परा है।कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी नरक चौदस, रूप चतुर्दशी अथवा छोटी दीवाली के रूप में मनाई जाती है।
देवी लक्ष्मी धन की प्रतीक हैं। धन का अर्थ केवल पैसा नहीं होता। तन-मन की स्वच्छता और स्वस्थता भी धन का ही कारक हैं। धन और धान्य की देवी लक्ष्मी जी को स्वच्छता अतिप्रिय है। धन के नौ प्रकार बताए गए हैं। प्रकृति, पर्यावरण, गोधन, धातु, तन, मन, आरोग्यता, सुख, शांति समृद्धि भी धन कहे गए हैं।.लंबी उम्र के लिए नरक चतुर्दशी के दिन घर के बाहर यम का दीपक जलाने की परंपरा है। नरक चतुर्दशी की रात जब घर के सभी सदस्य आ जाते हैं तो गृह स्वामी यम के नाम का दीपक जलाता है।
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि चतुर्दशी तिथि को भगवान विष्णु ने माता अदिति के आभूषण चुराकर ले जाने वाले निशाचर नरकासुर का वध कर 16 हजार कन्याओं को मुक्ति दिलाई थी। परंपरा में इसे शारीरिक सज्जा और अलंकार का दिन भी माना गया है। इसे रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन महिलाएं ब्रह्म मुहूर्त में हल्दी, चंदन, सरसो का तेल मिलाकर उबटन तैयार कर शरीर पर लेप कर उससे स्नान कर अपना रूप निखारेंगी। नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि। दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है। घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है।
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ -30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक
अभ्यंग स्नान का समय
31 अक्टूबर सुबह 05:28 मिनट से 06:41 मिनट तक
नरक चतुर्दशी के दिन कैसे करें हनुमान जी की पूजा?
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यता के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान हनुमान ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था। इस दिन भक्त दुख और भय से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की पूजा-अर्चनाा करते हैं। इस दिन हनुमान चालीसा और हनुमान अष्टक का पाठ करना चाहिए।
नरक चतुर्दशी को क्यों कहते हैं रूप चतुर्दशी?
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यता के अनुसार हिरण्यगभ नाम के एक राजा ने राज-पाट छोड़कर तप में विलीन होने का फैसला किया।कई वर्षों तक तपस्या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। इस बात से दुखी हिरण्यगभ ने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही। नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें। ऐसा करने से फिर से सौन्दर्य की प्राप्ति होगी। राजा ने सबकुछ वैसा ही किया जैसा कि नारद मुनि ने बताया था। राजा फिर से रूपवान हो गए।तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं।
पौराणिक कथा
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं। यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए। तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी। भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं, इन्हीं में से एक कथा नरकासुर वध की भी है.
कथा के मुताबिक प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी त्रास देने लगा। महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था।इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीएं जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।
महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि रूप चौदस पर व्रत रखने का भी अपना महत्व है। मान्यता है कि रूप चौदस पर व्रत रखने से भगवान श्रीकृष्ण व्यक्ति को सौंदर्य प्रदान करते हैं। रूप चतुदर्शी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर तिल के तेल की मालिश और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर नहाना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण के दर्शन करने चाहिए. ऐसा करने से पापों का नाश होता है और सौंदर्य हासिल होता है।
साथ ही रूप चौदस की रात मान्यतानुसार घर का सबसे बुजुर्ग पूरे घर में एक दिया जलाकर घुमाता है और फिर उसे घर से बाहर कहीं दूर जाकर रख देता है। इस दिए को यम दीया कहा जाता है।इस दौरान घर के बाकी सदस्य अपने घर में ही रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिए को पूरे घर में घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती है।
यह कार्य अवश्य करें
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन जहां घर की सफाई की जाती है वहीं घर से हर प्रकार का टूटा-फूटा सामान भी फैंक देना चाहिए। घर में रखे खाली पेंट के डिब्बे, रद्दी, टूटे-फूटे कांच या धातु के बर्तन, किसी प्रकार का टूटा हुआ सजावटी सामान, बेकार पड़ा फर्नीचर व अन्य प्रयोग में न आने वाली वस्तुओं को यमराज का नरक माना जाता है इसलिए ऐसी बेकार वस्तुओं को घर से हटा देना चाहिए।
नहाने से पहले मसाज करें
दक्षिण भारत में यह परंपरा है कि लोग आज के दिन सुबह जल्दी उठकर तेल से पूरे शरीर की मालिश करते हैं. अगर आप पुराने रिवाजों को न भी मानते हों तो भी आप ये काम तो आज कर ही सकते हैं. वैसे भी घर की दिवाली सफाई के बाद आपके शरीर को फिलहाल मसाज की सबसे ज्यादा ज़रूरत है।
उबटन लगाएं
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि कहा जाता है कि श्री कृष्ण के शरीर पर लगा नरकासुर का खून साफ करने के लिए उन्हें उबटन लगाया गया था. तब से इस दिन उबटन लगाने की परंपरा चली आ रही है। वैसे भी त्योहारों पर सजना संवरना हर कोई चाहता है।
मिठाई, स्नैक्स बनाएं
जो मेन्यू आपने कल के लिए तय कर रखा है, उसके कुछ आइटम्स जैसे, मिठाई या स्नैक्स आज ही बना लें. वैसे भी 'दिवाली स्पेशल' खाने की लिस्ट काफी लंबी होती है. इसलिए अगर आप एक-दो चीज़ें आज ही तैयार कर लेंगे तो कल वर्कलोड थोड़ा कम होगा।
घर की सजावट करें
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि घर की साफ सफाई और धनतेरस शॉपिंग के बाद अब वक्त है सजावट का. तो नए पर्दे और बेडशीट्स निकालें और घर को फर्निश करें. घर को लाइट्स और खूबसूरत कैंडल्स से सजाएं. अगर कुछ ट्रेडिश्नल करना हो तो आज के दिन भी दीये जलाने और रंगोली बनाने का रिवाज़ है।
दोस्तों, रिश्तेदारों से मिलने जाएं
फोन पर त्योहार की शुभकामनाएं देने से ज्यादा बढ़िया होता है किसी को खुद जाकर बधाई और तोहफे देना. इसलिए आपके जो यार-रिश्तेदार दूर रहते हैं उनसे आज मिलने जाएं। वैसे भी दिवाली की पूजा और पकवान के बीच दूर दराज के लोगों संग मुलाकात अमूमन संभव नहीं हो पाती है
इस दिन सायं 4 बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में अपना मुख करके घर के मुख्य द्वार पर रखें और
‘दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया। चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये।।’
मंत्र का जाप करें और नए पीले रंग के वस्त्र पहन कर यम का पूजन करें। जो व्यक्ति इन बातों पर अमल करता है उसे नर्क की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
ऊं यमाय नम:, ऊं धर्मराजाय नम:, ऊं मृत्यवे नम:, ऊं अन्तकाय नम:, ऊं वैवस्वताय नम:, ऊं कालाय नम:, ऊं सर्वभूतक्षयाय नम:, ऊं औदुम्बराय नम:, ऊं दध्राय नम:, ऊं नीलाय नम:, ऊं परमेष्ठिने नम:, ऊं वृकोदराय नम:, ऊं चित्राय नम:, ऊं चित्रगुप्ताय नम:।
पूजन विधि
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल या उबटन लगाकर मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए। ऐसा माना जाता हैं कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी के दिन सूर्य के उदय होने के बाद नहाता हैं। उसके द्वारा पूरे वर्ष भर में किये गये शुभ कार्यों के फल की प्राप्ति नहीं होती। सूर्य उदय से पहले स्नान करने के बाद दक्षिण मुख करके हाथ जोड़कर यमराज से प्रार्थना करें। ऐसा करने से व्यक्ति के द्वारा किये गये वर्ष भर के पापों का नाश होता हैं। इस दिन विशेष पूजा की जाती है जो इस प्रकार होती है, सर्वप्रथम एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं तथा सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल, तथा फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें। इसके बाद अपने कार्य स्थान की पूजा करें. पूजा के बाद सभी दीयों को घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं। इसके पश्चात संध्या समय दीपदान करते हैं जो यम देवता, यमराज के लिए किया जाता है। विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो प्रभु को पाता है।
यम-तर्पण
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि नहाने के बाद साफ कपड़े पहनकर, तिलक लगाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके निम्न मंत्रों से प्रत्येक नाम से तिलयुक्त तीन-तीन जलांजलि देनी चाहिए। यह यम-तर्पण कहलाता है। इससे वर्ष भर के पाप नष्ट हो जाते हैं-
इस प्रकार तर्पण कर्म सभी पुरुषों को करना चाहिए, चाहे उनके माता पिता गुजर चुके हों या जीवित हों। फिर देवताओं का पूजन करके शाम के समय यमराज को दीपदान करने का विधान है। नरक चतुर्दशी पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा भी करनी चाहिए, क्योंकि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध किया था। इस दिन जो भी व्यक्ति विधिपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करता है, उसके मन के सारे पाप दूर हो जाते हैं और अंत में उसे वैकुंठ में स्थान मिलता है।