Edited By Chandra Prakash, Updated: 12 Oct, 2024 05:00 PM
बारां जिले के आदिवासी सहरिया बाहुल्य किशनगंज में दशहरा पर्व पर अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यहा मिट्टी से रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला बनाए जाते है। यद्धपि क्षेत्र के गांवों में दशहरा पर रावण परिवार के पुतलों का पूरे विधि-विधान के साथ...
बारां, 12 अक्टूबर 2024 । बारां जिले के आदिवासी सहरिया बाहुल्य किशनगंज में दशहरा पर्व पर अनूठी परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यहा मिट्टी से रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद का पुतला बनाए जाते है। यद्धपि क्षेत्र के गांवों में दशहरा पर रावण परिवार के पुतलों का पूरे विधि-विधान के साथ दहन किया जाता है। लेकिन उपखंड मुख्यालय किशनगंज में आज भी अनूठी परंपरा का निर्वहन करते हुए दशहरे पर मिट्टी के रावण, मेघनाद व कुंभकरण का पुतला बनाकर लाठियों से पीटकर तीनों का वध किया जाता है। शनिवार को यह सब देखने को मिला।
कस्बा निवासी नाथूलाल नागर ने बताया कि कस्बे के निकट स्थिति तपोभूमि कहे जाने वाले देव स्थान बाबाजी के बाग में दशहरे पर मिट्टी के रावण, मेघनाथ व कुंभकरण का पुतला बनाने की परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है। दशहरे पर मुहूर्त के अनुसार कस्बे की आस्था का केन्द्र माने जाने वाले चारभुजा नाथ मंदिर से राम-लक्ष्मण, रावण के धर्म युद्ध में शामिल विभिन्न देवी देवताओं के पात्र बनाकर कस्बे के पटेल सभी समाजों के प्रतिनिधि, महिला व युवा वर्ग बाबाजी के बाग में पहुंचते है। जहां पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। तत्पश्चात ग्रामीण रावण, मेघनाथ व कुंभकरण के मिट्टी से बने पुतले पर लाठियों के वार से प्रहार कर वध करते हैं।
इस परंपरा के पीछे की सोच यह है कि अंहकार को प्रहार से ही ध्वस्त किया जा सकता है। सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में राम-रावण का संवाद पुराने स्थानीय कलाकारों द्वारा आज भी पूरे जोश के साथ किया जाता है। इसी कारण किशनगंज को क्षेत्र के लोग कलाकारों की नगरी भी कहते हैं।
पुतले की मिट्टी है खास
मान्यताओं के अनुसार रावण का नाश करने के बाद लोग मिट्टी को घरों पर लाते हैं। मान्यता है कि घर में पूजा के स्थान पर अनाज भंडारण व तिजोरी जैसे स्थानों पर रावण की मिट्टी रखने से धन-धान्य में बढ़ोतरी होती है।