मां की मेहनत, भाई के त्याग ने मोनू को दिखाया डॉक्टर बनने का रास्ता

Edited By Kailash Singh, Updated: 15 Jul, 2025 04:22 PM

brother s sacrifice showed monu the way to become a doctor

मंजिल से आगे बढ़ कर मंजिल तलाश कर, मिल जाये तुझको दरिया तो समन्दर तलाश कर ! हर शीशा टूट जाता है पत्थर की चोट से, टूट जाये वो शीशा तलाश कर ! सजदों से तेरे क्या हुआ सदियाँ गुजर गयीं, दुनिया तेरी बदल दे वो सजदा तलाश कर ! किसी शायर की यह पंक्तियां...

मां की मेहनत, भाई के त्याग ने मोनू को दिखाया डॉक्टर बनने का रास्ता 
बारां, 15 जुलाई (दिलीप शाह)। मंजिल से आगे बढ़ कर मंजिल तलाश कर, मिल जाये तुझको दरिया तो समन्दर तलाश कर ! हर शीशा टूट जाता है पत्थर की चोट से, टूट जाये वो शीशा तलाश कर ! सजदों से तेरे क्या हुआ सदियाँ गुजर गयीं, दुनिया तेरी बदल दे वो सजदा तलाश कर ! किसी शायर की यह पंक्तियां राजस्थान के बारां ज़िले के एक छोटे से गाँव भडसुई के प्रतिभाशाली विद्यार्थी मोनू के परिवार की संघर्ष की कहानी से सफलता का सफर दर्शाती है। मां की मेहनत और भाई के त्याग ने ही मोनू मीणा को डॉक्टर बनने की राह आसान बनाते हुए सपने को साकार करवाने में अहम भूमिका निभाई है। बारां जिला मुख्यालय से नजदीक से जुड़े भड़सुई गांव जिसकी आबादी महज़ 600 से 700 परिवार की है, वहीं से निकला यह एक सपना था। मोनू मीणा शुरू से पढ़ाई में होशियार था। हिंदी माध्यम में पढ़ने वाला एक साधारण लड़के ने असाधारण संघर्ष के बीच अपना रास्ता मां और भाई के सहयोग से खुद बनाया। NEET 2025 में अपनी श्रेणी में 748वीं रैंक हासिल कर अब वह सरकारी मेडिकल कॉलेज में MBBS की पढ़ाई करेगा और डॉक्टर बनेगा। लेकिन यह केवल सफलता की नहीं, संघर्ष, त्याग और संकल्प की कहानी है। बताते हैं 2011 में मोनू के पिता का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। उस वक्त मोनू बहुत छोटा था। परिवार की सारी जिम्मेदारी आ गई, उसकी माँ श्रीमती कालावती बाई पर। जो खुद भी महज़ एक छोटे से खेत में काम करके परिवार चलाती थी, लेकिन मां की आँखों में बच्चों को पढ़ाने की एक जिद्द थी । मोनू का बड़ा भाई अजय मीणा भी बायोलॉजी से 12वीं पास था और वह भी डॉक्टर बनना चाहता था। जब घर की स्थिति ने इजाज़त नहीं दी कि दोनों बेटों को कोचिंग कराई जा सके। ऐसे में बड़े भाई अजय ने चुपचाप अपने सपने को मोनू के नाम कर दिया। खुद B.Sc. करने लगा, ताकि छोटे भाई का सपना ज़िंदा रह सके। परिवारजनों के अनुसार मोनू ने 10वीं में 91.50% अंक लाकर अपनी प्रतिभा साबित कर दी थी लेकिन जब कोचिंग की बात आई तो आर्थिक स्थिति एक बड़ी दीवार थी। ऐसे में मोनू की मां ने Motion Education Kota से संपर्क किया। वहां उन्हें बताया गया कि राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री अनुप्रति कोचिंग योजना जैसे छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत मोनू को बिना किसी शुल्क के 2 वर्षों तक कोचिंग और रहने खाने की सुविधा मिल सकती है। मोनू मीणा ने आवेदन किया और अच्छे अंकों के आधार पर चयन भी हो गया। फिर, मोनू की ज़िंदगी ने एक नया मोड़ लिया कोटा की ओर। बताते हैं कि मोनू की पहली मुलाकात मोशन के निदेशक एन.वी. सर से हुई, तो उन्होंने मोनू की आँखों में सपना देखा और उसके दिल में हिंदी माध्यम की झिझक।मोनू कहता है कि लोग कहते हैं हिंदी मीडियम से सफल होना मुश्किल है। मैं भी यही सोचता था, लेकिन जब एन. वी. सर से मिला तो मेरी सोच की दिशा ही बदल गई। उसका कहना था कि माध्यम नहीं, मेहनत मायने रखती है। मैंने ठान लिया कि अब मैं दोगुनी मेहनत करूंगा। मोटीन एजुकेशन कोटा ने उसकी काबिलियत पर भरोसा करते हुए उसे हिंदी में स्टडी मटेरियल, टेस्ट सीरीज़, डाउट काउंटर जैसी हर सुविधा दी। वहां के शिक्षकों ने कभी ये महसूस नहीं होने दिया कि वह किसी निजी स्कूल या अंग्रेज़ी मीडियम का छात्र नहीं है। मोनू भावुक होकर कहता है मुझे मेरी भाषा में सीखने का हक़ मिला और यही मेरी ताक़त बन गई। मोनू की मेहनत रंग लाई। उसने NEET 2025 में श्रेणीगत 748वीं  रैंक पाई।अब वह डॉक्टर बनने जा रहा है, लेकिन उसके लिए ये सिर्फ एक पेशा नहीं ये उसकी माँ के आँसुओं का जवाब है और उसके भाई के त्याग का प्रतिफल है। आज अगर मैं यहां हू तो सिर्फ इसलिए कि मेरी माँ ने हार नहीं मानी। मेरे भाई ने अपने सपने मुझे दे दिए और मार्टिन एजुकेशन कोटा ने  ने मुझे ऐसा मंच दिया जहाँ मैंने उड़ना सीखा।मोनू ने राजस्थान सरकार और मुख्यमंत्री का धन्यवाद किया, जिनकी प्रेरणा से अनुप्रति योजना से उसे मंजिल मिलना संभव हुई। हालात - आदिवासी मीणा समाज अनुसूचित जनजाति से है। गांव में एक छोटा सा घर है जिसमें मां और बड़ा भाई साथ रहते है। मां मनरेगा में जाती है और बाकि समय खेतों में मजदूरी करके अपने बच्चों पढ़ा रही है। थोड़ी बहुत खेती की जमीन है। वह भी गुजारे में सहायक बनती हैं। पिता का पहले ही निधन हो चुका 

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