शोलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी का दोस्त बना भालू, पुजारी के हाथ से खाना खाने के बाद लौटता है वापस

Edited By Chandra Prakash, Updated: 25 Aug, 2024 09:08 PM

the bear became a friend of the priest of sholeswar mahadev temple

रणथम्भौर में शोलेश्वर महादेव मंदिर में एक भालू इन दिनों खासी सुर्खियां बटोर रहा है। यह भालू रोज यहां मंदिर में पूजा के समय पहुंच जाता है और आरती के बाद वापस जंगल में लौट जाता है। इतना ही नहीं यह भालू, मंदिर के पुजारी का दोस्त भी बन चुका है। भालू को...

सवाई माधोपुर, 25 अगस्त 2024 । रणथम्भौर में शोलेश्वर महादेव मंदिर में एक भालू इन दिनों खासी सुर्खियां बटोर रहा है। यह भालू रोज यहां मंदिर में पूजा के समय पहुंच जाता है और आरती के बाद वापस जंगल में लौट जाता है। इतना ही नहीं यह भालू, मंदिर के पुजारी का दोस्त भी बन चुका है। भालू को रोज पुजारी खाना भी खिलाते है। इस दौरान भालू किसी को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता। खाना खाकर भालू वापस चला जाता है।

पिछले सात दिन से चल रहा सिलसिला
इस पूरे मामले का एक वीडियो भी रविवार को सामने आया। इस वीडियो में भालू मंदिर में पहुंचता हुआ दिखाई दे रहा है। इस दौरान भालू मंदिर में चहलकदमी करता है। यहां आने पर भालू को पुजारी की ओर से खाना भी खिलाया जाता है। इसके बाद भालू मंदिर से लौट जाता है। यह सिलसिला पिछले करीब 7 दिन से चल रहा है। भालू का व्यवहार किसी जंगली जानवर जैसा नहीं है। वह पुजारी के साथ रोजाना पालतू जानवर जैसा व्यवहार करता है। अभी तक भालू ने यहां किसी भी श्रद्धालु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है। वहीं यहां आने वाले श्रद्धालुओं के बीच यह भालू खासा चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग इस भालू की तुलना जामवंत से कर रहे है।

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घने जंगल में स्थित है शोलेश्वर महादेव मंदिर
शोलेश्वर महादेव मंदिर रणथम्भौर के घने जंगलों में स्थित है। यह मन्दिर रणथम्भौर की सबसे ऊंची पहाड़ियों में एक पहाड़ी पर बना हुआ है। शोलेश्वर महादेव मन्दिर टाइगर रिजर्व के जोन नम्बर 2 में स्थित है। यह शिवालय करीब 450 फीट ऊंचाई पर स्थित है। यहां पर झरने का पानी गौमुख से आकर सीधे भगवान शिव का जलाभिषेक करता है।

725 साल पुराना है शोलेश्वर महादेव मंदिर
मन्दिर के बारे में बताया जाता है कि यह मन्दिर रणथम्भौर के प्रतापी शासक राव हम्मीर के समकालीन है। ऐसे में मन्दिर को करीब करीब सवा 700 साल पुराना माना जाता है। शोलेश्वर महादेव मन्दिर जाने के लिए एक रास्ता पुराने शहर के जोन नम्बर 6 से और एक रास्ता बोदल गांव से जाता है। यहा पर श्रद्धालु पैदल ही पहुंचते है। टाइगर रिजर्व का कोर एरिया होने के कारण यहां जाने के लिए लोगों को प्रशासन से इजाजत लेनी पड़ती है। इस इलाके में प्राइवेट वाहनों को ले जाने की अनुमति नहीं है। इस इलाके में करीब 2 बाघ, बाघिन, लेपर्ड, भालू स्वछंद विचरण करते है।
 

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