क्या रेवंतराम डांगा की विधायकी खतरे में है? खींवसर सीट पर उपचुनाव की अटकलें क्यों तेज़ हुईं?

Edited By Sourabh Dubey, Updated: 17 Dec, 2025 08:00 PM

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राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। वजह है — खींवसर से भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा, जिनकी विधायकी को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं।

जयपुर। राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर सियासी हलचल तेज हो गई है। वजह है — खींवसर से भाजपा विधायक रेवंतराम डांगा, जिनकी विधायकी को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं। विधायक निधि से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के एक बड़े स्टिंग ऑपरेशन के बाद प्रदेश की राजनीति गरमा गई है और अब चर्चाएं यहां तक पहुंच चुकी हैं कि क्या खींवसर सीट पर उपचुनाव हो सकता है?

दरअसल, विकास कार्यों की अनुशंसा के बदले कमीशन मांगने के आरोपों में तीन विधायकों के नाम सामने आए हैं। इनमें सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक रेवंतराम डांगा का नाम भी शामिल है। मामला जब सदाचार समिति तक पहुंचा, तो इसे सामान्य राजनीतिक विवाद मानकर नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि सदाचार समिति की जांच आगे बढ़ती है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

कंवरलाल मीणा का उदाहरण क्यों हो रहा है पेश?

इस पूरे घटनाक्रम में भाजपा के पूर्व विधायक कंवरलाल मीणा का मामला बार-बार उदाहरण के तौर पर सामने लाया जा रहा है। कंवरलाल मीणा को भी कभी पार्टी और बड़े नेताओं का समर्थन हासिल था, लेकिन अंततः उनकी विधायकी चली गई। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या रेवंतराम डांगा के मामले में भी वैसा ही राजनीतिक और कानूनी घटनाक्रम दोहराया जा सकता है?

हनुमान बेनीवाल के हमले और सियासी तल्खी

इस प्रकरण में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के सुप्रीमो और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल लगातार मुखर नजर आ रहे हैं। बेनीवाल ने स्टिंग ऑपरेशन में फंसे विधायकों के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज करने और संबंधित पार्टी से निष्कासन की मांग की है। खास बात यह है कि उनके बयानों में रेवंतराम डांगा का नाम बार-बार सामने आ रहा है।

यही कारण है कि राजनीतिक गलियारों में यह सवाल भी उठ रहा है कि आखिर हनुमान बेनीवाल और रेवंतराम डांगा के बीच ऐसी कौन-सी राजनीतिक या व्यक्तिगत रंजिश है, जो इस पूरे मामले को और तीखा बना रही है?

राजनीति या कानून की कार्रवाई?

रेवंतराम डांगा के समर्थकों और कुछ राजनीतिक हलकों का कहना है कि उन्हें जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है। उनका तर्क है कि भाजपा और कांग्रेस — दोनों के अंदरूनी राजनीतिक समीकरण इस पूरे प्रकरण में भूमिका निभा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, यह भी सच है कि जब आरोपों के साथ सबूत सामने आते हैं, तो कार्रवाई होना स्वाभाविक है।

अब सबसे बड़ा सवाल यही है —
क्या रेवंतराम डांगा की विधायकी वास्तव में खतरे में है?
क्या खींवसर सीट पर उपचुनाव की नौबत आ सकती है?
या फिर यह पूरा मामला राजनीतिक दबाव, बयानबाज़ी और कयासों तक ही सीमित रहेगा?

फिलहाल, सभी की निगाहें सदाचार समिति और आगे होने वाली कानूनी व राजनीतिक कार्रवाई पर टिकी हुई हैं।

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