Edited By Rahul yadav, Updated: 30 Apr, 2025 11:32 AM

राजस्थान में नगरपालिकाओं के चुनावों में हो रही देरी अब न्यायिक जांच के दायरे में आ गई है। पूर्व विधायक संयम लोढ़ा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार को चार...
राजस्थान में नगरपालिकाओं के चुनावों में हो रही देरी अब न्यायिक जांच के दायरे में आ गई है। पूर्व विधायक संयम लोढ़ा द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब देना होगा कि आखिर क्यों समय पर चुनाव नहीं कराए गए और प्रशासक क्यों नियुक्त किए गए।
55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल समाप्त, चुनाव अब तक नहीं
याचिका में कहा गया है कि राज्य की 55 नगरपालिकाओं का कार्यकाल नवंबर 2024 में ही समाप्त हो गया था। लेकिन चुनावों की घोषणा या प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं की गई। इसके बजाय, इन निकायों में प्रशासक नियुक्त कर दिए गए हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह कदम संविधान के अनुच्छेद 243U और राजस्थान नगरपालिका अधिनियम के खिलाफ है, जो निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा शासन की व्यवस्था की बात करता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि जब चुने हुए प्रतिनिधियों का कार्यकाल खत्म होता है, तो सरकार को जल्द से जल्द चुनाव कराकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया बनाए रखनी चाहिए, न कि प्रशासक के माध्यम से शासन चलाना चाहिए।
वन स्टेट, वन इलेक्शन की तैयारी बनी देरी की वजह
राज्य सरकार की ओर से बताया गया है कि वह प्रदेश में ‘वन स्टेट, वन इलेक्शन’ के सिद्धांत पर काम कर रही है। इसका उद्देश्य है कि सभी नगरपालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराए जाएं ताकि प्रशासनिक खर्च और समय की बचत हो सके।
इसी के तहत पूरे राज्य में पुनर्सीमांकन (Delimitation) की प्रक्रिया शुरू की गई है। परिसीमन का कार्य जारी है और इसके पूरा होते ही सरकार नवंबर 2025 में चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। इस प्रक्रिया के दौरान अस्थायी रूप से प्रशासक नियुक्त किए गए हैं ताकि स्थानीय शासन में रुकावट न आए।
परिसीमन भी बना विवाद का कारण
परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी तेज हो गए हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने परिसीमन को लेकर भाजपा पर मनमानी करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि भाजपा ने कई क्षेत्रों में अपने राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखते हुए परिसीमन किया है, जो निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है।
हाईकोर्ट में सरपंच चुनाव टालने का मामला भी विचाराधीन
गौरतलब है कि इससे पहले ग्राम पंचायतों के सरपंच चुनाव टालने का मामला भी राजस्थान हाईकोर्ट में विचाराधीन है। अब नगरीय निकायों के चुनाव को लेकर भी न्यायालय का रुख तय करेगा कि क्या सरकार का प्रशासक नियुक्त करना उचित था, या इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ माना जाएगा।
अगले कदम पर नजर
अब सभी की निगाहें सरकार द्वारा अदालत में दिए जाने वाले जवाब पर टिकी हैं। यदि अदालत को सरकार का पक्ष संतोषजनक नहीं लगा, तो चुनाव शीघ्र कराने के आदेश भी दिए जा सकते हैं। इस बीच राजनीतिक दलों में हलचल तेज है और आम नागरिकों में भी चुनाव को लेकर उत्सुकता बनी हुई है।