Edited By Chandra Prakash, Updated: 14 Aug, 2024 05:52 PM
दौसा जिले का नाम वैसे तो हमेशा चर्चाओं में रहा है, लेकिन यहां के बुनकरों ने आजादी वाले साल के दौरान दौसा का नाम बुलंदियों पर ला दिया था । इसी कड़ी में जानिए इतिहास दौसा के अलूदा गांव का, जहां से देश की आजादी के समय से दौसा को प्रसिद्धि मिली । बता...
दौसा, 14 अगस्त 2024(एचएन पांडे)। दौसा जिले का नाम वैसे तो हमेशा चर्चाओं में रहा है, लेकिन यहां के बुनकरों ने आजादी वाले साल के दौरान दौसा का नाम बुलंदियों पर ला दिया था । इसी कड़ी में जानिए इतिहास दौसा के अलूदा गांव का, जहां से देश की आजादी के समय से दौसा को प्रसिद्धि मिली । बता दें कि दौसा से करीब 14 किलोमीटर दूरी पर एक छोटा सा गांव अलूदा बसा हुआ है । जो कि देशभर में इसलिए प्रसिद्ध है, क्योंकि आजादी का पहला तिरंगा अलूदा के चौथमल बुनकर ने बनाया था । जिसे 15 अगस्त वर्ष 1947 को लालकिले किले की प्राचीर पर फहराया गया था । उधर तिरंगे के कपड़ा निर्माता चौथमल बुनकर का निधन कई दशकों पहले हो गया है । उसके बाद चौथमल बुनकर का परिवार करीब 40 वर्ष पूर्व गांव छोड़कर कर रोजगार की तलाश में अलूदा से पलायन कर चुका है।
दौसा जिले का तिरंगा आज भी राष्ट्रीय धरोहर के रूप में दिल्ली में मौजूद
इधर, राजस्थान खादी ग्रामोद्योग संस्था संघ के मंत्री अनिल शर्मा ने बताया कि देश की आजादी के समय देश वर्सेस चार जगह से तिरंगे मंगवाए गए थे, जिनमें से दौसा जिले का भी एक तिरंगा आज भी दिल्ली में राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संजोया गया है। हालांकि यह बात आज तक भी स्पष्ट नहीं है, कि जो तिरंगे आजादी के समय लाल किले से लहराने को मंगवाए थे, उनमें से कौन सा तिरंगा लाल किले की प्राचीर पर लहराया था । लेकिन तत्कालीन समय के बुनकर चौथमल ने खुद इस बात का कई बार दावा किया है । कि लाल किले की प्राचीर पर पहला तिरंगा दौसा के कपड़े से बनकर आया था । जो अलूदा गांव के बुनकर चौथमल के घर के बाहर आज भी साइन बोर्ड लगा है, जिस पर लिखा हुआ है 1947 के भारतीय प्रथम झंडा बुनकर चौथमल निवास लाल किले की शान ।
खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के मंत्री अनिल शर्मा की मानें तो उस समय आजादी की लड़ाई के दौरान गोविंदगढ़ गांव में तमाम आजादी के दीवानों का गढ़ हुआ करता था । उस समय देश पांडे और टाट साहब द्वारा आजादी के तिरंगे का कपड़ा दौसा के चौथमल बुनकर के यहां से ले जाया गया था । बताया तो यह भी जाता है कि खुद देश पांडे और टाट साहब ने उस तिरंगे को अपने हाथ से कलर करके बनाया और देश की आजादी के समय लाल किले पर लहराया ।
अब समझिए इन तिरंगा बुनकरों का दर्द ?
इन बुनकरों की माने, तो यह लोग आज भी न्यूनतम मजदूरी से नीचे की मजदूरी पर खड़ी का काम करते हैं । इनका कहना तो यहां तक भी है, कि खादी के लिए इन लोगों ने अपने आप को समर्पित कर दिया । लेकिन खड़ी से इन्हें इतना भी नहीं मिल पाता कि उनके घर का गुजारा चल सके । जिसे लेकर कई बार सरकार के सामने भी पहलू रखे गए । लेकिन सरकार भी इन बुनकरों की फरियाद को आज तक पूरा नहीं कर पाई । परिणाम यह रहा कि अब यह बुनकर इस काम को छोड़ने के कगार पर आ गए हैं ।
आजादी से लेकर अब तक चरखे के जरिए बुनकर कर रहे हैं काम
ऐसे में बुनकर चिरंजी लाल महावर का कहना है कि अगर सरकार सहारा दें तो बुनकर इस परम्परा जुड़े रहेंगे । बताया जाता है कि एक दिन में चरखे से ऊन के दो गट्टे बनाने पर इन्हें मात्र 152 रुपए ही मिलते हैं ।। इधर इन बुनकरों की फरियाद सरकार ने जल्द नहीं सुनी तो वह दिन दूर नहीं जब खादी के यह बुनकर अपना पारंपरिक काम छोड़कर दूसरे कामों में लग जाएंगे । अब देखने वाली बात ये होगी कि अब सरकार इन बुनकरों का कितना सहयोग करेगी । ये तो सरकार पर ही निर्भर रहेगा और अगर आने वाले समय में अगर इन्हें सुविधाएं नहीं मिल पाई तो इस तरह का व्यवसाय पूरी तरह से खत्म होने की कगार पर हो जाएगा ।