“वन है तो जीवन है” – मणिपाल विवि संगोष्ठी में आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने दिया संदेश

Edited By Raunak Pareek, Updated: 29 Aug, 2025 04:16 PM

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मणिपाल विवि, जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा – “वन नहीं रहेंगे तो जीवन अधूरा हो जाएगा।” कार्यक्रम में पर्यावरण संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और भारतीय ज्ञान परंपरा पर विशेषज्ञों ने विचार साझा किए।

वन है तो जीवन है। यदि वन नहीं रहेंगे तो जीवन अधूरा और अस्तित्वहीन हो जाएगा। यह विचार वरिष्ठ चिंतक-विचारक एवं अयोध्या स्थित हनुमंत निवास के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने गुरुवार को मणिपाल विवि, जयपुर में व्यक्त किए। वे आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी “ऊर्जा, स्थिरता  और जलवायु परिवर्तन: भारतीय ज्ञान प्रणाली एवं दृष्टिकोण” को संबोधित कर रहे थे। इस संगोष्ठी का आयोजन मीडिया, कम्युनिकेशन एंड फाइन आर्ट्स विभाग ने किया। नॉलेज पार्टनर के रूप में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली का भी सहयोग रहा। आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में हर कार्य पर्यावरण से जुड़ा हुआ है, जिस पर पुनः विचार करने की जरूरत है. हमारे पर्व, त्यौहार और परंपराएं पर्यावरण के प्रति आस्था और समर्पण को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि “दुनिया का कोई भी पौधा औषधीय गुणों से रहित नहीं है। हर क्रांति एक व्यक्ति से शुरू होती है और धीरे-धीरे एक छोटा विचार बड़ा आंदोलन बन जाता है। आज पर्यावरण संरक्षण के लिए भी इसी सोच और प्रयास की आवश्यकता है।”

मणिपाल विवि की  प्रोवोस्ट डॉ. नीतू भटनागर ने कहा कि विश्वविद्यालय पर्यावरण संरक्षण को लेकर निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि अकादमिक जगत को इस दिशा में सार्थक भूमिका निभानी होगी। मुख्य वक्ता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऱाष्ट्रीय पर्यावरण संयोजक गोपाल आर्य ने संगोष्ठी में आए प्रतिभागियों से संकल्प दिलवाया कि वे जीवन के हर छोटे कार्य में पर्यावरण की रक्षा का ध्यान रखेंगे। उन्होंने कहा, “यदि हम गिलास का पूरा पानी भी पी लें तो यह भी संरक्षण का एक प्रयास है। पेड़ लगाना, पानी बचाना और पॉलिथीन हटाना ही धरती और पर्यावरण का वास्तविक कल्याण करेगा।”

राजस्थान सरकार के उच्च शिक्षा आयुक्त ओ.पी. बैरवा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर आमजन में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली के पर्यावरण संयोजक संजय स्वामी ने प्लास्टिक के दुष्प्रभावों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि युवाओं को इस मुहिम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि वे जिम्मेदारी समझकर पर्यावरण की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभा सकें। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, राजस्थान के सह-संयोजक नितिन के. जैन ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण किसी एक संस्था या व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि यह सामूहिक उत्तरदायित्व है।

तकनीकी सत्र में देशभर से आए शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। समापन समारोह में एमबीएम विवि, जोधपुर के प्रो. मिलिंद कुमार शर्मा ने भारतीय ज्ञान प्रणाली में रिसाइकिल और रियूज की परंपराओं पर चर्चा की। इनोवेटिव गर्वनेंस रिफॉर्म फेडरेशन के डायरेक्टर डॉ. विजय व्यास ने जलवायु परिवर्तन के कारणों और उसके वैश्विक प्रभावों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस संगोष्ठी का संयोजन डॉ. प्रभात दीक्षित और डॉ. विनोद यादव ने किया, जबकि संचालन डॉ. प्रशास्ति जैन और डॉ. गोविंद कुमार ने किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षकगण और शोध छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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