Edited By Chandra Prakash, Updated: 10 Nov, 2024 06:18 PM
प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों के उप चुनाव हो रहे हैं। चुनाव प्रचार के आखिरी दो दिन बचे हैं। सत्ता वाली पार्टी और विपक्ष वाली पार्टी दोनों ही अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए जोर लगा रही हैं । दो सीटों पर स्थानीय पार्टियां अपने उम्मीदवारों को...
हनुमानगढ़, 10 नवंबर 2024 । प्रदेश में विधानसभा की सात सीटों के उप चुनाव हो रहे हैं। चुनाव प्रचार के आखिरी दो दिन बचे हैं। सत्ता वाली पार्टी और विपक्ष वाली पार्टी दोनों ही अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए जोर लगा रही हैं । दो सीटों पर स्थानीय पार्टियां अपने उम्मीदवारों को मजबूत बनाए हुए हैं। स्थानीय पार्टियों वाली दो सीटों को छोड़कर बाकी सीटों पर दोनों मुख्य पार्टियों में सीधा मुकाबला है। सत्ता वाली पार्टी की तरफ से सरकार के मुखिया खुद प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। हालांकि उनके साथ उनकी पार्टी के प्रधान प्रचार में पहुंच रहे हैं लेकिन ज्यादा चर्चे सरकार के मुखिया के ही है। आखिरी दौर में सभाओं की संख्या बढ़ी है। सरकार के मुखिया एक विधानसभा क्षेत्र में दो से तीन सभाएं कर रहे हैं। उनके सामने विपक्ष वाली पार्टी की तरफ से संगठन मुखिया ने मोर्चा संभाला हुआ है। पहले विपक्ष वाली पार्टी की तरफ से सरकार के पूर्व मुखिया उम्मीदवारों के नॉमिनेशन करवाकर अपने प्रभार वाले राज्य में ऑब्जर्वर की भूमिका निभाने चले गए हैं। विपक्ष वाली पार्टी में युवा नेता ने लेट एंट्री मारी है। वह उम्मीदवारों के समर्थन में सभाएं कर रहे हैं। विपक्षी पार्टी के संगठन मुखिया ने अब मेहनत तेज कर दी है। एक स्थानीय पार्टी वाले नेता की सीट पर संगठन मुखिया ने जबरदस्त प्रचार किया और सांसद बने नेता को खूब घेरा। उन्होंने अपने समाज के उन सभी नेताओं की पैरवी की जो दोनों ही पार्टियों में हैं । सत्ता वाली पार्टी की तरफ से प्रचार कर रहे सरकार के मुखिया के सामने प्रचार का मोर्चा संभालने से विपक्ष वाली पार्टी में संगठन मुखिया का कद और बढ़ा है। वैसे लोकसभा चुनाव में उम्मीद से ज्यादा सीटें जीतकर संगठन मुखिया दिल्ली में अपनी पहचान बना चुके हैं। दिल्ली में उन्हें काफी मजबूत एक्सेस मिला हुआ है और वह पार्टी के सबसे बड़े परिवार के सीधे संपर्क में हैं । उपचुनाव के नतीजे विपक्षी पार्टी में संगठन मुखिया के पद पर काफी असर डालेंगे, यह भांपकर ही संगठन मुखिया प्रचार में कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
तस्वीर बदलने की चर्चा!
प्रदेश की सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव के नतीजे सत्ता वाली पार्टी में काफी कुछ बदलने वाले हैं। खासकर मंत्रिमंडल में बदलाव और विस्तार इस उपचुनाव के नतीजे के बाद ही होना है। उपचुनाव के बाद मंत्रियों की परफॉर्मेंस का आकलन होगा। कमजोर परफॉर्मेंस वाले मंत्रियों को बदला जाएगा और मंत्रियों के खाली पड़े पदों पर इस बार शपथ होने की पूरी संभावना है। राजनीतिक नियुक्तियों का सिलसिला भी उपचुनाव के नतीजे के बाद शुरू होगा। राजनीतिक नियुक्तियों में पद चाहने वाले नेता उपचुनाव के प्रचार में अपना चेहरा दिखाने लगे हैं। कई नेता उपचुनाव वाले क्षेत्रों में डेरा डाले हुए हैं। मंत्रियों की परफॉर्मेंस का आकलन अभी से राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। खाने-पीने की सामान की सप्लाई वाले महकमे की अच्छी परफॉर्मेंस की चर्चा हर जगह है। इस महकमे के मंत्री ने अच्छा काम किया है और राजनीतिक नियुक्तियों में बड़ी तादाद में पार्टी कार्यकर्ताओं को सेट किया है । खेती-बाड़ी वाला महकमा मंत्री बने 'बाबा' के नाराज होने की वजह से लगभग खाली ही रहा है। अब 'बाबा' के भाई उपचुनाव लड़ रहे हैं। 'बाबा' के भाई यदि चुनाव जीतते हैं तो इस महकमे मैं बड़ा बदलाव होने की संभावना है। चर्चा है कि 'बाबा' खुद मंत्री पद छोड़ देंगे और उनके भाई को मंत्रिमंडल में एडजस्ट किया जा सकता है। आयोगों और बोर्डों में चेयरमैन के पद राजनीतिक नियुक्तियों से भरे जाने हैं और नेता इसकी लॉबिंग में लगे हुए हैं।
चली किसकी, का हो रहा आंकलन !
जिले के नए पुलिस कप्तान ने पहली बार कई थानों के इंचार्ज बदले हैं। करीब आधा दर्जन थानों के इंचार्ज बदले गए हैं। इस बदलाव में जिला मुख्यालय के सबसे बड़े थाने में एक महिला अफसर को इंचार्ज लगाया गया है। ईमानदार और सौम्य छवि वाली यह अफसर इससे पहले लंबे वक्त तक महिला पुलिस थाना में तैनात रही है। पुलिस कप्तान द्वारा किए गए बदलाव में जिले के अन्य थानों के इंचार्ज भी बदले हैं। अब राजनीतिक गलियारों में इसकी चर्चा हो रही है कि इस बदलाव में राजनीतिक रूप से किसकी चली है? आमतौर पर सत्ता वाली पार्टी के नेताओं की सिफारिश पर थानों में अफसरों की नियुक्ति की जाती है। जिला मुख्यालय पर अफसरों की तैनाती में सत्ता वाली पार्टी के चुनाव में उम्मीदवार रहे युवा नेता और निर्दलीय विधायक की खींचतान हमेशा सामने आती रही है। थाना इंचार्ज की नियुक्ति में पुलिस कप्तान ने किस तरह से बीच का रास्ता निकाला है यह अभी चर्चा का विषय है। पुलिस कप्तान ने किसकी सिफारिश पर नियुक्ति की है इसका आंकलन राजनीतिक और प्रशासनिक गलियां में खूब हो रहा है। एक चर्चा ये भी है कि नियुक्तियों में कप्तान ने नेताओं की नहीं सुनी बल्कि अधिकारियों की परफॉर्मेंस के आधार पर नियुक्तियां की ग़ई है। बदरअसल जिला मुख्यालय पर दोनों धड़ों की रस्साकशी से सिर्फ खुंदक निकालने वाले काम हो रहे हैं। छोटे-छोटे मसले राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में उलझ रहे हैं। इसका अब जिला मुख्यालय को थोड़ा बहुत नुकसान भी महसूस होने लगा है। कई नियुक्तियां और फैसले सरकार के स्तर पर इसलिए अटक जाते हैं कि दोनों धड़ों की उसमें सहमती नहीं बन पाती। उपचुनाव के बाद सरकार के मुखिया इस सिलसिले में कुछ गाइडलाइन तय कर सकते हैं । फिलहाल पुलिस कप्तान द्वारा किए गए तबादलों में राजनीतिक एप्रोच की जड़ तलाशी जा रही है।