अरावली हमारी लाइफलाइन, खनन का निर्णय डेथ वारंट जैसा—भारत सेवा संस्थान की सेमिनार में गूंजा सवाल

Edited By Deeksha Gupta, Updated: 11 Dec, 2025 05:43 PM

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भारत सेवा संस्थान द्वारा आयोजित सेमिनार में अरावली संरक्षण को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की गई। वक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय—जिसमें 100 मीटर तक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति दी गई है—को "अरावली के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर" करार दिया।

जयपुर। भारत सेवा संस्थान द्वारा आयोजित सेमिनार में अरावली संरक्षण को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की गई। वक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय—जिसमें 100 मीटर तक ऊंचाई वाले पहाड़ों पर खनन की अनुमति दी गई है—को "अरावली के डेथ वारंट पर हस्ताक्षर" करार दिया।

सेमिनार में शामिल करीब एक दर्जन विशेषज्ञों ने आरोप लगाया कि सरकार ने अदालत के सामने जनता का पक्ष मजबूती से नहीं रखा और केवल एक कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर फैसला हो गया, जबकि यह निर्णय राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, दिल्ली के जंगल, खेती, पानी और पर्यावरण पर गहरा असर डालने वाला है।

 90% अरावली के खत्म होने का खतरा

वक्ताओं का कहना था कि यदि यह निर्णय लागू हुआ तो आने वाले वर्षों में 90 प्रतिशत अरावली पर्वत श्रृंखला समाप्त हो सकती है, जिसका दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को झेलना पड़ेगा।

 ‘जगाने का समय है’—जलपुरुष राजेन्द्र सिंह

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेन्द्र सिंह ने कहा कि पहले सरकार और अदालतें पर्यावरण के मामलों को गंभीरता से लेती थीं, “अब वह बात नहीं रही।”
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह निर्णय लागू हो गया तो केवल 7–8% अरावली ही बचेगी।

उन्होंने विधिक लड़ाई के साथ-साथ जनता में व्यापक जनजागरण का आह्वान किया।

 विपक्ष का समर्थन—‘अरावली नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा’

राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने भारत सेवा संस्थान के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि अरावली को बचाने के लिए वह हरसंभव सहयोग देंगे।

 आदिवासी समुदाय पर सबसे बड़ा खतरा

पर्यावरणविद जयेश जोशी ने कहा कि दिल्ली या बड़े शहरों से पहले चिंता उन आदिवासी समुदायों की होनी चाहिए,
“जो हजारों वर्ष से अरावली पर निर्भर रहकर जीवित हैं।”

 ‘खेती, जीव-जंतु और अभ्यारण्य सभी खतरे में’

प्रदीप पूनिया ने चेतावनी देते हुए कहा कि खनन लागू हुआ तो केवल पहाड़ ही नहीं, बल्कि
खेती, वन्यजीव, अभ्यारण्य—सब कुछ समाप्त हो जाएगा।

 वैभव गहलोत का बयान—'भविष्य हमें माफ नहीं करेगा'

वैभव गहलोत ने कहा कि झालाना लेपर्ड सफारी, रणथंभौर और सरिस्का जैसे अभ्यारण्य अरावली की वजह से ही अस्तित्व में हैं। उन्होंने कहा कि राज्य की अर्थव्यवस्था बचाने के लिए अरावली का बचना बेहद जरूरी है।

 विशेषज्ञों की मांग—अरावली कंज़र्वेशन अथॉरिटी बने

विनय बापना ने सुझाव दिया कि अरावली से जुड़े राज्यों के लिए एक
Aravalli Conservation Authority
का गठन होना चाहिए ताकि संरक्षण कार्य प्रभावी ढंग से संचालित हो सके।

नीलम अहलूवालिया ने फैसले को अस्वीकार्य बताते हुए कहा कि इसके लागू होते ही पूरा क्षेत्र रेगिस्तान बन जाएगा।

 अब तक 22% अरावली नष्ट—कैलाश मीणा

उन्होंने बताया कि अनियंत्रित खनन से अब तक 22% अरावली नष्ट हो चुकी है और यदि नया खनन शुरू हो गया तो हालात और बदतर होंगे।

 माउन्ट कंज़र्वेशन एक्ट बनाने की मांग

भारत सेवा संस्थान के सचिव और पूर्व महाधिवक्ता जी.एस. बापना ने कहा कि केंद्र सरकार पर
Forest Conservation Act की तर्ज पर
Mount Conservation Act
बनाने का दबाव बनाया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक से पहाड़ बहुत जल्दी साफ किए जा सकते हैं और एक बार खनन शुरू हुआ तो अरावली तेजी से खत्म हो जाएगी।

 सेमिनार का संचालन

प्राकृत भारती के सभागार में हुए कार्यक्रम का संचालन एस.एस. जोशी ने किया।

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