भटनेर के झरोखे से : अदालतों में सत्तापक्ष की ‘न्याय-नौकरी’ का नया फार्मूला!

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 12 Jan, 2025 01:23 PM

ruling party s new formula of  justice job  in the courts

प्रदेश की अदालतों में लोक अभियोजकों की नियुक्ति के मामले में सरकार की लगातार एक साल की चुप्पी आवेदकों को अखर रही थी। खासतौर पर लोकसभा चुनावों के बाद से ही यह सवाल उठ रहा था कि सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनी विचारधारा के कर्मयोगियों को तवज्जो देने के बजाय...

हनुमानगढ़, 12 जनवरी (बालकृष्ण थरेजा) | प्रदेश की अदालतों में लोक अभियोजकों की नियुक्ति के मामले में सरकार की लगातार एक साल की चुप्पी आवेदकों को अखर रही थी। खासतौर पर लोकसभा चुनावों के बाद से ही यह सवाल उठ रहा था कि सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनी विचारधारा के कर्मयोगियों को तवज्जो देने के बजाय विपक्षी सरकार के कार्यकाल के अधिवक्ताओं को ही क्यों नियुक्त किया हुआ है। अब जबकि एक साल का वक्त सरकार ने पूरा कर लिया है और अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए हनुमानगढ़ सहित प्रदेश की कई अदालतों में लोक अभियोजक और अपर लोक अभियोजकों की नियुक्ति कर दी है। नियुक्तियों की घोषणा के बाद एक साल की चुप्पी का राज समझ में आ गया है। हालांकि नियुक्तियों में आमतौर पर योग्य और अनुभवी अधिवक्ताओं को प्राथमिकता दी गई है। मगर मजेदार बात ये है कि नियुक्त किये गए अधिकांश अधिवक्ता आरएसएस, विश्व हिंदू परिषद या भाजपा से जुड़े हुए ही नहीं हैं बल्कि स्वंय इन संगठनों के पदाधिकारी भी हैं। अब यह खबर सुनकर तमाम पार्टियों के समर्थक अधिवक्ताओं के चेहरे की रंगत उड़ी हुई है, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि सरकार निष्पक्ष और संतुलित नियुक्तियां करेगी तो शायद उनका भी नंबर आ जाए। यह स्थिति सत्ताधारी कार्यकर्ताओं के लिए तो सुखद है, लेकिन बाकी अधिवक्ताओं को निराशा हुई है। वहीं सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर अब ही पार्टी विचारधारा के लोगों को मान्यता नहीं मिलेगी तो फिर कब मिलेगी? उन्होंने सवाल उठाया कि केन्द्र और राज्य में सत्तारूढ़ होने के बावजूद भी क्या वे दरियां ही बिछाते रहेंगे ? नियुक्तियों की घोषणा से सरकार को लगता है कि जो उनकी पार्टी की विचारधारा से जुड़ा है, वही सही और स्टीक है लोक अभियोजक बनने के लिए। ऐसा लगता है कि न्याय का तराजू अब सत्तारूढ़ पार्टियों के पक्ष में थोड़ा ज्यादा झुका हुआ है। तो क्या यह लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर रहा है, या फिर यह एक और उदाहरण है कि सत्ता में बैठे लोग अपने पक्षकारों को ही प्रमुखता देने के लिए सबकुछ करने को तैयार रहते हैं? खैर...सरकार की इस ‘क़ानूनी कारवाई’ से जहां भाजपा के समर्थक आनंदित हैं, वहीं विपक्षी दल और अन्य अधिवक्ता अब इस नए समीकरण पर गहरी सोच में पड़ गए हैं। अब सरकार को चाहिए कि वे इस ‘ न्यायप्रियता’ को लेकर गंभीरता से सोचे। क्योंकि अगर न्यायपालिका में भी सिर्फ एक ही विचारधारा काबिज हो जाए तो न्याय के नाम पर क्या बाकी रह जाएगा ?

क्या खुलेगा दावों का पिटारा ?
प्रदेश की सरकार ने अधिकारियों- कर्मचारियों के तबादलों में छूट की अवधि को 5 दिन और बढ़ा दिया है। तबादलों के इच्छुक कर्मचारी अब नेताओं की डिजायर लेने के लिए उनके दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं। जिला मुख्यालय पर सत्ता के दो पावर सेंटर हैं ।यहां से निर्दलीय विधायक और विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी रहे युवा नेता के निवास पर तबादलों के इच्छुक कर्मचारी अर्जी लेकर पहुंच रहे हैं। दोनों ही नेता अर्जी को अपनी डिजायर के साथ संबंधित महकमे को भेज रहे हैं। दोनों कैंप दावे कर रहे हैं कि उनकी डिजायर के आधार पर तबादले होंगे। पिछले दिनों कोर्ट में सरकारी वकीलों की राजनीतिक नियुक्ति हुई है। इन नियुक्तियों में भी दोनों नेताओं के संतुलन की बात सामने आई है। वैसे सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक की सत्ता में ज्यादा पूछ है। उन्होंने पिछले दिनों सरकार के मुखिया से भी मुलाकात की थी। विधायक के कैंप में तबादले के इच्छुक लोगों की भीड़ ज्यादा है। वहीं पार्टी प्रत्याशी भी राजधानी में पार्टी के बड़े नेताओं से मिलकर पार्टी कार्यकर्ताओं के काम करवाने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों नेता दावा कर रहे हैं कि उनकी डिजायर को महत्व मिलेगा। अब तबादला सूचियां जारी होने लगी हैं । पावर गैलरी में यह साबित हो जाएगा की लिस्ट में किसके कितने नाम हैं । वैसे तबादले के इच्छुक कर्मचारी दोनों जगह ही हाजिरी लगा रहे हैं तो यह नेताओं के लिए भी भ्रम की हालत पैदा करने वाला है।

खबरें चल रही हैं मगर दिल्ली मौन !
विपक्ष वाली पार्टी में ऑल इंडिया लेवल पर बदलाव की खबरें कई बार चल चुकी हैं । पार्टी की नीति निर्धारक कमेटी ने पार्टी चीफ को बदलाव का फ्री हैंड काफी पहले दे दिया था। कमेटी की मीटिंग में यह तय हुआ था कि पार्टी चीफ अपने हिसाब से बदलाव कर सकते हैं। उसी दिन मीडिया में खबरें आई कि अब संगठन का ढांचा चुस्त-दुरुस्त होगा लेकिन कोई हलचल नहीं हुई। अब खबरें चल रही है है कि बदलाव की लिस्ट तैयार है और बाहर आने वाली है। खबरों के मुताबिक इस बदलाव में प्रदेश से कई नेताओं को बड़ी जिम्मेवारी मिल सकती है। खासकर सरकार के पूर्व मुखिया को पार्टी में बड़ा पद दिया जा सकता है। चर्चा तो यहां तक है कि उनके लिए कोई नया पद बनाया भी जा सकता है। वैसे पूर्व मुखिया इन दिनों  खूब सक्रिय हैं। सूबे की सरकार को घेरने के लिए वह सबसे पहले सामने आते हैं। दिल्ली में उनका आना जाना लगा हुआ है। कई और नेताओं को जिम्मेवारी की खबरें हैं । इन खबरों से पार्टी में युवा नेता के कैंप में बेचैनी बढ़ने लगी है। मलमास इस हफ्ते खत्म हो जाएगा तो हो सकता है पार्टी की बदलाव की खबरों पर मुहर लग जाए। आधिकारिक सूची नहीं आने तक सिर्फ खबरों से ही चर्चाओं का बाजार गर्म है।

विरोध के लिए पुरानी तस्वीरें बनी सहारा !
सत्ता वाली पार्टी में संगठन के चुनाव चल रहे हैं। इस चुनाव में बूथ से लेकर राष्ट्रीय कार्यकारिणी तक की नियुक्तियां की जानी हैं । चुनाव की टाइमलाइन के हिसाब से अब तक पार्टी जिलाध्यक्षों के निर्वाचन की प्रक्रिया पूरी हो जानी थी। पार्टी के प्रदेश प्रधान ने भी जनवरी के पहले पखवाड़े में सभी जिला अध्यक्षों की घोषणा का दावा किया था। इसके उलट हालत यह है कि अभी तक मंडल अध्यक्षों की सूचियां भी जारी नहीं हुई हैं । पड़ौसी जिले में मंडल अध्यक्ष बन चुके हैं लेकिन जिले में पार्टी नेताओं का आपसी विरोध राजधानी तक पहुंच गया है। अब पार्टी नेतृत्व ने मंडल अध्यक्षों की सूचियां भी रोक दी हैं। सूची जारी करने में पूरी सावधानी बढ़ती जा रही है। दरअसल पूरे जिले में सभी विधानसभा क्षेत्र में पार्टी नेताओं में आपस में विरोध है और वे अपनी पसंद के कार्यकर्ताओं को मंडल अध्यक्ष नियुक्त करवाना चाहते हैं। किसी का नाम सामने आने पर दूसरे खेमे के लोग उसका विरोध करने राजधानी पहुंच जाते हैं। इस विरोध में दावेदारों की सोशल मीडिया से ऐसी तस्वीरें इस्तेमाल की जाती हैं जो उनके विरोधी पार्टी के नेताओं के साथ हों या अन्य कोई गतिविधि में हो। इन दावेदारों की पुरानी सोशल मीडिया एक्टीविटी विरोध के काफी काम आ रही है। पार्टी जिलाध्यक्ष के नाम पर भी सहमति नहीं बन पाई है। जिले में अध्यक्ष बनने के आधा दर्जन से अधिक दावेदार हैं और नेताओं के गुट उनकी पैरवी भी कर रहे हैं। मौजूदा जिलाध्यक्ष का विरोध आखिर में उनके फेवर में गया लगता है। बड़े नेताओं के विरोध से राजधानी में जिलाध्यक्ष के मजबूत होने का संदेश गया है। फिलहाल पार्टी ने जिलाध्यक्ष की घोषणा को टाल दिया है और हो सकता है मौजूदा जिलाध्यक्ष को एक्सटेंशन मिल जाए। यह पहली बार है कि पार्टी में संगठन का चुनाव इतना रोचक बना हुआ है।

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