ढोली समाज के युवाओं ने किया मृत्यु भोज का विरोध

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 24 Feb, 2025 08:31 PM

the youth of dholi community opposed the death feast

हनुमानगढ़ | परंपराओं और कुरीतियों के नाम पर हो रहे आर्थिक और सामाजिक शोषण के खिलाफ ढोली समाज के युवाओं ने बड़ा कदम उठाया है। समाज में व्याप्त मृत्यु भोज की प्रथा पर रोक लगाने और इस कुरीति के खिलाफ जनजागरण करने के लिए सोमवार को हनुमानगढ़ के सुरेशिया...

हनुमानगढ़ (बालकृष्ण थरेजा) | परंपराओं और कुरीतियों के नाम पर हो रहे आर्थिक और सामाजिक शोषण के खिलाफ ढोली समाज के युवाओं ने बड़ा कदम उठाया है। समाज में व्याप्त मृत्यु भोज की प्रथा पर रोक लगाने और इस कुरीति के खिलाफ जनजागरण करने के लिए सोमवार को हनुमानगढ़ के सुरेशिया में एक बैठक आयोजित की गई। बैठक में उपस्थित युवाओं ने संकल्प लिया कि समाज के किसी भी परिवार में मृत्यु होने पर मृत्यु भोज का विरोध किया जाएगा और इसके अनावश्यक खर्चों को समाप्त करने के लिए लोगों को जागरूक किया जाएगा।

मृत्यु भोज: एक आर्थिक और सामाजिक बोझ
समाज के वरिष्ठ सदस्यों और युवाओं ने इस बैठक में गहराई से चर्चा की कि मृत्यु भोज न केवल आर्थिक रूप से नुकसानदायक है, बल्कि इससे समाज में अन्य बुराइयों को भी बढ़ावा मिलता है। बैठक में बताया गया कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो परिवार पहले ही मानसिक और भावनात्मक रूप से गहरे संकट में होता है। ऐसे में उस पर मृत्यु भोज के नाम पर दस से बारह लाख रुपये खर्च करने का दबाव बनता है। यह एक ऐसी परंपरा बन चुकी है जिसमें मिठाई, काजू-बादाम, महंगी शराब, डीजे और पटाखे जैसी अनावश्यक चीजों पर पैसे उड़ाए जाते हैं।

शिक्षा और सामाजिक विकास पर पड़ता है असर
युवाओं ने यह भी कहा कि मृत्यु भोज की इस परंपरा के कारण समाज में शिक्षा और आर्थिक विकास बाधित हो रहा है। जब एक परिवार अपनी कमाई और बचत को मृत्यु भोज पर खर्च कर देता है या इसके लिए कर्ज ले लेता है, तो अगली पीढ़ी की शिक्षा और भविष्य प्रभावित होता है। इस परंपरा से समाज के कई गरीब परिवार जीवनभर कर्ज में डूबे रहते हैं, जिससे उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर गिरता चला जाता है।

शराब और नशीली वस्तुओं का सेवन: बढ़ती बुराई
बैठक में यह भी चर्चा हुई कि मृत्यु भोज के दौरान कई जगहों पर शराब और नशीली वस्तुओं का सेवन किया जाता है। समाज के कुछ लोग इस अवसर को मौज-मस्ती का रूप दे देते हैं, जिससे सामाजिक विकृति और बढ़ती है। श्मशान घाट में पटाखे फोड़ने जैसी असंवेदनशील प्रथाएं भी जारी हैं जो इस कुरीति के प्रति जागरूकता की कमी को दर्शाती हैं।

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    युवाओं का संकल्प: सरल और गरिमामय विदाई
    ढोली समाज के सुभाष ने बताया कि इस कुरीति को समाप्त करने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने का निर्णय लिया गया है। बैठक में यह तय किया गया कि मृत्यु भोज के नाम पर महंगे आयोजन नहीं किए जाएंगे। भोजन के रूप में केवल साधारण दाल-रोटी परोसी जाएगी, ताकि अनावश्यक खर्च रोका जा सके। युवाओं ने संकल्प लिया कि वे इस संदेश को समाज के हर कोने तक पहुंचाएंगे और दूसरों को भी इस आंदोलन से जोड़ेंगे।

    समाज में एक नई पहल
    यह निर्णय समाज सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मृत्यु भोज जैसी कुरीतियों को समाप्त करने के लिए युवाओं की यह पहल न केवल ढोली समाज, बल्कि अन्य समाजों के लिए भी प्रेरणा बन सकती है। यदि पूरे समाज में इस विषय पर जागरूकता बढ़े और लोग मृत्यु भोज जैसी परंपराओं से मुक्त हों तो आर्थिक और सामाजिक रूप से एक सकारात्मक बदलाव संभव हो सकता है।

     

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