Edited By Kailash Singh, Updated: 20 Nov, 2024 02:40 PM
राजस्थान में हाल ही में हुए थप्पड़ कांड और उसके बाद समरावता में भड़की हिंसा ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। इस घटना के बाद राजनीतिक चर्चा का केंद्र यह है कि कांग्रेस के बागी और निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा को इस घटनाक्रम का कितना सियासी फायदा...
जयपुर 20 नवम्बर। राजस्थान में हाल ही में हुए थप्पड़ कांड और उसके बाद समरावता में भड़की हिंसा ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। इस घटना के बाद राजनीतिक चर्चा का केंद्र यह है कि कांग्रेस के बागी और निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा को इस घटनाक्रम का कितना सियासी फायदा होगा। क्या यह विवाद उनके राजनीतिक करियर को नई ऊंचाईयों तक पहुंचा सकता है? देवली-उनियारा उपचुनाव में मीणा समाज से नरेश मीणा को जबरदस्त समर्थन देखने को मिलाा है, जिससे चुनाव परिणामों को लेकर कयासबाजी भी और तेज हो गई है। राजनीतिक जानकार इस घटना के संभावित प्रभाव का आकलन करते हुए नतीजों के समीकरण बिठाने में लगे हैं। वहीं, थप्पड़ कांड के बाद कई लोग नरेश मीणा की संभावित जीत को लेकर अपनी-अपनी राय और दावे पेश कर रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम ने चुनावी माहौल को और भी दिलचस्प बना दिया है। सियासी गलियारों में भी नरेश मीणा के थप्पड़ कांड की चर्चा जोरों पर है, और राजनीतिक विश्लेषक भी इस घटना के अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि क्या इस विवाद से नरेश मीणा की राजनीति को नई चमक मिलेगी? यह विषय हर किसी के मन में कौतूहल पैदा कर रहा है। नरेश मीणा ने खुद मीडिया के सामने खुलासा किया है कि वह किरोड़ी लाल मीणा, सचिन पायलट और हनुमान बेनीवाल जैसे नेताओं की तरह लोकप्रिय होना चाहते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ इस बयान को थप्पड़ कांड से जोड़कर देख रहे हैं, और इसे उनकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं।
नरेश मीणा के समर्थकों में इस बार मीना वोटर्स को लेकर खासा उत्साह देखने को मिला। समरावता में हुई घटना के बाद यह स्पष्ट हुआ कि उनके समर्थक उनके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि उपचुनाव के दिन बुधवार दोपहर हुई इस घटना से नरेश मीणा को वोटिंग में थोड़ा फायदा हो सकता है, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि थप्पड़ कांड उनकी जीत का रास्ता साफ करेगा। हालांकि, नरेश मीणा ने इस प्रकरण को सियासी लाभ में बदलने की कोशिश की, लेकिन जिला प्रशासन की सतर्कता और शांतिपूर्ण चुनाव प्रबंधन के चलते यह प्रभाव सीमित रह गया। जानकारों का कहना है कि नरेश मीणा को जितना राजनीतिक फायदा मिल सकता था, वह पूरी तरह नहीं मिल पाया।