टांटिया यूनिवर्सिटी में दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी : अनुसंधान में एआई की भूमिका पर शोधार्थियों ने साझा किए विचार

Edited By Kuldeep Kundara, Updated: 07 Oct, 2025 09:12 PM

two day international seminar at tantiya university

श्रीगंगानगर । टांटिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा संकाय एवं शारीरिक शिक्षा संकाय के संयुक्त तत्वावधान में ‘अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी मंगलवार को आरंभ हुई।

श्रीगंगानगर । टांटिया यूनिवर्सिटी के शिक्षा संकाय एवं शारीरिक शिक्षा संकाय के संयुक्त तत्वावधान में ‘अनुसंधान के विभिन्न क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका’ विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी मंगलवार को आरंभ हुई। इसमें नेपाल के साथ भारत के 11 राज्यों के शोधार्थी एवं प्रोफेसर भाग ले रहे हैं।

उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि पंजाबी यूनिवर्सिटी के बठिंडा स्थित रीजनल सेंटर से आए शिक्षा संकाय के विभागाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमिंद्रसिंह ने कहा कि मनुष्य की तुलना मशीन से कभी नहीं की जा सकती। मशीन उतना ही सोचती है, जितनी उसकी क्षमता होती है जबकि मनुष्य के पास असीमित शक्तियां हैं। इसके बावजूद एआई आज आने वाली पीढ़ियों के लिए रोजगार का बड़ा संकट उत्पन्न करने वाली है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेजेंसी यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के फायदे और नुकसान दोनों हैं। इसका सबसे बड़ा प्रभाव मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग पर ही सर्वाधिक पड़ने वाला है। अगर हमने सोच-विचार करके और सावधानीपूर्वक इसका उपयोग नहीं किया तो यह बहुत बड़ा खतरा बन सकती है। डॉ. रमिंद्रसिंह ने माना कि शोध में अगर एआई की सामग्री ज्यादा उपयोग कर ली तो आपको परेशानी हो सकती है।

यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. (डॉ.) एम.एम. सक्सेना ने कहा कि एआई को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। सूचना तो एक डाटा है, लेकिन इसे किस तरह से समझना और उपयोग करना है, यही इंटेलीजेंसी है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी में संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी की जरूरत हमें तब पड़ती है, जब वह हमारे पास प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं होती। सोचने की बात यह है कि वास्तविक रूप में क्या यह हमारे लिए उपयोगी साबित हो सकती है। डॉ. सक्सेना ने शोधार्थियों से कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी से मौलिक अभिव्यक्ति नहीं होती। जो विश्लेषण आपका सुपरवाइजर बताएगा, वह एआई से संभव नहीं है। इसलिए इसका उपयोग अत्यंत न्यून और सोच-समझकर ही होना चाहिए।

इससे पहले संगोष्ठी के समन्वयक और शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता डॉ. राजेंद्र गोदारा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय पर विस्तार से चर्चा की। ग्रामोत्थान विद्यापीठ शिक्षा महाविद्यालय, संगरिया के सह आचार्य डॉ. जेडी सिंह ने भी एआई के नफे-नुकसान पर व्यापक चर्चा की। समन्वयक एवं शारीरिक शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता डॉ. सुरजीतसिंह कस्वां ने सभी का आभार व्यक्त किया। इसके बाद दूसरे सत्र में नेपाल से बसंताराज ने वर्चुअल भागीदारी की और उन्होंने एआई के सीमित उपयोग की सलाह दी। कार्यक्रम में नर्सिंग संकाय के अधिष्ठाता डॉ. अशोक कुमार यादव, होम्योपैथी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. चरणजीतसिंह, विधि संकाय के अधिष्ठाता डॉ. सौरभ गर्ग, शिक्षा संकाय की उपप्राचार्य डॉ. रेखा सोनी व डॉ. रितुबाला सहित अनेक संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी मौजूद थे।

 

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