अंगूठे पर तलवार से चिरा लगा रक्त से किया राजतिलक, एकलिंग नाथ के 77वें दीवान बने विश्वराज सिंह मेवाड़

Edited By Chandra Prakash, Updated: 25 Nov, 2024 07:01 PM

vishwaraj singh mewar became the 77th diwan of ekling nath

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के वंशज उदयपुर के पूर्व महाराणा और पूर्व सांसद स्व. महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके पुत्र नाथद्वारा से विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ का ऐतिहासिक राजतिलक समारोह आयोजित हुआ....चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित फतह प्रकाश...

 

चित्तौड़गढ़/उदयपुर, 25 नवंबर 2024 । वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के वंशज उदयपुर के पूर्व महाराणा और पूर्व सांसद स्व. महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके पुत्र नाथद्वारा से विधायक विश्वराज सिंह मेवाड़ का ऐतिहासिक राजतिलक समारोह आयोजित हुआ....चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित फतह प्रकाश पैलेस के प्रांगण में परंपरा अनुसार विश्वराज सिंह का गद्दी पर बैठने के बाद तलवार से अंगूठे को चीरा लगाकर खून से राजतिलक किया गया। राजतिलक के साथ ही पूरा परिसर जयकारों से गूंज उठा। राज तिलक होते ही तोप चला कर सलामी दी गई। राजतिलक से पहले विश्वराज सिंह ने सुबह से चल रहे हवन में आहुति दी। बाद में कुम्भामहल में भगवान गणपति की पूजा की। 

बताया जा रहा है कि उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य व पूर्व सांसद महेंद्रसिंह मेवाड़ के निधन के बाद सोमवार सुबह 11.15 बजे उनके पुत्र विश्वराज सिंह मेवाड़ गद्दी पर विराजित हुए। सोमवार को इसका दस्तूर किया गया। राज परिवारों की परंपरा को निभाते हुए म्यान से तलवार निकाल कर अंगूठे पर चीरा लगाकर विश्वराज सिंह के माथे पर रक्त से तिलक लगाया गया। विश्वराजसिंह मेवाड़ के राजतिलक का मुहूर्त निकलने के साथ ही उनके लिए नई राजगद्दी बनाने का काम शुरू कर दिया गया था। फतह प्रकाश महल (चित्तौड़गढ़) में राजगद्दी की पूजा विधि अनुसार की गईं। राजगद्दी की पूजा के बाद सलूंबर रावत देवव्रत सिंह हाथ पकड़ कर विश्वराज सिंह मेवाड़ को राजगद्दी पर बिठाया...इसी के साथ ही राजतिलक की परंपरा निभाई । राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह मेवाड़ ने सबसे अभिवादन किया। प्रक्रिया पूरी होने के बाद महाराणा विश्वराज सिंह ने कुलदेवी बाण माता के दर्शन कर आशीर्वाद लिया।

बता दें कि यह कार्यक्रम अपने आप में ऐतिहासिक हुआ है, क्योंकि पूर्व महाराणा उदयसिंह के मेवाड़ की राजधानी उदयपुर को बनाने के बाद चित्तौड़गढ़ में किसी का राजतिलक नहीं हुआ था। रियासतकाल में चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की राजधानी रहा है। फतह प्रकाश महल 493 वर्षों बाद राजतिलक की रस्म का साक्षी बना है। इसमें देशभर के पूर्व राजपरिवारों के सदस्य, रिश्तेदार, मेवाड़ की पूर्व राजव्यवस्था के ठिकानेदार, राव-उमराव, गणमान्य नागरिक और समाज के विभिन्न वर्गों के प्रमुख शामिल हुए। गौरतलब है कि विश्वराज सिंह मेवाड़ की पत्नी महिमा कुमारी मेवाड़ राजसमंद लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।

और ये भी पढ़े

     

    PunjabKesari

     

    खून से तिलक की परंपरा के पीछे का इतिहास क्या है ?  

    मेवाड़ राज परिवार के शिवरती घराने के इतिहासविद डॉ. अजात शत्रु सिंह शिवरती बताते हैं, कि मेवाड़ के पूर्वज चूंडाजी से चुंडावत शाखा चली है। चूंडा मेवाड़ के शासक महाराणा लाखा के सबसे बड़े बेटे थे। इतिहास में उन्हें अपने वचन को निभाने के लिए राजगद्दी के अपने अधिकारों का त्याग करने के लिए जाना जाता है। महाराणा लाखा की मारवाड़ के राजा राव की राजकुमारी हंसाबाई से भी शादी हुई थी। हंसाबाई की शादी इस शर्त पर हुई थी कि इनके कोख से जो बेटा होगा, वह मेवाड़ की राजगद्दी पर बैठेगा। चूंडाजी ने अपने छोटे भाई के लिए मेवाड़ की राजगद्दी को छोड़ दिया था। उस दिन से उन्हें ये अधिकार मिला था कि जब भी मेवाड़ राजपरिवार में राजतिलक और गद्दी पर बिठाने की परम्परा होगी। उसे सलूंबर के चुंडावत ही निभाएंगे। राजतिलक की परंपरा के बाद उमराव, बत्तीसा, अन्य सरदार और सभी समाजों के प्रमुख लोग नजराना पेश करेंगे।

    क्या मेवाड़ की राजधानी का पुन: स्थानांतरण होगा ?

    इतिहास में रियासतकाल के दौरान चित्तौड़गढ़ लम्बे समय तक मेवाड़ की प्रमुख राजधानी रहा है। परिस्थितिवश महाराणा उदयसिंह ने राजधानी को उदयपुर में बनाया था। ब्रिटिश शासन से देश की स्वतंत्रता और रियासतों के विलीनीकरण के साथ ही सम्पूर्ण मेवाड़ भी भारत गणराज्य का हिस्सा बना। इसके बाद भी दिवंगत पूर्व महाराणा महेन्द्र सिंह मेवाड़ का दस्तूर उदयपुर के ही सिटी पैलेस के माणक चौक में हुआ था। अब यह पहला अवसर है जब चित्तौड़गढ़ में राजपरिवार उत्तराधिकार का दस्तूर कार्यक्रम हुआ। फतह प्रकाश महल में 493 साल बाद इस परम्परा को अंजाम दिया। ऐसे में यह चर्चा है कि क्या 25 नवम्बर 2024 के बाद इतिहास के पन्नों में मेवाड़ की राजधानी का पुन: चित्तौड़गढ़ में स्थानांतरण का जिक्र जुड़ेगा ? इस संदर्भ में इतिहासविद डॉ. अजात शत्रु सिंह शिवरती का कहना है कि मेवाड़ की सांस्कृतिक, पारम्परिक और भावनात्मक विरासत के दृष्टिकोण से इस बात को कहा सकता है। मेवाड़ के पूर्व राजपरिवारों और बरसों से मेवाड़ में बसे परिवारों की भावनाओं की बात करेंगे तो राजधानी के चित्तौड़गढ़ स्थानांतरण की बात पर सकारात्मक प्रतिक्रिया ही प्राप्त होगी। 

    Related Story

      Trending Topics

      Afghanistan

      134/10

      20.0

      India

      181/8

      20.0

      India win by 47 runs

      RR 6.70
      img title
      img title

      Be on the top of everything happening around the world.

      Try Premium Service.

      Subscribe Now!