27 अप्रैल को वैशाख अमावस्या, मोक्ष और मनोकामनाओं की पूर्ति का पावन पर्व है वैशाख अमावस्या

Edited By Chandra Prakash, Updated: 26 Apr, 2025 04:16 PM

vaishakh amavasya on 27 april

27 अप्रैल को वैशाख मास की अमावस्या है, इसे सतुवाई अमावस्या कहा जाता है। इस तिथि पर पूजा-पाठ के साथ ही दान-पुण्य और पितरों के लिए धूप-ध्यान करने की परंपरा है। ज्योतिष में सूर्य को रविवार का कारक ग्रह माना जाता है। इसलिए रविवार और अमावस्या के योग में...

जयपुर/जोधपुर, 26 अप्रैल 2025 । रविवार 27 अप्रैल को वैशाख मास की अमावस्या है, इसे सतुवाई अमावस्या कहा जाता है। इस तिथि पर पूजा-पाठ के साथ ही दान-पुण्य और पितरों के लिए धूप-ध्यान करने की परंपरा है। ज्योतिष में सूर्य को रविवार का कारक ग्रह माना जाता है। इसलिए रविवार और अमावस्या के योग में दिन की शुरुआत सूर्य पूजा के साथ करनी चाहिए। इस अमावस्या पर सत्तु का दान करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है और इस मास की अमावस्या तिथि का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व होता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर - जोधपुर  के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष वैशाख अमावस्या 27 अप्रैल को पड़ रही है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान-पुण्य और भगवान लक्ष्मी नारायण की विधिपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति को न केवल समस्त पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि मृत्युपरांत मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। अभी गर्मी का समय है, इसलिए वैशाख अमावस्या पर जरूरतमंद लोगों को जूते-चप्पल, जल, कपड़े, खाना और छाते का दान करना चाहिए। अमावस्या को भी पर्व की तरह माना जाता है। इस तिथि के स्वामी पितर देव माने जाते हैं।

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि वैशाख अमावस्या 27 अप्रैल 2025 को पड़ रही है, और इसे 'सतुवाई अमावस्या' के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन विशेष रूप से धार्मिक महत्व रखता है और कई पवित्र कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। अमावस्या के दिन गंगा नदी में स्नान करना, पितृ तर्पण, पितृ पूजा, और दान पुण्य करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। वैशाख अमावस्या को पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के साथ-साथ शनि देव और भगवान विष्णु की पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस दिन किए गए धार्मिक अनुष्ठान जीवन में समृद्धि, शांति और सकारात्मक ऊर्जा लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम माने जाते हैं। इस दिन का माहौल विशेष रूप से संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त होता है, और यह समृद्धि और आत्मविकास की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करता है। साथ ही, वैशाख अमावस्या पर पितृ तर्पण करने से पितरों के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है, और यह दिन परिवार के लिए एकता और सौहार्द की भावना को भी बढ़ावा देता है। इस दिन विशेष रूप से दान पुण्य का महत्व है, जिससे पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

वैशाख अमावस्या 
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग अनुसार वैशाख अमावस्या 27 अप्रैल 2025 की सुबह 04:49 से 28 अप्रैल 2025 की सुबह 1 बजे तक रहेगी। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान-दान का विशेष महत्व माना जाता है।

पितरों के लिए धूप-ध्यान
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का सबसे अच्छा समय दोपहर का होता है। सुबह-शाम देवी-देवताओं की पूजा के लिए सबसे अच्छा समय रहता है और दोपहर में करीब 12 बजे पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का समय बताया गया है। इस समय को कुतप काल कहते हैं। अमावस्या की दोपहर में गोबर के कंडे जलाएं और जब कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाए, तब अंगारों पर गुड़ और घी से धूप अर्पित करें।

दान-पुण्य 
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस अमावस्या पर किसी पवित्र नदी में स्नान करें और स्नान के बाद नदी किनारे दान-पुण्य जरूर करें। इस अमावस्या पर किसी सार्वजनिक स्थान पर प्याऊ लगवाएं या किसी प्याऊ में मटके का और जल का दान भी कर सकते हैं। जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं। मौसमी फल जैसे आम, तरबूज, खरबूजा का दान करें। जूते-चप्पल, सूती वस्त्र, छाता भी दान कर सकते हैं। किसी गोशाला में गायों की देखभाल के लिए धन का दान करें और गायों को हरी घास खिलाएं। अमावस्या पर सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। इसके लिए तांबे के लोटे का इस्तेमाल करें। अर्घ्य चढ़ाते समय ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करना चाहिए। सूर्य को पीले फूल चढ़ाएं। सूर्य देव के लिए गुड़ का दान करें। किसी मंदिर में पूजा-पाठ में काम आने वाले तांबे के बर्तन दान कर सकते हैं। घर की छत पर या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर पक्षियों के लिए दाना-पानी रखें। वैशाख मास की अमावस्या पर ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करते हुए शिवलिंग पर ठंडा जल चढ़ाएं। बिल्व पत्र, धतूरा, आंकड़े का फूल, जनेऊ, चावल आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। मिठाई का भोग लगाएं। धूप-दीप जलाएं, आरती करें। पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें। किसी मंदिर में शिवलिंग के लिए मिट्टी के कलश का दान करें, जिसकी मदद से शिवलिंग पर जल की धारा गिराई जाती है। हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं और सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें, जिससे आत्मबल और मानसिक शांति मिले। किसी मंदिर में धूप बत्ती, घी, तेल, हार-फूल, भोग के लिए मिठाई, कुमकुम, गुलाल, और भगवान के लिए वस्त्र जैसी पूजा सामग्री का दान करें।

चावल से तृप्त होते हैं पितर देव
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि चावल से बने सत्तू का दान इस दिन पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध में चावल से बने पिंड का दान किया जाता है और चावल के ही आटे से बने सत्तू का दान किया जाता है। इससे पितृ खुश होते हैं। चावल को हविष्य अन्न कहा गया है यानी देवताओं का भोजन। चावल का उपयोग हर यज्ञ में किया जाता है। चावल पितरों को भी प्रिय है। चावल के बिना श्राद्ध और तर्पण नहीं किया जा सकता। इसलिए इस दिन चावल का विशेष इस्तेमाल करने से पितर संतुष्ट होते हैं।

वैशाख अमावस्या की महिमा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यता है कि इस मास की सभी तिथियां पुण्यदायिनी मानी गई हैं। एक-एक तिथि में किया हुआ पुण्य कोटि-कोटि गुना अधिक होता है। उनमें भी जो वैशाख की अमावस्या तिथि है,वह मनुष्यों को मोक्ष देने वाली है। स्कंद पुराण के अनुसार परम पवित्र वैशाख मास में जब सूर्य मेष राशि में स्थित हों,तब पापनाशिनी अमावस्या कोटि गया के समान फल देने वाली मानी गई है। जो प्राणी इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों के निमित्त श्रद्धा पूर्वक जल से भरा हुआ कलश, तिल, पिंड और वस्त्र दान करता है, उसे अक्षय फल की प्राप्ति होती है एवं उसके पितरों को मोक्ष मिलता है। यदि कोई व्यक्ति पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु इस दिन व्रत रखता है, ब्राह्मणों को भोजन कराता है और श्रद्धा से पिंडदान करता है, तो न केवल उसके पितर तृप्त होते हैं, बल्कि उसे स्वयं भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह तिथि देवताओं की भी अत्यंत प्रिय मानी गई है और इसी कारण इस दिन किए गए कर्म, साधना और दान-दक्षिणा विशेष फलदायी होते हैं। इस दिन प्याऊ लगाना,छायादार वृक्ष लगाना,पशु-पक्षियों के खान-पान की व्यवस्था करना,राहगीरों को जल पिलाना जैसे सत्कर्म मनुष्य के जीवन को समृद्धि के पथ पर ले जाते हैं।

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