Edited By Chandra Prakash, Updated: 07 Nov, 2024 01:58 PM
जिले के नोखा में दुर्लभ बीमारी के साथ जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ है। इनमें एक लड़की और लड़का बताया जा रहा है। इनकी स्किन प्लास्टिक जैसी है। नाखून की तरह हार्ड होकर चमड़ी फटी हुई है, इनका जन्म नोखा के एक प्राइवेट अस्पताल में हुआ। गंभीर हालत होने के...
बीकानेर, 7 नवंबर 2024 । जिले के नोखा में दुर्लभ बीमारी के साथ जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ है। इनमें एक लड़की और लड़का बताया जा रहा है। इनकी स्किन प्लास्टिक जैसी है। नाखून की तरह हार्ड होकर चमड़ी फटी हुई है, इनका जन्म नोखा के एक प्राइवेट अस्पताल में हुआ। गंभीर हालत होने के कारण उन्हें बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में रेफर किया है। प्राइवेट अस्पताल के डॉ. विशेष चौधरी ने बताया कि ये जुड़वा बच्चे हार्लेक्विन-टाइप इचिथोसिस नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है, जिसमें नवजात त्वचा और अविकसित आंखों के बिना पैदा होते हैं। इस बीमारी से पीड़ित बच्चे सिर्फ एक सप्ताह तक ही जीवित रह पाते हैं और उनकी मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है, उनकी समय पर जांच जरूरी है।
परिवार में इस बात की खुशी थी कि जुड़वां बच्चे हुए हैं, लेकिन ज्योंहि ये मां की कोख से बाहर आये इन्हें देखते ही चीख निकल गई। एक की तो आंख ही नहीं थी। दोनों बच्चों के शरीर इतने सख्त, खुरदरे कि हाथ लगाते त्वचा फटती-सी महसूस होती। यह बाकायदा फटने भी लगी और शरीर के भीतरी अंग बाहर दिखने लगे। हैरान डॉक्टर्स को यह समझते देर नहीं लगी कि दुर्लभ जेनेटिक बीमारी हालेक्विन से ग्रसित बच्चों का जन्म हुआ है। वह भी जुड़वां।
बीकानेर जिले के नोखा में दुर्लभ बीमारी से ग्रसित जुड़वां बच्चों का जन्म होते ही डॉक्टर ने इन्हे एसपी मेडिकल कॉलेज से जुड़े पीबीएम पीडिएट्रिक हॉस्पिटल रैफर कर दिया। यहां पहुंचे बच्चों का प्रोफेसर डॉ.गजानंद तंवर की देखरेख में इलाज हो रहा है, लेकिन यह सिर्फ लाक्षणिक या सिम्टोमैटिक ट्रीटमेंट है। डॉ.गजानंद कहते हैं, चमत्कार हो जाए तब ही ऐसे बच्चों की जान बचती है।
हार्लेक्विन बेबी का जन्म होना एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी है, जो मूल रूप से स्किन से जुड़ी है। इसमें स्किन शरीर के अंदरूनी हिस्सों को बिलकुल भी सुरक्षित नहीं कर पाती। औसत के लिहाज से बात करें तो यह बीमारी 50 लाख जीवित बच्चों में से एक में होती है। अब तक ऐसे बच्चे जिंदा नहीं रहे हैं। हालांकि हम त्वचा को नमी देने के लिए विटामिन-ए की थैरेपी सहित बीमारी के बाकी लाक्षणिक उपचार कर रहे हैं।
Twin Harlequin Baby का दुनिया में पहला मामला?
हालांकि Harlequin Baby खुद में दुर्लभ बीमारी है और भारत में इससे पहले नागपुर और उड़ीसा में ऐसे मामले हाल के यानि पिछले 15 से 20 सालों में रिपोर्ट हुए है। इसके साथ ही जुड़वा Harlequin Baby का संभवतया दुनिया में पहला मामला है।
क्या है Harlequin बीमारी ?
मेडिकल जर्नल्स सहित अन्य स्रोतों पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक हार्लेक्विन इचथ्योसिस एक ऑटोसोमल रिसेसिव त्वचा विकार है जो ABCA12 जीन (गुणसूत्र 2 पर स्थित) में उत्परिवर्तन के कारण होता है। इस विकार के साथ पैदा हुए शिशुओं की त्वचा कठोर हो जाती है और दरारों से अलग हो जाती है, जो गतिशीलता को गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर सकती है। यह बीमारी शिशुओं के लिए 100% घातक यानी जानलेवा होती है। माना जाता है कि ऐसा पहला बच्चा अमेरिका के साउथ कैरोलीना में अप्रैल 1750 में जन्मा था। हाल ही में जर्मनी और पाकिस्तान में भी ऐसे बच्चे जन्मे थे। भारत में संभवतया यह तीसरा मामला है। जुड़वा बच्चों के लिहाज से देखें तो ऐसा पहली बार हुआ है।
पहले भी ऐसा ही मृत बच्चा जन्मा था
इन बच्चों को जन्म देने वाली महिला के परिजनों ने डॉक्टर्स को बताया कि इससे पहले भी नोखा के इस महिला के एक प्रसव हुआ था। उसमें मृत प्रीमेच्योर बच्चे का जन्म हुआ था। वह भी इसी बीमारी से ग्रसित लग रहा था।
डॉ.गजानंदसिंह तंवर, प्रोफेसर पीडिएट्रिक्स, एसपी मेडिकल कॉलेज, बीकानेर ने बताया कि “हालांकि दोनों बच्चों की स्किन को नमी देने के लिए विटामिन-ए की थैरेपी सहित पाइप से दूध फीडिंग दे रहे हैं, लेकिन यह हमारे लिये यह बहुत दुखद और चुनौतीपूर्ण काम है। हार्लेक्विन की एक प्राथमिक स्टेज भी होती जिसमें शरीर के किसी एक छोटे हिस्से की त्वचा पर ही इस बीमारी का असर होता है। अगर ऐसा होता तो जान बचने की संभावना बहुत ज्यादा रहती। मेडिकल हिस्ट्री और लिटरेचर और रिसर्च बताती है, कि इस बीमारी में 100% मोर्टेलिटी रेट है। इसके बाजवूद आजकल कई लाक्षणिक उपाय सुझाये गये हैं। उसी अनुरूप हम फीडिंग करवाने के साथ ही अन्य उपाय कर रहे हैं।”