इन दिनों अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे सहकारी भंडार के दवा केंद्र, भंडार के मुखिया सरकार से आरपार की लड़ाई के मूड में !

Edited By Chandra Prakash, Updated: 04 Sep, 2024 04:20 PM

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सरकारी अस्पतालों व अन्य स्थानों पर संचालित सहकारी भंडार के दवा केंद्र इन दिनों अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी आरजीएचएस में निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने की छूट के बाद सहकारी दवा भंडार मुफलिसी के दौर से...

बीकानेर, 3 सितंबर 2024 : सरकारी अस्पतालों व अन्य स्थानों पर संचालित सहकारी भंडार के दवा केंद्र इन दिनों अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहे हैं। राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम यानी आरजीएचएस में निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने की छूट के बाद सहकारी दवा भंडार मुफलिसी के दौर से गुजर रहा है, जिसके चलते भंडार के मुखिया सरकार से आरपार की लड़ाई के मूड में है। आरजीएचएस में वित्तिय खामियां, बकाया भुगतान सहित अनेक मुद्दों को लेकर बीकानेर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार में एक बैठक का आयोजन किया गया । जिसमें प्रदेश के पांच से ज्यादा जिलों के अध्यक्षों ने अपनी पीड़ा को उजागर करते हुए न केवल सरकारी खामियों को उजागर किया, बल्कि नवम्बर 2021 से अब तक करीब 254 करोड़ रुपए की बकाया होने की बात भी कही, जिसके चलते भंडार की माली हालत खराब होने का जिक्र किया गया। 

बीकानेर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार के अध्यक्ष नगेन्द्रपाल सिंह शेखावत ने बताया कि इन दवा केंद्रों की बिक्री भी 50 फीसदी से अधिक गिर गई है तो वहीं सरकार के स्तर पर भी 253 करोड़ 99 लाख का भुगतान बकाया चल रहा है। हालात यह है कि सहकारी दवा केंद्रों पर कार्यरत फार्मासिस्ट व हेल्पर्स तक के वेतन निकाल पाने के लाले पड़ रहे हैं। यह सब इसलिए हुआ क्योकि सरकार ने आरजीएचएस योजना में निजी मेडिकल स्टोर से दवा लेने की छूट दे दी । ऐसे में जो पेंशनर या सरकारी कर्मचारी सहकार दवा केंद्रों से दवाइयां लेने आते थे, वे निजी दवा केंद्रों की ओर रुख कर रहे हैं।

सहकारी दवा केंद्रों से एनओसी लेने के बाद बिगड़ी स्थिति
राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम में किए गए बदलाव में जहां निजी दवा केंद्रों को अधिकृत किया गया । वहीं सहकारी दवा केंद्रों पर जो दवाइयां उपलब्ध नहीं होती थीं, उनके लिए अन्य दुकानों से खरीदने की एनओसी देने की बाध्यता भी खत्म कर दी गई । पूर्व में पेंशनर या अन्य सरकारी कर्मचारी सहकारी दवा केंद्रों पर डॉक्टर की लिखी दवाइयों की पर्ची लेकर जाता था और दवा केंद्रों पर इनमें से जो दवा उपलब्ध होती थी, वो मरीज को मिल जाती थी। बची हुई दवाई निजी मेडिकल स्टोर से खरीदने के लिए सहकार दवा केंद्र संचालक संबंधित कर्मचारी को एनओसी जारी कर देता था। जिसके आधार पर पेंशनर या कर्मचारी को उसका भुगतान मिल जाता था, लेकिन अब ये बाध्यता खत्म हो गई है। ऐसे में सरकारी कर्मचारी या पेंशनर्स सीधे मेडिकल स्टोर से ही समस्त दवाइयां ले लेते हैं ।

अब तक इतना चल रहा है बकाया
समन्वय समिति के संयोजक शिवदयाल गुप्ता ने बताया कि प्रदेश के 33 जिलों में स्थापित भंडार में कॉन्फेड के माध्यम से 16 अगस्त 2023 तक दवाओं के पुनर्भरण की व्यवस्था की गई थी, जिसके चलते सीधे भंडारों को दवा वितरण का भुगतान करने के दिशा निर्देश जारी हुए थे। इसके बाद भी नवंबर 2021 से 15 अगस्त 2023 तक 105.16 करोड़ बकाया है, इसमें से 10 करोड़ रुपये कॉन्फेड को देना बकाया है । वहीं 16 अगस्त 2023 से आज दिनांक तक 148.83 करोड़ राशि आरजीएचएस में बकाया है, इसके लिए भंडार प्रमुख पिछले डेढ़ साल से पत्र व्यवहार, ज्ञापन देने का काम भी कर रहे है, फिर भी भुगतान नहीं हो रहा है।

निजी मेडिकल स्टोर को समय पर भुगतान, उपभोक्ता भंडार को नहीं
भंडार प्रमुख का आरोप है कि आरजीएचएस योजना के दायरे में आने वाले निजी मेडिकल स्टोर को समय पर भुगतान हो रहा है, जबकि सहकारी उपभोक्ता भंडारों का महीनों से भुगतान बकाया है। भंडार और सरकार के बीच भुगतान की राशि कानफेड के जरिए दी जाती है। पिछले कई महीनों से करोड़ों रुपए का भुगतान अटका हुआ हैं ।

बनाई समन्वय समिति,सरकार को किया आगाह
भुगतान सहित अनेक मुद्दों के निस्तारण के लिए भंडार प्रमुखों ने समन्वय समिति का गठन किया है । जिसमें किसान सहकारी समिति गंगानगर के अध्यक्ष शिवदयाल गुप्ता को संयोजक बनाया है, वहीं बीकानेर सहकारी उपभोक्ता होलसेल भंडार के अध्यक्ष नगेन्द्रपाल सिंह को सह संयोजक नियुक्त किया है। जिन्होंने स्पष्ट किया है, कि आगामी एक माह तक भुगतान का निस्तारण नहीं हुआ तो मजबूरन भंडार प्रमुख आन्दोलन की राह पर चलेंगे।

ये बताई खामियां
होलसेल भंडार सिरोही के अध्यक्ष जितेन्द्र एरन ने बताया कि आरजीएचएस योजनान्तर्गत कैंसर, किडनी व अन्य गंभीर बीमारियों की दवाइयों की खरीद में प्राइवेट मेडिकल स्टोर व सहकारी भंडार की दुकान की दर में भारी मात्रा में अंतर है, जिससे राज्य सरकार को करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान हो रहा है। उन्होंने बताया कि प्राइवेट मेडिकल स्टोर वाले एमआरपी पर बारह प्रतिशत कम राशि पर दवा देते है, जबकि सहकारी भंडार में खरीद मूल्य पर केवल दस प्रतिशत प्रभार ही लिया जाता है।

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