"बलात्कार के खिलाफ सख्त कानून और नैतिक जागरूकता की जरूरत"...त्वरित टिप्पणी...बालकृष्ण थरेजा

Edited By Chandra Prakash, Updated: 21 Aug, 2024 04:34 PM

there is a need for strict laws and moral awareness against rape

देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाएं अत्यंत चिंता का विषय बन चुकी हैं। हाल ही में कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। मामले की जांच सीबीआई कर रही है, लेकिन इससे पहले ही देशभर में जनाक्रोश उभर चुका...

हनुमानगढ़, 20 अगस्त 2024।(बालकृष्ण थरेजा): देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाएं अत्यंत चिंता का विषय बन चुकी हैं। हाल ही में कोलकाता में एक महिला डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। मामले की जांच सीबीआई कर रही है, लेकिन इससे पहले ही देशभर में जनाक्रोश उभर चुका है। 

इसके अलावा महाराष्ट्र के बदलापुर में एक स्कूल के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा नाबालिग बच्चियों के साथ बलात्कार का मामला भी भारी विरोध प्रदर्शनों का कारण बना हुआ है। वहीं, राजस्थान के अजमेर में वर्षों पूर्व हुए बहुचर्चित ब्लैकमेल और बलात्कार मामले में अदालत द्वारा दोषियों को सजा सुनाई गई है, जिससे यह मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। यह घटनाएं न केवल कानून व्यवस्था के लिए चुनौती हैं, बल्कि यह समाज के नैतिक पतन की ओर भी इशारा करती हैं। अदालतों को ऐसे मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान करना चाहिए ताकि दोषियों को कड़ा संदेश दिया जा सके। साथ ही, माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को चरित्रवान बनने के संस्कार दें और उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान कराएं।

आज के समय में मोबाइल और इंटरनेट पर उपलब्ध अनियंत्रित कंटेंट भी नैतिक पतन का एक बड़ा कारण बन रहा है। इसे नियंत्रित करना और बच्चों को इसके सही उपयोग के प्रति जागरूक करना आवश्यक है। यदि समाज में नैतिक मूल्यों और संस्कारों को सुदृढ़ किया जाए, तो शायद ऐसी घटनाओं में कमी आ सके। समाज को अब ज्यादा जागरूक होना होगा, ताकि ऐसे अपराधों के खिलाफ एक ठोस और दीर्घकालिक समाधान निकाला जा सके। न्यायिक और सामाजिक, दोनों स्तरों पर सुधार की आवश्यकता है। बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की रोकथाम के लिए केवल कानून और अदालतों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए हमें सामाजिक जागरूकता और नैतिक उत्थान की दिशा में भी ठोस प्रयास करने होंगे।

शिक्षा प्रणाली में नैतिक शिक्षा का समावेश, स्कूलों और कॉलेजों में लैंगिक संवेदनशीलता पर विशेष पाठ्यक्रम शुरू करना, और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना का विकास करना समय की मांग है। इसके साथ ही, अपराधियों के लिए न केवल सख्त दंड का प्रावधान होना चाहिए, बल्कि न्याय प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाया जाना चाहिए ताकि पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय मिल सके। इसके अलावा, मीडिया और मनोरंजन उद्योग को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी कि वे ऐसा कोई कंटेंट न परोसें जो हिंसा, विशेष रूप से यौन हिंसा, को बढ़ावा देता हो। समाज के हर वर्ग को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी बेटियां और महिलाएं सुरक्षित और सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें। बहरहाल तमाम राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि वे इस विषय पर एक दूसरे पर असफल कानून व्यवस्था का दोषारोपण करने की बजाय इस स्वेदनशील मुद्दे का कोई ठोस हल निकालने पर विचार करें।

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