एक परिवार की अनकही दर्द भरी कहानी: उम्मीद और पीड़ा के बीच की जंग

Edited By Chandra Prakash, Updated: 12 Sep, 2024 02:33 PM

the untold painful story of a family

जिंदगी के इस अजीब सफर में कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं, जिनसे गुजरने का दर्द और उनसे जुड़ी यादें कभी खत्म नहीं होतीं। यही वो रास्ते हैं, यही वो पगडंडी है, जिनसे गुजरते हुए एक खुशहाल परिवार के दो चिराग -आशीष और राहुल - चरण मंदिर के दर्शन के लिए और...

यपुर, 12 सितंबर 2024 (विशाल सूर्यकांत) । जिंदगी के इस अजीब सफर में कुछ रास्ते ऐसे भी होते हैं, जिनसे गुजरने का दर्द और उनसे जुड़ी यादें कभी खत्म नहीं होतीं। यही वो रास्ते हैं, यही वो पगडंडी है, जिनसे गुजरते हुए एक खुशहाल परिवार के दो चिराग -आशीष और राहुल - चरण मंदिर के दर्शन के लिए और सैर-सपाटे के लिए नाहरगढ़ की हरी-भरी वादियों की ओर निकले थे। पिता की वात्सल्य भरी आंखों ने जब अपने दो बेटों को साथ जाते देखा, तो उन्हें क्या पता था कि यह उनकी जिंदगी का आखिरी दीदार होगा।

बस, उसके बाद से जैसे सब कुछ बदल गया। बारह दिनों से यह परिवार एक अनसुलझी गुत्थी, गुमशुदगी और एक बेटे की मौत से बुरी तरह टूट चुका है । एक तरफ एक बेटे के गुजर जाने का असहनीय दुख है, तो दूसरी ओर बड़े बेटे राहुल के मिल जाने की धुंधली सी उम्मीद । इस परिवार के लिए हर बीता पल एक असहनीय इंतजार और दर्द भरी घड़ी बन गया है। हर सुबह उन्हें न जाने किस नई पीड़ा का सामना करना पड़ता है।

आशा और निराशा के बीच झूलते इस परिवार की व्यथा को कौन समझ सकता है ? किस्मत ने उनके हिस्से में ऐसा दर्द क्यों लिख दिया ? वे न चैन से सो सकते हैं और न खुलकर रो सकते हैं। उनकी मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं, ऊपर से पुलिस और मीडिया के तीखे सवाल उनकी बेचैनी को और भी बढ़ा देते हैं। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि ऐसा दर्द किसी को न दे।

दिन-ब-दिन बीतते समय के साथ, अधेड़ उम्र के मां-बाप को हर रोज एक नई कहानी सुनाई देती है और उन्हें सफाई देनी पड़ती है। अपने बेटे के जाने का दर्द उनकी जिंदगी के साथ अब ताउम्र जुड़ गया है। नाहरगढ़ की खूबसूरत वादियां, जो कभी सुकून का जरिया थीं, अब आशीष की याद में दिल का दर्द छलका देती हैं। कभी मन करता है कि इन वादियों को देखना ही छोड़ दें, तो कभी लगता है कि एक बार तो देख लें, शायद अपना राहुल उन रास्तों से घर आता हुआ दिख जाए । काश, वह बता सके कि उस दिन क्या हुआ था; आशीष कैसे बिछड़ गया, उसकी मौत कैसे हुई और कैसे राहुल इतने दिनों तक गुम रहा।

यह एक हादसा ही था, लेकिन इससे पैदा हुआ जीवन का दर्द उम्र भर का है। हर कोई अपने-अपने हिस्से की किस्मत लेकर जीता है, लेकिन आशीष और राहुल के परिवार के लिए न जाने कितनी ताउम्र की बेचैनी भरी बदकिस्मती लिख दी गई। यदि पुलिस वक्त रहते जाग जाती तो शायद आशीष आज जीवित होता और राहुल गुमशुदा नहीं होता। लेकिन पुलिस भी शहरवासियों की रोजमर्रा की जिंदगी की उलझनों में इस कदर फंसी रहती है कि किसी की कहानी, किसी थाने की अनसुलझी फाइल बनकर धूल खाने लगती है। और वक्त बीतने के साथ, ऐसी फाइलें कब किसी को याद तक नहीं रहतीं।

सवाल यह उठता है कि क्या आशीष की मौत और राहुल की गुमशुदगी का यह मामला जयपुर के उन अनगिनत अनसुलझे मामलों की तरह अबूझ पहेली बनकर रह जाएगा, जिनकी असल कहानी कभी सामने नहीं आई ? या फिर हमें उम्मीद रखनी चाहिए कि हर कहानी का एक न एक दिन कोई मोड़ आता है ? हो सकता है, आशीष की मौत और राहुल की गुमशुदगी की यह दर्दनाक कहानी भी एक दिन किसी नए मोड़ से गुजरे और अपनी सच्चाई खुद बयान करे।

इस परिवार की पीड़ा को समझना आसान नहीं है। जिस तरह से आशीष की मौत और राहुल की गुमशुदगी ने उनके जीवन को एक स्थायी शोक और बेचैनी में बदल दिया है, वह बताता है कि इंसान की जिंदगी कितनी नाजुक होती है। उम्मीद और निराशा के बीच की यह जंग कभी खत्म नहीं होती। हर दिन उनके दिल में यह ख्याल आता है कि शायद कल कोई अच्छी खबर आएगी, शायद उनका राहुल मिल जाएगा।

उम्मीद की यह छोटी सी किरण ही उन्हें जीने का साहस देती है, और इसी साहस के साथ वे हर नए दिन का सामना करते हैं। वे जानते हैं कि जिंदगी में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, एक दिन सच्चाई सामने आएगी। शायद यही सच्चाई उनके दर्द को कुछ कम कर सकेगी और उन्हें उस शांति की ओर ले जाएगी, जिसकी वे बरसों से तलाश कर रहे हैं।

अभी के लिए, यह परिवार अपनी उम्मीदों और सपनों के सहारे एक दिन जी रहा है, जो यह विश्वास दिलाते हैं कि हर दर्द का एक अंत होता है। यही उम्मीद है जो उन्हें आगे बढ़ने की ताकत देती है। और शायद, एक दिन, नाहरगढ़ की वादियों में वे अपने खोए हुए बेटे राहुल की कहानी सुन सकेंगे—एक ऐसी कहानी जो उनके टूटे हुए दिलों को जोड़ सकेगी।
 

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