घर की चारदीवारी में छुपे होते हैं बच्चों के जीवन के सबसे बड़े सबक

Edited By Raunak Pareek, Updated: 26 Jun, 2025 07:06 PM

the first school of life when home becomes a gurukul

बच्चे का सबसे पहला स्कूल उसका घर होता है, और पहले शिक्षक होते हैं मां-बाप। इस लेख में पढ़िए कि कैसे पारिवारिक माहौल बच्चों के चरित्र, सोच और सामाजिक जीवन को गहराई से प्रभावित करता है। जानिए, माता-पिता की भूमिका क्यों सबसे अहम होती है बच्चों की सही...

‘‘मां-बाप की आवाज ईश्वर की आवाज होती है, क्योंकि अपने बच्चों के लिए वे स्वर्ग के फरिश्ते होते हैं।’’ पारिवारिक जीवन बच्चे के जीवन की ट्रेनिंग का पहला और सबसे प्रभावशाली स्थान होता है। जब बच्चे छोटे होते हैं, तब उन्हें सही दिशा देना, संतुलित जीवनशैली सिखाना और दूसरों से संवाद की कला सिखाना माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी बनती है। यही प्रारंभिक शिक्षाएं बच्चे घर पर ही ग्रहण करते हैं।

कर्नल गणपत सिंह,मेगन स्कूल, निदेशक बताते है कि बच्चा जब जन्म लेता है, उसी पल से मां-बाप उसके भविष्य की योजनाएं बनाने लगते हैं और उम्मीदें पालने लगते हैं। वे उसके उज्ज्वल भविष्य को लेकर सोचते हैं और उस दिशा में मेहनत करते हैं। पहले के जमाने में दादा-दादी पोते-पोतियों को महान संतों और योद्धाओं की कहानियां सुनाते थे, जिससे उनमें उन गुणों का विकास हो सके।

बच्चे जैसा अपने बड़ों को करते देखते हैं, वैसा ही करने लगते हैं। लेकिन जब मां-बाप यह सोचते हैं कि बच्चा उनका है और जैसा वे चाहें वैसा करें, तो यह सोच उन्हें स्वार्थी बना देती है। इससे वे बच्चों पर दबाव और अपने विचार थोपने लगते हैं, जिससे बच्चों का मानसिक और सामाजिक विकास रुक जाता है। निस्वार्थ सोच ही बच्चों के लिए एक सशक्त और सकारात्मक माहौल बना सकती है। कुछ लोग कम बोलते हैं, मेलजोल से बचते हैं और किसी पर भरोसा नहीं करते — ये बातें अक्सर उन्हें बचपन में नहीं सिखाई जातीं। एक महान शिक्षक ने ठीक ही कहा था, “बच्चे के जीवन के पहले सात साल मुझे दे दो, बाकी जीवन तुम रख लो।” इसका मतलब यही है कि बचपन ही वह समय होता है जब सही बीज बोए जाते हैं।

आज के समय में माता-पिता की जिम्मेदारियां मानवीय नहीं रह गईं। नतीजतन, बच्चे स्वार्थी और गैर-जिम्मेदार बन जाते हैं। मां बच्चे की पहली शिक्षक होती है और अगर मां ही खराब शिक्षक हो, तो बच्चे को इसका खामियाजा जीवन भर भुगतना पड़ता है। बच्चे परिवार में जैसा वातावरण देखते हैं, वैसा ही सीखते हैं। अगर माता-पिता झूठ बोलते हैं, नशा करते हैं या सुस्त रहते हैं, तो बच्चा भी वही आदतें अपनाता है। वहीं, अगर माता-पिता एक अच्छा उदाहरण पेश करते हैं, तो बच्चे निडर और खुशहाल जीवन जीते हैं।

बच्चों को केवल भौतिक देखभाल नहीं, बल्कि सही व्यवहार और सकारात्मक सोच की भी जरूरत होती है। अगर मां-बाप स्वयं अनुशासित, ईमानदार और संवेदनशील होंगे, तो वही बच्चे में स्थानांतरित होगा। बच्चा देखकर सीखता है — जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। पुराने जमाने में मां-बाप बच्चों को गुरुकुल भेजते थे, जहां उन्हें कठिन जीवन जीने की कला और सशक्त संस्कार सिखाए जाते थे। वहीं से लौटने पर वे संस्कारों से सजे हुए होते थे। जीजाबाई, जिन्होंने शिवाजी को एक महान योद्धा बनाया, इसका श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

मां का प्यार और पिता का संरक्षण बच्चे को जीने की कला सिखाते हैं। परिवार ईमानदारी, सच्चाई और आदर जैसे मूल्यों की पहली सामाजिक संस्था है। घर की चारदीवारी में सीखी गई ये बातें बच्चे को जीवन में आगे बढ़ने की ताकत देती हैं। आज जब माता-पिता दोनों नौकरीपेशा हैं, बच्चे आया के भरोसे पलते हैं। लेकिन हर आया 'पन्नाधाय' नहीं हो सकती। पन्नाधाय ने मेवाड़ के भविष्य को बचाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया। ऐसी देखभाल आज दुर्लभ हो गई है।

जॉर्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन और टीपू सुल्तान जैसे महान व्यक्तित्वों के संस्कार भी उनके पारिवारिक माहौल की ही देन थे। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि परिवार से मिले संस्कार एक साधारण बच्चे को भी असाधारण बना सकते हैं। इसलिए अगर आप अपने बच्चे को महान बनाना चाहते हैं, तो सबसे पहले उसके जीवन का माहौल, संस्कार और सोच बेहतर बनाइए — क्योंकि हर बच्चा एक बीज है, और उसका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस मिट्टी में बोया गया है।

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