Edited By Rahul yadav, Updated: 27 May, 2025 01:55 PM

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के 29 मई को प्रस्तावित दौरे से पहले भोपालसागर में एक नया विवाद उभर आया है। यह विवाद राणा पूंजा की प्रतिमा में दर्शाई गई वेशभूषा को लेकर है, जिसे लेकर राजपूत और भील दोनों समुदायों में नाराजगी...
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के 29 मई को प्रस्तावित दौरे से पहले भोपालसागर में एक नया विवाद उभर आया है। यह विवाद राणा पूंजा की प्रतिमा में दर्शाई गई वेशभूषा को लेकर है, जिसे लेकर राजपूत और भील दोनों समुदायों में नाराजगी देखी जा रही है। इस दिन मुख्यमंत्री महाराणा प्रताप, राणा पूंजा और अन्य महापुरुषों की प्रतिमाओं का अनावरण करेंगे।
राजपूत समाज ने उठाई वेशभूषा पर आपत्ति
राजपूत समाज का कहना है कि राणा पूंजा सोलंकी राजपूत थे और उनकी प्रतिमा में जो वेशभूषा दर्शाई गई है, वह उनके राजपूत पहचान के अनुरूप नहीं है। इसको लेकर हाल ही में समाज के प्रतिनिधियों ने चित्तौड़गढ़ जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करते हुए ज्ञापन सौंपा। उनका आरोप है कि ऐतिहासिक तथ्यों को नज़रअंदाज़ कर राणा पूंजा की छवि को गलत ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है।
भील समाज का पलटवार: हमारे इतिहास से छेड़छाड़
दूसरी ओर, भील समाज ने इस पूरे विवाद को अपने स्वाभिमान पर चोट मानते हुए तीव्र विरोध दर्ज कराया है। भील सेना चित्तौड़गढ़ ने भी जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यपाल के नाम ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि राणा पूंजा भील समुदाय के वीर योद्धा थे जिन्होंने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया था।
भील समाज का आरोप है कि राणा पूंजा को राजपूत के रूप में प्रस्तुत करना इतिहास के साथ जानबूझकर की गई छेड़छाड़ है, और यह उनकी सांस्कृतिक विरासत और आत्मसम्मान के खिलाफ है।
क्या राणा पूंजा दो ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे?
इस बीच, पूर्व विधायक और जनता सेना के नेता रणधीर सिंह भींडर ने इस विवाद को लेकर एक नई दृष्टि प्रस्तुत की है। उनका कहना है कि इतिहास में "राणा पूंजा" नाम के दो अलग-अलग व्यक्ति रहे हैं—एक सोलंकी राजपूत और दूसरे भील समाज से। दोनों की ऐतिहासिक भूमिका और पृष्ठभूमि अलग रही है, लेकिन नाम समान होने के कारण आज भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।
भींडर ने यह भी कहा कि जब तक इस ऐतिहासिक अस्पष्टता को स्पष्ट नहीं किया जाता, तब तक किसी भी समुदाय की भावनाओं को आहत करने से बचना चाहिए। उन्होंने प्रशासन से आग्रह किया कि प्रतिमाओं और उनके विवरण में ऐतिहासिक सटीकता बरती जाए।
भोपालसागर में राणा पूंजा की प्रतिमा को लेकर उपजा विवाद अब महज एक वेशभूषा का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह दो समुदायों की ऐतिहासिक पहचान और सांस्कृतिक गौरव का मामला बन गया है। ऐसे में प्रशासन और इतिहासकारों की भूमिका अहम हो जाती है कि वे तथ्यात्मक रूप से स्थिति स्पष्ट करें और सौहार्द बनाए रखें।