Edited By Chandra Prakash, Updated: 27 Nov, 2024 03:24 PM
देश संविधान दिवस की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन यह चिंता का विषय है कि संविधान में निहित 5वीं अनुसूची, जो जनजातीय क्षेत्रों के अधिकारों और संरक्षण के लिए बनाई गई थी, आज भी जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पाई है। ये कहना है डूंगरपुर-बांसवाड़ा सांसद...
बांसवाड़ा/दिल्ली, 27 नवंबर 2024 । देश संविधान दिवस की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन यह चिंता का विषय है कि संविधान में निहित 5वीं अनुसूची, जो जनजातीय क्षेत्रों के अधिकारों और संरक्षण के लिए बनाई गई थी, आज भी जमीनी स्तर पर लागू नहीं हो पाई है। ये कहना है डूंगरपुर-बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रोत का ।
रोत ने संसद में आदिवासियों के मुद्दों पर जोरदार तरीके से रखी अपनी बात
दरअसल, 26 नवंबर को देश में संविधान दिवस की 75वीं वर्षगांठ मनायी जा रही थी । इस दौरान सांसद राजकुमार रोत ने हाल ही में संसद में आदिवासियों के मुद्दों पर जोरदार तरीके से अपनी बात रखी। उन्होंने संविधान में निहित 5वीं अनुसूची को आज भी धरातल पर लागू नहीं किए जाने को लेकर संसद भवन में देश की सरकार को सांकेदिश संदेश दिया । सांसद रोत ने आदिवासी समाज के लिए अलग धर्म कोड की मांग की, जिसे जनगणना में शामिल किया जाए। उनका कहना था कि आदिवासियों की पूजा पद्धति और संस्कृति अलग है, और वे किसी भी प्रमुख धर्म से संबंधित नहीं हैं। इस अलग धर्म कोड से उनकी पहचान सुरक्षित होगी, जो लंबे समय से उनकी मांग रही है ।
एक बार फिर भील प्रदेश की स्थापना की मांग को दोहराया
इसके साथ ही उन्होंने एक बार फिर भील प्रदेश की स्थापना की मांग को दोहराया। यह मांग आदिवासी क्षेत्रों के विकास और उनके सांस्कृतिक व राजनीतिक अधिकारों को मजबूत करने के उद्देश्य से की गई है। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्रों में सरकार की नीतियों को आड़े हाथों लेते हुए यह भी कहा कि आदिवासी समाज को उनकी पहचान से वंचित करना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। राजकुमार रोत ने आदिवासियों की परंपराओं, अधिकारों और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए सरकारी नीतियों में बदलाव की मांग की । इस तरह राजकुमार रोत ने आदिवासी समाज के अधिकारों और उनकी पहचान को लेकर संसद में एक ठोस और साहसिक संदेश दिया। इस बयान ने आदिवासी समुदाय में व्यापक चर्चा को जन्म दिया है और उनकी मांगों को राष्ट्रीय स्तर पर अधिक मजबूती से पेश किया है।
क्या देश की आदिवासी राष्ट्रपति को आप इस मुद्दे से अवगत कराएंगे ?
इस सवाल पर उन्होंने कहा कि आज देश की सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी राष्ट्रपति बैठे हुए है और देश के आदिवासियों के हितों के लिए अनुसूची 5 और 6 का प्रावधान लागू नहीं हो पाया है । हमने कई बार उनकों ज्ञापन के माध्यम से दिया गया है । मेरे संसदीय क्षेत्र बांसवाड़ा में जब राष्ट्रपति का दौरा हुआ था, मैंने ज्ञापन के माध्यम से कहा था कि पांचवी अनुसूची को लेकर एक डायरेक्शन दें । लेकिन अभी तक किसी प्रकार का डायरेक्शन नहीं दिया गया है ।
सांसद राजकुमार रोत आदिवासी समुदाय के अधिकारों और उनकी पहचान को लेकर लगातार आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने पहले भी संसद और अन्य मंचों पर आदिवासियों से जुड़े कई मुद्दों को जोर-शोर से उठाया है। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित पहलें शामिल हैं ।
1. आदिवासी धर्म कोड की मांग: राजकुमार रोत ने कई बार आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग की है। उनका कहना है कि यह उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने के लिए जरूरी है, क्योंकि आदिवासी समाज की परंपराएं मुख्यधारा के धर्मों से अलग हैं।
2. भील प्रदेश की स्थापना: रोत आदिवासी बहुल क्षेत्रों के लिए अलग भील प्रदेश की मांग करते रहे हैं, जिससे इन क्षेत्रों का विकास सुनिश्चित किया जा सके और आदिवासी समुदाय को उनके अधिकार मिल सकें।
3. आदिवासियों के अधिकारों का संरक्षण: उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और भूमि अधिकार जैसे मुद्दों पर सरकार की नीतियों में सुधार की मांग की है। उनका कहना है कि आदिवासी समुदाय को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
4. वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन: राजकुमार रोत ने वन अधिकार कानून को सही तरीके से लागू करने पर जोर दिया है, ताकि आदिवासियों को उनके परंपरागत अधिकार मिल सकें।
5. आरक्षण और सामाजिक न्याय: उन्होंने आदिवासियों को आरक्षण के उचित लाभ दिलाने और उनके सामाजिक उत्थान के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
इन सभी मुद्दों पर उनकी आवाज ने आदिवासी समुदाय के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाई है और कई बार सरकार को उनके मामलों पर विचार करने के लिए मजबूर किया है। उनके प्रयास आदिवासी समाज की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।