प्रदेश की भर्ती परीक्षाओं में राज्य की कला संस्कृति से जुड़े 30 से 40 प्रतिशत प्रश्न: मंत्री

Edited By PTI News Agency, Updated: 28 Feb, 2023 03:59 PM

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जयपुर, 28 फरवरी (भाषा) राजस्थान में होने वाली विभिन्न भर्ती परीक्षाओं में 30 से 40 प्रतिशत प्रश्न राज्य की कला संस्कृति, भाषा और सामान्य ज्ञान से संबंधित पूछे जाते हैं। राज्य सरकार की ओर से मंगलवार को विधानसभा में यह जानकारी दी गई।

जयपुर, 28 फरवरी (भाषा) राजस्थान में होने वाली विभिन्न भर्ती परीक्षाओं में 30 से 40 प्रतिशत प्रश्न राज्य की कला संस्कृति, भाषा और सामान्य ज्ञान से संबंधित पूछे जाते हैं। राज्य सरकार की ओर से मंगलवार को विधानसभा में यह जानकारी दी गई।

शिक्षा मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने प्रश्नकाल के दौरान बताया कि राजस्थान लोक सेवा आयोग की भर्तियों में वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2022 तक राज्य से बाहर के मात्र 1.05 प्रतिशत व्यक्ति चयनित हुए हैं। इसी प्रकार कर्मचारी चयन बोर्ड के माध्यम से वर्ष 2014 से वर्ष 2022 तक केवल 0.90 प्रतिशत बाहर के लोगों को नौकरी मिली है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में भर्ती परीक्षाओं में 30 से 40 प्रतिशत प्रश्न राज्य की कला संस्कृति, भाषा और सामान्य ज्ञान से संबंधित पूछे जाते हैं।

डॉ. कल्ला ने प्रश्नकाल के दौरान इस संबंध में सदस्य द्वारा पूछे गये पूरक प्रश्न का कार्मिक मंत्री की ओर से जवाब देते हुए कहा कि कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब और गुजरात आदि राज्यों ने भर्ती परीक्षाओं में अपने राज्य की सरकारी भाषा का प्रश्न पत्र अनिवार्य किया गया है।
उन्होंने कहा कि इन सभी राज्यों की भाषा संविधान से मान्यता प्राप्त है। राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने के पश्चात् राज्य में भी यह प्रावधान किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि राज्य में आरएएस, बीडीओ, एईएन, जेईएन आदि की भर्ती परीक्षाओं राजस्थानी भाषा, साहित्य तथा लोक संस्कृति, पर्यटन आदि से जुड़े प्रश्न पूछे जा रहे हैं।

शिक्षा मंत्री ने कहा कि राज्य विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया जा चुका है, लेकिन केन्द्र सरकार द्वारा इस पर अब तक कोई फैसला नहीं किया गया है।

इससे पहले शिक्षा मंत्री ने विधायक अविनाश के मूल प्रश्न के लिखित जवाब में कहा कि सभी सेवा नियमों के नियम ''राष्ट्रीयता'' के अन्तर्गत भारत का नागरिक होने का प्रावधान है।
उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 (2) अनुसार निवास स्थान के आधार पर सार्वजनिक नियोजन में भेदभाव नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि निवास स्‍थान के आधार पर सार्वजनिक नियोजन में विधिक प्रावधान करने का अधिकार अनुच्छेद 16 (3) अनुसार केवल संसद को है।



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